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Friday 22 November 2019

Swati Grover Blogger: short stories...

Swati Grover Blogger: short stories...: पंचायत का फ़ैसला आ चुका था। स्कूल की ज़मीन को पंचायत ने ख़रीद लिया। और इस ज़मीन पर मंदिर, मस्ज़िद और गुरुद्वारा बनेगा ईसाई की संख्या गॉंव...

Thursday 14 November 2019

Swati Grover Blogger: हिंदी कविताएँ

Swati Grover Blogger: हिंदी कविताएँ: एक पत्रिका के दफ़्तर मे काम  करने के बाद  मुझे इस बात का अनुभव हुआ  कि मेरी लिखी रचनाओं की सही जगह  उस दफ्तर मैं पड़ी कूड़े की टोकरी हैं क्यूं...

short stories...

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पंचायत का फ़ैसला आ चुका था। स्कूल की ज़मीन को पंचायत ने ख़रीद लिया। और इस ज़मीन पर मंदिर, मस्ज़िद और गुरुद्वारा बनेगा ईसाई की संख्या गॉंव में न के बराबर थीं । स्कूल की हालत बड़ी ख़स्ता थी। बच्चे गिनती के रह गए है। बाऱिश में स्कूल में पानी भर जाता है। ज़्यादातर शिक्षक की नौकरी गॉंव से 20 किलोमीटर दूर नगर निगम के स्कूल में लग गई थी। और जो 2-3 शिक्षक बच गए थे। वे भी जाना के जुगाड़ में लगे हुए थे । और अब वहाँ के स्कूल के बच्चे को उसी नगरनिगम के स्कूलों में भेजा जाएगा।
जगन चपरासी था। उस गरीब का रोज़गार भी चला गया। वह भी मायूस नज़रों से स्कूल को देख रहा था। वही फुलवा जो अपने मामा के साथ रहता है। उसे पता है कि अब उसकी पढ़ाई छूट जायेगी। क्योंकि उसका कंस मामा उसे इतनी दूर नहीं जाने देगा और घर का काम करवाएगा । वही मनप्रीत यानि निम्मो भी बहुत उदास थी क्योंकि उसकी माँ तो थी पर पिता नहीं थे उसकी माँ को घर-घर जाकर काम करना पड़ता था । अब वो कहा इतनी दूर निम्मो को छोड़ने जा पाएगी । और दो चार बच्चे ऐसे भी थे जिनकी परिस्थिति भी ऐसी ही दयनीय थी । रहीम भी अपने चाचा को ज़्यादा परेशां नहीं कर सकता था बस सभी दुःखी मन से एक साथ गॉंव के पीपल के नीचे इकठ्ठे हुए ।
वाहे! गुरुजी तो जगह-जगह रहते है फिर उनके लिए स्कूल को तोड़ने की क्या ज़रूरत है। गुरबाणी में भी यही लिखा "वो हर थाह ते रेह्न्दा है" बाबाजी साडा तो यही स्कूल है। इनु बचा लो।" मनप्रीत ने बड़ी मासूमियत से कहा । फुलवा भी अपने बंसीवाले से प्रार्थना करता है हमारी मदद करो।
दिन बीतते जा रहे थे । स्कूल टूटना शुरू हो गया था । वही मनप्रीत रोज़ अपने वाहे!गुरु के आगे अरदास करती कि कोई मदद करो । जिनका स्कूल छूट गया वे रोज़ मायूस होकर स्कूल को टूटते हुए ही देखा करते। धीरे-धीरे सबने उम्मीद छोड़ दी कि अब क्या हो सकता है? "कल गुरूद्वारे की नींव रखी जानी है निम्मो फिर धीरे-धीरे मंदिर, मस्जिद सभी की दीवारे खड़ी हो जाएँगी । बाकी बच्चों ने स्कूल जाना शुरू कर दिया है । और जगन ताऊ ने भी वही नए स्कूल के पास अपना झोपड़ा बना लिया है। फुलवा उदास होकर बोला । " उसके घर देर है अंधेर नहीं" ज़रूर कुछ न कुछ बाबाजी करेंगे। निम्मो भी उदास होते हुए बोली। "पर अब कुछ नहीं हो सकता निम्मो देख लेना हम यूँ ही अनपढ़ रह जाएँगे।"
सुखी बसे मसकीनिया आप निवार तले वडे-वडे अहंकारिया नानक गरब गले । गुरुद्वारे में यहीं शब्द चल रहा था और मायूस निम्मो यहीं कह रही थी कि अब मैं नहीं पढ़ पाऊँगी बाबाजी और आप कुछ मत करना । रोते हुए वह गुरूद्वारे से चली गई। और शब्द यूँ ही चल रही थी। दीवार खड़ी हो चुकी है । पर रात को इतनी तेज़ अँधेरी आई कि स्कूल की नई दीवार ढह गई। सुबह सब गॉंव वालों ने माथा पीट लिया और और फ़िर नई दीवार बनाने में जुट गए। इस बार मंदिर की दीवार खड़ी की गई मगर जो मज़दूर दीवार बना रहे थे एक-एक करके जाते गए या तो कोई बीमार पड़ गया या फिर किसी को कोई और काम मिल गया। कोई न कोई अड़चन आती गई फ़िर मस्जिद की बनाते समय सीमेंट कच्चा रह गया और दीवार के गिर जाने से एक मजदूर को चोट लग गई ।
"भाइयों सभी धर्मिक स्थलों का काम ठीक से शुरू नहीं हो पा रहा है क्या कहते हो ?" सरपंच जी ने गॉंव के लोगों से पूछा।"हाँ, आप ठीक कह रहे है 550वां गुरुपर्व आने वाला है ऐसा कैसा चलेगा? नया गुरुद्वारा तो बनना ही चाहिए।"सभी गॉंव वाले एक साथ बोले। फुलवा को उसके मामा ने सब्ज़ी का ठेला पकड़ा दिया।और निम्मो भी बुझे मन से माँ के साथ खेतों पर जाने लगी ।
गॉंव वालों ने ज़्यादा मजदूर से काम ज़ोर शोर से शुरू किया । औ सब कुछ जाणदा किस के आगे कीजे अरदास " इसी शब्द को प्यारी सी निम्मो गुरुद्वारे के कोने में बैठकर निम्मो सुन रही थी।आज उसे लग रहा था कि बाबाजी सबकुछ जानते है और फिर हम सबको स्कूल के अलावा कहीं और क्यों जाना पड़ रहा है। निम्मो पुरानी किताबों को ही पढ़ती रहती है ताकि उसका और किताबों का साथ कभी न छूटे।
दिलो को तोड़कर सभी धार्मिक स्थलों की दीवारें खड़ी हो गई । और बच्चों को लगने लगा कि न अब कोई बाँसुरी बजेगी, न कोई अरदास पहुँची और न ही कोई नमाज़ परवान हुई। दिन बीतते जा रहे थे । धुनिया मौसी का भांजा अंकित दिल्ली से आया और एक दिन गॉंव में घूमते-घूमते इन्ही पीपल के नीचे बैठे उदास बच्चों से टकरा बैठा और इनकी बातों को अपने पास रिकॉर्ड कर अपने न्यूज़ चैनल 'भारतवर्ष' में ले गया । वहाँ किसी तरह अपने बॉस को मनाकर यह न्यूज़ दिखा दी । चारों तरफ यह हंगामा मच गया और पूरे भारत ने इस बात की आलोचना हुई कि अगर स्कूल की स्थिति ख़राब हो गई थी तो दोबारा बनवाते या उन सभी बच्चों के लिए दूसरे स्कूल तक जाने के लिए सुविधा उपलब्ध करवाई जाती। शिक्षा से वंचित करने का अधिकार किसने दिया ।
बात राष्टपति तक पहुँची। मुख्यमंत्री ने गॉंव वालों से बात की और यह फैसला लिया गया कि अब स्कूल ही बनेगा और जब तक स्कूल नहीं बनेगा तब तक बच्चों गॉंव से बाहर जो स्कूल है सरकारी गाड़ी के द्वारा बच्चों भेजा जायेंगा ताकि उनकी पढ़ाई न छूटे। और प्रशासन गॉंव वालों को किसी भी धार्मिक स्थल बनाने के लिए अलग ज़मीन देगा । सभी बच्चे खुश थे भागती हुई निम्मो गुरुद्वारे जा पहुँची और शब्द चल रहा था कि
"नानक चिंता मत करहो चिंता तिस ही होए"
जल में जंत उपा-ए-अन तिना भी रोज़ी दई"
निम्मो की आँखों में आँसू आ गए । और गॉंव के सभी बच्चे बहुत खुश है। उस मालिक का शुक्रिया करने के लिए निम्मो ने अपनी कमाई के थोड़े से पैसो से पूरे गॉंव में टॉफियाँ बाँटी । एक महीना बीत गया और अंकित गॉंव आया 550वां गुरुपर्व मनाने की तैयारी चल रही थी जगह -जगह शोर था उसे देखते ही सभी बच्चे उससे लिपट गए और गॉंव के लोगों ने भी उसे हाथों-हाथ लिया। "अरे ! मुझसे क्यों लिपट रहे हो मौसी आप सब लोग मुझे क्यों घेरकर खड़े हो गए" अंकित ने सकुचाते हुए कहा। भैया आप पिछली बार और कमाल कर गए । थैंक्यू भैया सभी ने कहा । और गॉंव वालों ने भी धन्यवाद दिया ।
"मौसी बड़ी अज़ीब बात है । पता नहीं मैंने यह किया कि या मुझसे करवाया गया । रात को सपने में मुझे तेज़ आंधी बरसात के कारण यही टूटा हुआ स्कूल आता था । कभी यह काम करने वाले मज़दूर आते और कहते कि "हमसे नहीं बनेगा यह भवन" । पीपल के पेड़ के नीचे उदास बैठे बच्चे और गॉंव का गुरुद्वारे और गुरुद्वारे में चलती शब्द " जैसा सतगुरु सुणीदा तैसो ही मैं ढीठ" और तो और मैं तो अपने बीवी- बच्चों को लेकर शादी में जाने के लिए गुजरात जा रहा था पता नहीं आपके गॉंव बलिया उत्तर प्रदेश कैसे पहुँच गया । और वो मेरा खड़ूस बॉस जो कभी एक बार नहीं सुना और इतना भ्रष्ट है कि कहने ही क्या वो इतनी जल्दी कैसे मान गया । "
अंकित बेटा वो सतनाम परमात्मा तो सभी में रहता है बस देखना यह होता है कि सतनाम वाहेगुरु किस के ज़रिये अपना काम करवा लेता है। तो इस बार तुम ही सही मौसी ने प्यार से अंकित के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा । और फिर उन ग़रीब बच्चों की कैसे मदद नहीं करता तभी तो कहते है कि कि लेणा मैं वडया बनके मेरा सतगुरु यार ! गरीबा दा !!! मौसी मुस्कुराते हुए बोली और अंकित भी बहुत संतुष्ट नज़र आ रहा था । 550वां गुरु पर्व पूरी श्रद्धा से मनाया गया सभी धर्म के लोग पूरी श्रद्धा से गुरु के द्वारे पहुंचे ।
कुछ समय और बीत गया बच्चे गॉंव के ही स्कूल जाने लग गए । गॉंव ने प्रशासन से मिली ज़मीन पर अस्पताल खुलवाना बेहतर समझा । अंकित भी गॉंव में यह परिवर्तन आया देखकर सोच रहा था कि आज जितने भी मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे या कोई और धार्मिक स्थल है सब माया(धन) से ही चलते है पर एक वो मालिक (परमात्मा ) है जो किसी मुरीद से ही चलता है।
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चाँदनी चौक के बल्लीमरान में क़ासिम जान गली जहाँ ग़ालिब की बची-कुची हवेली को देखने लोग दूर-दूर से आते है। वह भी रोज़ इसी ग़ालिब की गली से होकर और दो तंग गलियों से होता हुआ जाता है और उसकी नज़र गली के चौथे मकान की दूसरी मंज़िल की खुली खिड़की पर पड़ी तो वही खड़ा मिलता सादिक़ का प्यार ज़ैनब । साँवली-सलोनी सी ज़ैनब लम्बे बालों को सुलझाते हुए जब इधर-उधर देखते हुए सादिक की तरफ देखती है तो उसे लगता है कि कोई इन आँखों को ग़ौर से देख ले तो उसे ज़िहाद कर मासूम लोगों को मारने की ज़रूरत नहीं है। उसे ज़न्नत तो इन्हीं बड़ी-बड़ी आँखों में डूबकर कर मिल जाएँगी। यानि सही मायने में उन्हें मोहब्बत करने का सलीक़ा सिखाना चाहिए ।
उसके दोस्त उसका मज़ाक उड़ाते कि "क्या कल्लू सी महबूबा ढूँढ रखी है कोई और नहीं मिली किनारी बाज़ार वाली वाली गली की नीलोफ़र को देख चाँद का ,टुकड़ा लगती है ।"तुम्हें क्या पता कि लैला भी काली थी। और मैं भी अब ज़ैनब को देख मजनूं की तरह सदके करने लगा हूँ ।" सादिक़ भी आह ! भरकर बोला। उसका घर तो ज़ैनब के घर से दूर बीचों-बीच बाज़ार से नई सड़क के साथ लगी एक तंग गली में था मगर वह अक्सर वही से निकल अपने घर को जाता था। ज़ैनब के अब्बा ने वही घर के नीचे बिरयानी का ठेला लगा रखा था। .जिसकी बिरयानी वही ज़ैनब बनाती थी और ऐसी लज़ीज़ बिरयानी के लिए सुबह आठ बजे से शाम सात बजे तक खाने वालो की भीड़ लग जाती थी। उसने भी पहली बार परदे के पीछे से बिरयानी देती ज़ैनब को देखा था । और वही से उसके इश्क़ का आगाज़ हुआ था। फ़िर दूसरी, तीसरी, चौथी मुलाक़ात इन्ही गलियों में आते -जाते हुए और एक दिन उसने ज़ैनब का पीछा कर ठीक जामा मस्जिद से थोड़ी दूर लालक़िले के सामने अपने प्यार का इज़हार किया मानो वो सारे जहां के शहंशाह 'को भी अपने इस पवित्र प्रेम का साक्षी बनाना चाहता हूँ । ज़ैनब शर्माकर बस इतना कह पाई " अब्बा से निक़ाह की बात करना ।"
मग़र अब्बा ने तो साफ़ कह दिया कि "देखो सादिक़ तुम पढ़े-लिखे हूँ। दरियागंज के किताबों के दफ़्तर में छपाई के काम से अच्छा कमा लेते हूँ । तुम्हें दामाद बनाने में कोई हर्ज़ नहीं है । पर मेरी शर्त है कि मैं कोई दहेज़ नहीं दूँगा निक़ाह का ख़र्चा भी तुम्हें खुद उठाना होगा । और तो और तुम्हें मेरा घर जमाई बनना होगा आखिर ज़ैनब मेरी एकलौती बेटी है उसकी की वजह आज घर और दुकान दोनों चल रही है । हीरा है मेरी ज़ैनब मुझे तो कोई ऐसा लड़का चाहिए जो घर और दुकान को भी संभाले मेरा भी ख़्याल रखें । समझें " सादिक़ को समझ नहीं आया कि वो क्या ज़वाब दे और बस इतना कहकर निकल गया कि
क्या शर्त -ए -मोहब्बत है,क्या शर्त -ए -ज़माना है
आवाज़ भी जख्मी है और वो गीत भी गाना है
भोली सी अदा, कोई फिर इश्क की जिद पर है
फिर आग का दरिया है और डूब ही जाना है
हताश आशिक़ जब घर पहुंचा तो अम्मी ने बताया कि "नीलोफर के अब्बा आये थे तेरा रिश्ता लेकर खूब दहेज़ देने की बात कर रहे थे । मैंने कह दिया मुझे कोई एतराज नहीं बस सादिक़ से पूछ कर बताती हूँ । तू बोल बेटा "हाँ" बोल दो ?"अम्मा नादिया ने प्यार से पूछा ।" बस करो आज बहुत थक गया हुआ हूँ, फ़िर बात करेंगे । " सादिक़ उदास होकर बोला और अपने कमरे में चला गया । आज उसकी आँखों में दूर-दूर तक नींद नहीं थी । वह यही सोचा जा ऱहा था कि सारा चाँदनी चौक सादिक़ को यह किस्सा सुना चुका है कि नीलोफर ज़ैनब की सौतेली बहन। जब ज़ैनब पाँच साल की थी तो उसकी अम्मी मस्ज़िद के नामचीन मौलवी के बेटे हैदर के साथ भागकर निग़ाह कर लिया था और ज़ैनब को उसके पिता आसिफ़ के पास छोड़ गई थी । बड़ा हंगामा मचा था पर क़ाज़ी मौलवी साहब ने बेटे की ज़िद के सामने घुटने टेकते हुए लोगोँ को यह समझा दिया था कि "बीवी भी शौहर को तीन बार तलाक़ देकर छोड़ सकती है आख़िर अल्लाह की भी यही मर्जी है कि अगर बीवी शादी से खुश न हो तो उसे भी आज़ाद होने का पूरा हक़ है ।" शायद पहली बार किसी मौलवी ने एक औरत के हक़ में फैसला दिया था। वो अलग़ बात है उसमे उसका अपना स्वार्थ था । आसिफ़ मिया नन्ही सी ज़ैनब को उठाये वापिस घर लौट आये और वह ज़ैनब की अम्मी नुसरत ने हैदर से तीन बच्चों को जन्म दिया था । और सबसे बड़ी थी नीलोफर जो अपनी अम्मी पर गई और ज़ैनब अपने अब्बू पर । वहाँ ज़ैनब भी अपने बाप का फ़रमान सुन चुकी थी। उसे पता था उसके अब्बा मतलबी है तभी अम्मी छोड़कर चली गयी थी । आख़िर जाती भी क्यों न इश्क़ में कुछ सही गलत नहीं होता ।
देखते-देखते तीन महीने बीत गए सादिक़ आज भी ज़ैनब को उन्ही तंग गलियों से देखते हुए जाता है और ज़ैनब ने भी अपनी ज़ुल्फ़ो को सुलझाना बंद कर दिया है क्योंकि उसकी खुद की ज़िंदगी उलझकर रह गई है । "क्या यार ! कब तक मजनूं की तरह उसके बाप की गालियाँ खाता रहेगा वो बुड्ढा नहीं मानने वाला और तू भी क्या अपनी अम्मी को छोड़ सकता है एकलौती औलाद है अपनी अम्मी की । तेरे अलावा है ही कौन । काश उस नीलोफ़र के अब्बा ने मेरे यहाँ रिश्ता भेजा होता तो एक मिनट में हाँ करता। ":सादिक के दोस्त अफ़ज़ल ने बड़ी गहरी सांस लेते हुए कहा । "तू जाकर निक़ाहकर ले मुझे साली को घरवाली बनाने का कोई शौक़ नहीं हैं ।" सादिक़ चिढ़ते हुए बोला ।
"सादिक़ यार ज़ैनब का निक़ाह तय हो गया उसके चाचा के बेटे अलफरोज के साथ ।" उसके दोस्त सरफ़राज़ ने हाँफते हुए बताया । "या ,अल्लाह कभी तो हम आशिक़ो की बारात, निकाल जनाज़ा नहीं । "कुछ करो दोस्तों वो अलफरोज़ तो बदमाश है बुड्ढे ने अपने लालच के लिए बेटी की बलि चढ़ा देगा" सादिक रोते हुए बोला । "निक़ाह कब है ?" अफ़ज़ल ने पूछा। ईद के बाद सरफ़राज़ ने कहा । "करते है सादिक़ कुछ परेशां मत हो अल्लाह मोहब्बत करने वालो के साथ है ।" अफ़ज़ल ने सादिक़ को गले लगाते हुए कहा ।
"बेटा नीलोफ़र की साथ रिश्ता पक्का कर आऊं? सादिक की अम्मी नादिरा ने पूछा । "मुझे दहेज़ नहीं चाहिए माँ। और हाँ नीलोफर से निक़ाह करने में कोई दिलचस्पी नहीं है ।" सादिक़ यह कहकर पैर पटकता हुआ घर से चला गया । आज सादिक़ पहली बार ग़ालिब की हवेली में घुसा और ग़ालिब की मूर्ति के सामने लगभग रोता हुआ बोला----
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोईग़ालिब
जिसे खुद से बढ़कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है
"भाईजान हवेली बंद करने का वक़्त हो गया अब ज़रा रुखसती फरमाए लगता है आप आशिक़ के साथ-साथ ग़ालिब के मुरीद भी है।" गॉर्ड ने थोड़ा छेड़ते हुए कहा। "नहीं मैं तो बस इनकी ग़ज़लें पढ़ता रहता हूँ।" सादिक़ बुझे मन से कहकर चला गया । ईद भी आ गई । "ईद मुबारक़ यार !" अफ़ज़ल ने सादिक़ को गले लगाते हुए कहा "यह क्या ! चल बक़रीद मनाते है" सरफ़राज़ और अफ़ज़ल सादिक को खींचते हुए बोले । "नहीं यार ! मेरे खुद के मासूम से दिल पर छुरियाँ चल रही है अब क्या! किसी पर" "तो क्या ? बकरे का दर्द समझ आ गया" सरफ़राज़ बात काटकर हॅंसते हुए बोला । "तुम जैसे दोस्त हो उन्हें दुश्मनों की ज़रूरत नहीं है । आज केक काटकर ईद मनाते है।" सादिक़ ने थोड़ा मायूस होकर ज़वाब दिया ।
ज़ैनब के निक़ाह का दिन नज़दीक आ गया । वह भी लगातार अपनी बचपन की सहेलियों के साथ रो रही थी । हर पल दिल यहीं दुआ कर रहा था कि अल्लाह कोई करामात कर दें। इस तरह मेहंदी की रात भी आ गयी। पर पूरे मोहल्ले में हंगामा मच गया कासिम जान की गली में शोर मच गया । पुलिस आ गई थी। अलफरोज को पकड़कर ले गई । पता चला कि अलफरोज़ ने कई महँगी गाड़ियाँ चुराकर चोर बाज़ार में बेच दी थी। आज वो पकड़ा गया ।
आसिफ़ को काँटो तो खून नहीं । कल निक़ाह और आज यह सब । अफ़ज़ल और सरफ़राज़ मौके का फ़ायदा उठाकर पहुँच गए आसिफ़ के पास। "चाचा इस वक़्त आपकी कोई आबरू बचा सकता है तो सिर्फ़ सादिक़ है वरना सोचिये बीवी की तरह बेटी की वजह से भी शर्मिंदा होंगे और शबनम बीबी को भी आप पसंद करने लगे है वो क्या सोचेंगी आपके बारे में कि आपने किसी चोर-गुंडे को अपना दामाद बना लिया था।" सरफ़राज़ ने आसिफ़ की आंखो में देखते हुए कहा। "अरे! बेटा बस उस बेवा औरत से थोड़ी सी हमदर्दी है।। आसिफ़ ने झेंपते हुए कहा। "ठीक है बेटा कल मैं ज़ैनब और सादिक का निक़ाह पूरे चाँदनी चौक के सामने करवा दूगा। फिर देखता हूँ कि कौन मुझ पर ऊँगली उठाता है। हाँ! पर मैं कोई दहेज़ नहीं दूँगा।" आसिफ़ की बातों में जोश था। "और सादिक़ भी घर जमाई नहीं बनेगा।" अफ़ज़ल भी शर्त वाले लहज़े में बोला ।
आख़िर वहीं हुआ जो अल्लाह को मंजूर था । सादिक़ और ज़ैनब का निक़ाह हो गया । अफ़ज़ल चाँद के टुकड़े नीलोफ़र को अपने घर ले आया। सच तो यही था कि नीलोफ़र भी अफ़ज़ल को ही पसंद करती थी । आसिफ़ की हमदर्दी प्यार में बदल गई उसने शबनम से निक़ाह कर लिया । अब बिरयानी वो बनाती है । सादिक़ की माँ खुश है कि बेटा खुश है पर दहेज़ न मिलने का मलाल उनकी बातों में नज़र आ जाता है। अलफरोज़ जेल से छूट चुका है और अपने बचपन की दोस्त अमीना से निक़ाह की तैयारी कर रहा है उसने वादा किया है कि वह सुधर जायेंगा । किसे क्या पता था कि इन तंग गलियो में कितनी आधी- अधूरी प्रेम कहानियाँ चल रही है, बस उनका मुक़्क़मल होना हमेशा से ही अल्लाह के हाथ में होता है । अब सरफ़राज़ भी ग़ालिब को पढ़ने लगा है अपने दोस्तों को यूँ अपने इश्क़ के साथ साथ आबाद देख वो अकसर यह कहता रहता है ---
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता,,,,,,,


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नैना को किसी ने मार दिया था। उसकी खून से लथपथ लाश लोगों को कहने पर मजबूर कर रही थी कि 'क्या अन्याय है! दस दिन बाद इसकी शादी थी और यह कुदरत का कहर। आखिर नैना को मारा किसने ? नैना जिसका खुद का अपना फैशन बुटीक है, उसकी ऐसी निर्मम हत्या यकीन नहीं होता।' पुलिस आ चुकी थी । नैना की माँ का रो-रोकर बुरा हाल था । "नैना हाय ! मेरी बेटी यह क्या हो गया। नैना की माँ शर्मीला बार-बार यही कह रही थी । "आप सभी घर से बाहर जाइये जरा हमे अपना काम कर लेना चाहिए ।" इंस्पेक्टर सोहन ने सबको बाहर धकेलते हुए कहा ।"

"नैना की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दो । सारे घर की तलाशी लो और सभी घरवालों से पूछताझ करो ध्यान रहे कोई भी किसी चीज़ को हाथ न लगाने पाए ।" सोहन लाल ने कहा । कोई भी ऐसा सबूत नहीं मिला जिसे कातिल का पता लगाया जा सके। नैना क़े पिताजी ने हाथ जोड़कर कहा "मेरी बेटी के कातिल का पता लगाए सर वरना मुझे आगे सी,.बी,आई तक बात पहुँचानी पड़ेगी।" आखिर वही हुआ नैना के पिताजी ने शिकायत की । और केस सीनियर इंस्पेक्टर माधवशाम के पास पहुँच गया। "क्या बात है सोहन? "फिर से केस की फाइल खोलो । और मुझे केस की सारी डिटेल बताओ । शुरू से शुरू करो ।" माधव ने कहा । "जी सर सुनिए" सोहन ने बताना शुरू किया ::

"नैना की मौत शाम पांच बजे आज से ठीक तीन महीने पहले हुई थी सिर पर किसी ने बहुत ज़ोर से वार किया था पर किस चीज से पता नहीं । हथियार भी हमे नहीं मिला । दरवाज़ा अंदर से बंद था । छत का दरवाज़ा भी अंदर से बंद था । कातिल कहाँ से आया पता नहीं । जब शाम को उसके घरवाले पहुंचे गेट खटखटाया कोई जवाब न मिलने पर पुलिस को बुलाया गया ।" "सारी चीजे दिखाओ जो भी नैना के घर से मिली हैं ।" माधव ने कहा !!

सभी चीजे सामने लायी गयी चीजों में सिर्फ था नैना का दुप्पट्टा उसका मोबाइल फ़ोन और उसका वेडिंग कार्ड । माधव ने हर चीज़ को गौर से देखा और तभी उसकी नज़रे वेडिंग कार्ड पर टिक गई उसकी ख़ूबसूरती बहुत लाज़वाब थी, ऐसा शादी का कार्ड उसने पहले कभी नहीं देखा था । रेशम और ज़री तथा चमेली के फूलो से बना कार्ड कमाल का था । एक सुन्दर सी प्यार भरी कविता अपने प्रिय के प्रति प्यार को दर्शा रही थी । पढ़ते ही मन भावुक हो जाता था । पर यह क्या कार्ड के कोने में खून हल्का सा खून और कार्ड की हालत देखकर लगता है कि इसे काफ़ी मोड़ा गया है । "जाओ इस कार्ड को फॉरेंसिक लैब में ले जाओ और पता करो यह खून किसका है । और सभी नैना के करीबी, जानने वाले और फ़ोन की कॉल रिपोर्ट भी मेरे पास भेजो ।"

एक-एक करके सबने आना शुरू किया और इंस्पेक्टर माधव का सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हो गया । "आप नैना की सौतेली माँ है सुना है आपकी और नैना की ज्यादा बनती नहीं थी । जी नहीं ऐसा कुछ नहीं है थोड़ा बहुत लड़ाई-झगड़ा सबके घरों में होता रहता है । और वैसे भी सौतेली को समाज ने वैसे ही बुरा बनाया हुआ है । मैं नैना को बहुत प्यार करती थी । मैंने उसे नहीं मारा ।" नैना की माँ शर्मीला ने कहा । "तो क्या यह सच नहीं है कि नैना शादी से एक महीने पहले घर छोड़कर चली गयी थी माधव ने सख्ती से पूछा । "जी वो बड़ी ज़िद्दी लड़की थी लहंगे के पीछे झगड़ा हुआ था फिर उसके पापा मना लाये थे ।" "ठीक़ है, आप जा सकती है, इन पर नज़र रखो । माधव ने अपने जूनियर रितेश को कहा । "सर मैं क्यों मारूंगा नैना को हमारी शादी होने वाली थी और हम पर कोई दबाव नहीं था शादी का ।" "लेकिन आप किसी और से प्यार नहीं करते थे । सर वो तो एक अफेयर था जो वक़्त रहते ख़त्म हो गया । और आजकल तो सभी का कोई न कोई अफेयर हो ही जाता है।" नितेश ने खीजते हुए कहा । "तुम्हारी गर्लफ्रेंड का क्या नाम था ?" "जी रश्मी, सर उसकी भी शादी हो गई है उसे परेशान मत करिये" नितेश ने गुस्से में कहा । "बड़ी फ़िक्र हो रही है तुम्हें उसकी ।" "जाओ जब बुलायंगा तब आना ।" माधव ने भी चिढ़ते हुए कहा ।

रश्मी को बुलाया गया, नैना के सभी रिश्तेदार जिनके पास वो वेडिंग कार्ड गया था, सबसे पूछताझ हुई। पर कुछ भी सुराग न मिला। सब बेकार लग रहा था फिर भी सब पर नज़र रखी गई। फ़ोन रिकॉर्ड भी मंगवाए गए । पर कुछ हाथ नहीं लगा । तभी नैना के पिताजी शम्भुप्रसाद ने बताया कि ''यह काम पड़ोस के लड़के नीरज का है । वो ही मेरी बेटी नैना को परेशां करता रहता था।'' नीरज को बुलाया गया।

"दो झापड़ मारे गए, क्यों बे! सच बता तूने मारा नैना को ।" इंस्पेक्टर माधव ने लगभग घूसे मारते हुए कहा। "क्यों कॉल करता था। नैना को सबसे ज्यादा तूने ही कॉल किया है। सर मेरा और नैना का कभी अफेयर था जो ख़त्म हो गया। हम अब दोस्त बन गए थे। उसने मुझे अपना शादी का कार्ड भी दिया था। उसी सिलसिले में बस थोड़ी बातें हुई। और जिस दिन क़त्ल हुआ उस दिन मैं अपने माँ को लेकर हरिद्वार गया हुआ था।" नीरज ने थोड़ा डरे और साफ़ शब्दों में कहा। "तुम्हारा ब्रेकअप क्यों हुआ था ? माधव ने पूछा। "सर हमारे विचार नहीं मिल रहे थे । उसे मेरे परिवार में कीड़े नज़र आते थे। फिर वही बहस और हम एक दिन अलग हो गए ।"नीरज थोड़ा सँभालते हुए बोला । "साले पूरी कहानी पहले से ही सोचकर आया है । एक तड़ाक चाटा । चल रह यहाँ पर। सर मैं सच बोल रहा हूँ।"नीरज लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोला। माधव उसे वही लॉकअप में छोड़कर चले गए ।

"सर हम इसको ज्यादा दिन तक रख नहीं सकते । यह सच कह रहा है । बाहर इसकी माँ आई हुई है । इसकी टिकट भी चेक करी जिस धर्मशाला में यह रुका था, वहाँ भी पूछा गया है।" जूनियर दिलीप बोला। "ठीक है अभी कुछ दिन रोको फिर देखते है । और मेरे साथ नैना के घर चलो।" माधव ने तेज़ी दिखाते हुए कहा । पूरी पुलिस टीम नैना के घर पहुँची । माधव ने ध्यान से नैना के घर का कोना-कोना चेक किया । "तुम कौन हो ? मैं रमा जी अरे! यह तो नाबालिक नौकरानी रखी हुई है आपने ? सोहन गुस्से से चिल्लाते हुए बोले । "सर यह ग़रीब है इसकी माँ ने हाथ पैर जोड़े और फिर तभी रखा।"

"कुछ जानती हूँ नैना का खून हुआ उसके बारे में ?" "सर मैं बता चुकी हूँ । मैं अपनी सहेली बाला के घर थी ।" रमा ने डरते हुए कहा । "यह यही रहती है क्या? वो रसोई के साथ वाला कमरा तुम्हारा है ?" माधव ने पूछा । "हां मेरा है सर, रमा ने कहा । "यह सच कह रही है। हमने पता किया है ।" जूनियर ने कहा।

"सालों सब सच बोल रहे हैं । फ़िर खून किया किसने है ? कोई भूत मार गया क्या ? नाटक लगा रखा है?" गुस्से से लगभग चीखते हुए माधव नैना के घर से निकल गए । "सर बात सुनिए गुस्सा मत करिये, नीरज को अंदर डाल देते है । वही दोषी लगता है और नहीं भी तो उसे खूनी बना डालते है फिर फाइल बंद।" जूनियर रितेश ने कहा । "और बाकी माँ, उसका होने वाला पति , उसके दोस्त, रिश्तेदार, रश्मी सब बेगुनाह है नहीं ?" माधव ने लगभग चिढ़ते हुए कहा । "सर इसके पास ज़्यादा सही वजह है ।" रितेश कंधे उचकाकर बोला । "मुँह बंद करो अपना ।" माधव जीप में बैठते हुए बोले । रात के बारह बज चुके थे । माधव ने सोहन को कहा, "सब मुख्य सस्पेक्ट को थाने बुलाओ ।"

"आप सभी को आज पुलिस थाने में बुलाने का कारण है कि कातिल का पता लग चुका है । हमारे पास सुराग के तौर पर है यह वेडिंग कार्ड जिस पर नैना का ही खून लगा हुआ है । तुम नितेश तुमने नैना को मारा"".........सर मैं क्यों ? नितेश चीखकर बोला । "मुँह बंद रखो अपना ।" माधव ने बात काटते हुए ज़ोर से चिल्लाकर कहा । "कातिल यह है"। सोहन ज़ोर से बोला । सबने पीछे देखा तो पीछे दो महिला कांस्टेबल के साथ रमा खड़ी थी । "मैं क्यों मारूंगी रमा दीदी को मुझे छोड़ हो रमा ने पैर में गिरते हुए कहा । "सर आप हवा में तीर छोड़ रहे है भला रमा क्यों मारेगी इसके पास क्या वजह है हम कौन सा इसे जानवरो की तरह पीटते है।" नैना के पिताजी ने कहा। "आखिर वजह तो यह खुद बताएगी। बताओ! रमा, वरना तुम्हारी सहेली बाला को बुलाना पड़ेगा । वह सच बताएगी ।" माधव ने रमा को घूरते हुए कहा ।

"हां मैंने मारा नैना दीदी को मैं उन्हें मारना नहीं चाहती थी । उस दिन मैं शाम को सब्ज़ी खरीदने बाज़ार जाने वाली थी । दीदी अपना वो सुन्दर सा वेडिंग कार्ड देख रही थी मैंने बस इतना कहा कि मैं अपने ब्याह में भी यही कार्ड छपवाऊँगी । कोई कविता भी लिखी गयी है, वो पढ़कर सुना दो बस वो गुस्सा हो गयी उन्होंने मुझे अनपढ़, छोटी जात और यहाँ तक यह भी कहा, ' कि मैं तेरे हाथ पैर तोड़ दूंगी। बस मुझे गुस्सा आ गया। और मैंने दीदी के सर पर मारा और मुझे नहीं पता था कि वो मर जायेंगी।" "तुम भागी कहाँ से ? माधव ने पूछा रसोई वाली टूटी खिड़की से जहाँ पर्दा लगा था सीधा भागते हुए अपनी सहेली बाला के पास पहुँची। हथियार कहाँ पर है ? "जी मैंने कूड़े में रखे टूटे फूलदान से मारा वही बाहर वाले कूड़े में फेंक दिया ।" रमा लगातार रोते हुए बोले जा रही थी। "हाय ! मेरी बेटी को मार दिया।" पिता शम्भूप्रसाद लगभग रमा को मारने दौड़े। "अरे ! सम्भालिये" माधव ने कहा । दो कांस्टेबल बुलाये गए।

मात्र चौदह साल की रमा को बाल सुधार गृह भेज दिया गया । सभी को राहत मिली । पर नैना के घरवाले सोच रहे है, काश नैना वेडिंग कार्ड पढ़कर सुना देती तो शायद बच जाती या फिर रमा को अपना आपा नहीं खोना चाहिए था । "सर आपको कैसे पता चला कि रमा कातिल है? सोहन ने पूछा । "हम नैना के घर गए थे तो मैंने देखा कि रमा के कमरे में 4-5 वेडिंग कार्ड पड़े देखें । बल्कि नैना के पिता ने बताया था कि कोई कार्ड नहीं है । फिर रसोई की आधी से ज्यादा टूटी खिड़की को रमा परदे से डरते-डरते बार बार ढक रही थी । और हमारे पास इस वेडिंग कार्ड के अलावा कोई सबूत नहीं था न कोई चोरी न कोई दुश्मनी फिर खून तो कोई घर का व्यक्ति करेगा नहीं । प्रसाद ने सही कहा था कि मैं अँधेरे में तीर छोड़ रहा हूँ । रमा के कबूलनामे ने मेरा काम और आसान कर दिया। पर अफ़सोस इस बात का है कि आज भी हमारी नई पीढ़ी इतनी शिक्षित और आज़ाद ख़्याल होकर भी अशिक्षित और पिछड़े हुए लोगों के सपनों को समझने में नाकाम है । चलो दूसरा केस देखते हैं ।" माधव ने कहा ।

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पूरे ऑफिस को पता चल गया था कि निखिल की बीवी उसे छोड़कर चली गई पर लोगो के लिए यह बात कि बीवी भाग गई किसी सनसनी खबर से कम नहीं थी। कुछ दिन फिर हफ्ता और एक महीना कब तक छुपाता, आखिर सबको पता चल ही गया। पहले रिश्तेदारों, पड़ोसियों और अब ऑफिस वालो को कि छह महीने की शादी इस तरह फनाह हुई जैसे सुनामी की तबाही। निखिल के माँ-बाप देहरादून में रहते थे कुछ समय निखिल के साथ रह और दूसरी शादी की नेक सलाह देकर चले गए। रिश्तेदारों और पड़ोसियों को तो वह शुरू से भाव नहीं देता था इसीलिए उनकी बात बेपरवाह लहजे से सुनकर भी नही सुनता था। अब बात ऑफिस की जहाँ आठ-दस घंटे तो बिताने ही हैं। उसके आते ही चपरासी से लेकर उसके साथी भी मजाक करने से नहीं चूकते थे।

विनय और शेफाली कहते, “यार निखिल तू तो बड़ा पतिव्रता था सारे घर के काम करता था तेरा तो कोई चक्कर भी नहीं था “ फिर क्या हुआ?

तू तो हनीमून पर सिंगापुर या मलेशिया भी ले गया था यार कितनी सेक्सी और हॉट कपललग रहे थे फिर मेघा क्यों भाग गई? शेफाली भी बोल पड़ी।

पूजा ने यह तो एक दिन लिफ्ट देने के बहाने कह भी दिया कहीं और चक्कर तो नहीं था पता करों।

निखिल कोई जवाब नहीं देता बस हां-हू कहकर लोगो को अनसुना कर दिया करता था। वो पहले भी ऑफिस में ज्यादा नहीं बोलता था और अब बिलकुल चुप। एक दिन तो बॉस ने बुलाकर निखिल को ऐसा लपेटा जैसे बीवी न भागकर उसे एड्स हो गया हो।

बॉस बोले, क्या बात हैं निखिल क्या तुम अपनी बीवी को मारते थे ?

नहीं सर कैसी बात कर रहे हैं आप? आप मुझे जानते नहीं हैं क्या? आपको मैंने मेघा से मिलवाया था उससे मिलकर लगा ऐसा कि मैंने उसे कभी कुछ कहा होंगा।

फिर तो निखिल, मैं तो यही कहूँगा कि बीवियों को ज्यादा छूट नहीं मिलनी चाहिए। उनकी लगाम थोड़ी कसकर रखो अच्छा बेटा अब मैं तुम्हे क्या कहो ?

कुछ नहीं कहिए सर? निखिल चुपचाप यह कहकर बाहर निकल गया।

मिस्टर बेचारा, लल्लूलाल और जोरू का गुलाम बनाम लुटा शाहजहा आदि जुमले और गाने गाकर सब उसे चिढाते थे। पर वो केवल अपना काम करता और ऑफिस से निकल जाता। एक दिन जब रमेश की पार्टी थी तो बहुत मना करने पर भी पब ले गए और बोले पी ले निखिल देवदास जितना पीना हैं पी । निखिल भी फ्री की दारू पीता जा रहा था और सोच रहा था कि इन्ही कमीने लोगो ने मेरी शादी में फ्री की दारू पी और सगन भी नहीं दे गए। कमीने आज हिसाब करों इनका।

“यार निखिल, एक बात बता, देख तुझे तेरी’भागी हुई बीवी की कसम रजत ने लगभग यह बात निखिल पर गिरते हुए बोली तो वो भी गुराते हुए बोला, पूछ क्या बात हैं?

देख भाई अगर कोई सेक्स की प्रॉब्लम हैं तो बोल मेरा मतलब अगर जेंट्स प्रॉब्लम हैं तो बता हम किसी को नहीं कहेंगे बल्कि बंगाली बाबा हैं मेरी जान पहचान के। बीवी कैसे खुश होती हैं सब बढ़िया से समझायेंगे ।

निखिल की दारू उतर चुकी थी। वह अपने दोस्तों को धक्का देते हुए बोला "कल बात करते हैं।"

अगले दिन दोपहर को कैंटीन में जब सब ऑफिस कर्मचारी बेठे हुए थे तो निखिल बोला, दोस्तों मुझे एक महीना से ज्यादा हो गया यह देखते हुए कि बीवी मेरी भागी पर अफ़सोस मुझसे ज्यादा आपको हैं। हाल फिलहाल मैं आपको यह बताना चाह्ता हू कि मेरी बीवी क्यों चली गई दरअसल हुआ यू कि उसके माँ-बाप ने उसे बहुत नाज़ो से पाला उसे कोई कमी नहीं दी पर “चार लोग क्या कहेंगे” यह कहकर उसके सपने तोड़ दिए। जो लड़की तीन साल की उम्र से अच्छा गाती थी और एक दिन बड़ी सिंगर बनना चाहती थी उस लड़की की शादी मुझ जैसे एम.बी.ए वाले बोरिग से करवाकर उसके सपनो की तिलांजलि दे दी । जब एक दिन उसने मुझे यह बताया तो मैंने उसे आज़ाद कर दिया ताकि वो अपना सपना पूरा कर सके। मुझ जैसे बेचारा देवदास पति की कामना आज यहाँ बैठी हर लड़की को हैं। मगर मेरी बीवी भाग गई उसमे कमी मेरी हैं। मेरी सेक्स लाइफ सुधारने का लेक्चर देते हुये दोस्तों से कभी पूछे की उनकी बीविया उनसे जान छुड़ाने के लिए कितनी तैयार हैं। बस यह कहकर निखिल एक जाबाज़ सिपाही की तरह बिना पीछे देखे कैंटीन से बाहर निकल सीधा अपनी सीट पर आ गया।

इस बात को एक महीना और बीत गया है । सब ऑफिस के लोग लंच में अपनी बीवियों से कुछ न कुछ बनवाकर निखिल के लिये लाते हैं।अब उसे नहीं सुनाई पड़ता कि कोई कह रहा हो कि “बीवी भाग गई।“

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यार ! मयंक यह हमारे देश में क्या हो रहा है ? देश में छोटी-छोटी बच्चियों के साथ कैसी दरिंदिगी हो रही हैं । मेरा तो मन कर रहा है जान से मार दूँ। खून खौल रहा है क्या। पुलवामा में जो देश के जवानों केे साथ हुआ मुझे तो सारी रात नींद नहीं आई।" क्या कर सकते है यार! यह देश अब रहने लायक नहीं रहा। मैं तो बस अपनी इंजीनियर की पढ़ाई खत्म करके नौकरी के लिए विदेश जाकर रहने वाला हूँ। तुझे तो पता ही है मेरे चाचाजी भी वहीं रहते हैं। अब तो बस परीक्षा का इंतज़ार है।" "क्या मयंक तुझे क्या अपने देश से कोई लगाव नहीं है ? हमेशा देश छोड़ने की बात करता है। तू तो कॉलेज का टॉपर है । जब पूरा बचपन और जवानी इस देश की में बिता दी और अब देश को लौटाने का समय आया तो किसी पराये देश की चाकरी करो ।" साहिल ने चिढ़ते हुए कहा। "साहिल मैं तेरी तरह नहीं सोच सकता देश सेवा में जीवन नहीं गुज़ार सकता।" "लो निशि भी आ गयी" साहिल ने कहा।"

"निशि तुम बताओ क्या पढ़ाई कर हमें अपने देश को छोड़कर विदेश में रहना सही है? क्या हमें अपनी पढ़ाई का लाभ देश को नहीं पहुँचाना चाहिए ? जब वो इंजीनियर आंतकवादी बन सकते है तो क्या
" हम इंजीनियर देश से आतंक ख़त्म नहीं कर सकते?" साहिल ने कहा। "मैं तो खुद बाहर ही सेटल होना चाहती हूँ । देख नहीं रही इंडिया में लड़किया बिलकुल भी सेफ नहीं है।" निशि उदास होकर बोली। "तो क्राइम किस देश में नहीं है क्या वहाँ रेप, बलात्कार, चोरी, छीना झपटी नहीं होती ? साहिल गुस्से से बोली। "जो भी है, क्लास के लिए देर हो रही है। चलो मयंक बाद में इस टॉपिक पर बात करेंगे।" कहकर निशि चली गई।

"बेटा कितना पढ़ेगा चल सो जा और कितना पढ़ेगा ?" "बस माँ कुछ ही दिन रह गए परीक्षा शुरू होने में फ़िर तो तो सोना ही सोना है। बस थोड़ा सा और पढ़ लेता हूँ।" मयंक ने कहा । "ठीक हैं पर सो लेना" कहकर माँ चली गई। "मयंक की माँ दरवाज़ा खोलो जल्दी खोलो ।" "यह तो निशि की मम्मी है ।" मयंक भागता हुआ दरवाज़ा खोलने गया। "क्या हुआ आंटी सब ठीक है न ? "अरे! मयंक !मयंक! निशि दोपहर को कोचिंग लेने गयी थी अभी तक घर नहीं लौटी "आंटी रोते हुए बता रही थी। क्या मयंक सुनकर बेहोश होते- होते बचा । घर के लोग भी जाग चुके थे। "आप अंदर आईये बहनजी" मयंक की माँ सरिता ने कहा । "मैं अभी जाकर दोस्तों से पूछता हूँ आप परेशान मत होइए ।" मयंक कहकर बाहर जाने को हुआ। "अरे ! बेटा सबसे पूछा पुलिस के पास भी गए. कोचिंग भी गए और पुलिस के पास भी गए वो कह रहे है अभी २४ घंटे तक इंतज़ार करो"। निशि की मम्मी बताते हुए लगातार रोते जा रही थी ।

"इंतज़ार करेंगे पागल है पुलिसवाले मैं पता लगाता हूँ निशि का ।" मयंक भागता हुआ साहिल के पास पंहुचा साहिल भी मयंक के साथ निशि और अपने सभी दोस्तों के पास गया पर निशि का पता नहीं चला । सारे मोहल्ले में बात फैल चुकी थी । सब अपनी-अपनी तरह से निशि का पता लगा रहे थे। पर कुछ पता नहीं चला पुलिस भी अब निशि को ढूंढ़ने लग गयी थी । "साहिल निशि को कुछ हो गया तो भाई मैं भी नहीं बचूँगा" मयंक रोते हुए साहिल के गले लग गया । यार ! "मुझे नहीं पता था कि तू उससे इतना प्यार करता है हम तो तुम दोनों को दोस्त ही समझते थे ।" साहिल ने मयंक को सँभालते हुए पूछा । "हाँ यार! दोस्त ही है। मैंने सोचा था कि परीक्षा के बाद मैं निशि को अपने दिल की बात बताऊंगा दोनों भविष्य में अमेरिका में सेटल हो जायेंगे। लाइफ कितनी हसीं हो जाती पर यह सब" मयंक ने आँसू पोंछते हुए कहा। "यार! घबरा मत हम निशि को ढूँढ निकालेंगे बस थोड़ा होंसला रख । हम सब दोस्त निशि की फोटो मिसिंग पीपल में अपलोड करेंगे सभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स और उसके बड़े-बड़े पोस्टर लगवाकर सभी मेट्रो रेलवे स्टेशन हर जगह लगाएंगे निशि मिल जाएंगी ।"

अगले दिन यह सब दोस्तों ने टेक्नोलॉजी का सद्पयोग करके निशि को ढूँढ़ने लग गए । वही मयंक के दिमाग में कुछ और चल रहा था । उसने अपने चाचाजी को अमेरिका कॉल करके उनके रिसर्च के सारे नोट्स मेल के ज़रिये मंगा लिए और न जाने किस खोज में लग गया । निशि को गुम हुए तीन दिन बीत चुके थे । तभी मयंक को अपनी खोज सफल होती नज़र आई। उसने निशि का मोबाइल नंबर अपने सिस्टम पर डाला और उसे लगा वह निशि का पता लगा लेगा । निशि का मोबाइल कोचिंग के बाहर से बन्द आ रहा था । बंद नंबर से जगह का पता नहीं लगाया जा सकता। वही मयंक ज़ोर से चिल्लाया उसकी खोज का पहला प्रयास असफ़ल हो गया। "मैं निशि को कुछ नहीं होने दूंगा वो अख़बार की एक ख़बर बनकर नहीं रह जायेंगी। दामिनी को भी उसका दोस्त उन भेड़ियो से बचा नहीं पाया था । लेकिन मैं निशि को कुछ नहीं होने दूँगा ।" मयंक बार-बार खुद को यह बात बता रहा था । तभी उसका बनाया यंत्र काम करने लगा और धीरे-धीरे एक जगह जो दिल्ली से बाहर थी उसके बारे में बताने लगा ।

निशि मिल गयी! निशि मिल गयी चार दिन से सोया नहीं मयंक बेतहाशा भागता हुआ पुलिस को खींचता हुआ वही पहुंचा । जहाँ 200 से ज्यादा बच्चे और जवान लड़कियाँ कैद थीं । वह इस भीड़ में अपनी निशि को ढूँढ़ता लगा । 'निशि!' वह ज़ोर से चिल्लाया। तभी एक लड़की भागती हुई मयंक के गले लग गई । तुमने मुझे ढूँढ लिया मयंक मुझे लगा मैं कभी भी तुमसे, अपने मम्मी पापा से नहीं मिल पाओगी । कुछ दिन और देर हो जाती तो ये लोग हमें बेच देते। " रोते हुए निशि बोले जा रही थी। "निशि मैं तुम्हें कभी कुछ नहीं होने दूँगा।" यह कहकर उसने निशि को कसकर गले लगा लिया। सभी अपराधी पकड़े गए और एक मानव तस्करी का खतरनाक़ गिरोह पकड़ा गया ।

आज मयंक को राष्ट्रपति के हाथों सम्मान मिला। हर अख़बार, मीडिया, चैनल हर जगह उसकी तारीफ़ हो थी । मंच पर मयंक बुलाया गया। "आज मेरे पास शब्द नहीं है कि मैं क्या कहो। किसी ने सही कहा है कि 'जाके पाव फटे न बिवाई ओ क्या जाने पीड़ पराई।' । । । आज मेरे किसी अपने को चोट लगी तब जाकर मुझे समझ में आया कि अपने को खोने का क्या दर्द होता है । मैंने एक निशि को नहीं बल्कि कितनी ही निशि बचाया है ।" अब मेरे द्वारा बनाया गया यह बटन रूपी यंत्र सभी देश की बहने अपने साथ लेकर चल सकती है खतरा आने पर बटन दबाते ही पाँच मिनट में पुलिस की स्पेशल स्क़ॉड की टीम आप तक पहुँच जाएँगी । और बंद नंबर की जगह पता लगाई जा सकेंगे। हमारे देश के वीर जवान भी अपनी वर्दी के साथ इसे लगाए और आने वाले खतरे को भाँपकर दुश्मन का ख़ात्मा कर सकें । मैं भी अब पुलिस की स्पेशल स्क्वॉड टीम मैं इंजीनियर के पद पर कार्य कर अपने देश भारत को सुरक्षित बनाने का कार्य करूँगा। इस बटन का नाम है विदाउट यू (WITHOUT YOU)"। तालियों से पूरा हॉल गूंज उठा । पूरा देश और ख़ासतौर से उन लापता बच्चो और बेटियों के माता-पिता उसे दुआएँ दे रहे थें। उसकी माँ ने उसे गले लगा लिया मयंक!मयंक!

"मयंक ! मयंक! मयंक उठ जा 10 बज चुके है। बेटा! उठ उठ तू तो कुर्सी पर ही सो गया । कब तक सोया रहेगा मेरे लाल"। माँ मयंक ने हड़बड़ी से आँखें खोली और बोला" माँ आप? "हां! और कौन नीचे निशि कुछ नोट्स लेने के लिए तेरा इंतज़ार कर रही है।" "उठ जा! निशि निशि नीचे हैं यानि वो ठीक है। वह नीचे गया और देखा तो निशि उसके पापा से बात कर रही थी। "यानि मैं सपना देख रहा था ऐसा कुछ नहीं हुआ"। मयंक बड़बड़ाते हुए बोला। "निशि मयंक मुझे कुछ स्टडी मटेरियल चाहिए। " निशि ने कहा। "अभी 10 मिनट में आ रहा हूँ । तुम बैठो ।" मयंक आँख मलता हुआ चला गया।

"थैंक्यू मयंक तुम्हारे नोट्स तो हमेशा हेल्प करते है। और बताओ आगे का प्लान क्या है। अब तो बस हमें देश के बाहर अच्छी सी जॉब मिल जाएं । और बस फिर तो लाइफ सेट क्यों ?" "मैं सोच रहा था निशि बाहर भी चले जायेंगे पहले कुछ देश में रहकर देश के लिए कुछ कर लिया जाए।" क्या मतलब" ? निशि ने पूछा। "मैं सोच रहा हूँ हमारे देश की लड़कियाँ और देश के जवान बिलकुल सुरक्षित नहीं है । "मैं कुछ ऐसा यंत्र रूपी बटन आई मीन डिवाइस बनाना चाहता हूँ जिसे इनके परिवार वाले इन्हे खोने के डर में न जिए । कम से कम कोशिश तो कर ही सकता हूँ "। "अच्छा तुम सेंटी हो रहे हो" निशि ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा। जिन्हे मोहब्बत हो जाती है फिर वो अक्सर ऐसी ही बात करते हैं । "कौन है वो ख़ुशनसीब लड़की? निशि थोड़ा गंभीर होकर बोली बताऊँगा बस थोड़ा इंतज़ार करो ।" मयंक ने मुस्कराते हुए कहा । निशि उसकी मुस्कान को समझ चुकी थी। थोड़ा शरमाते हुए और बात को बदलते हुए बोली "नाम क्या रखोंगे उसका ?" "उसका किसका "? "उसी बटन का"। विदाउट यू (WITHOUT YOU)) मयंक निशि की आँखों में देखते हुए बोला ।



"नेहा मैं तुमसे प्यार करता हूँ मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता ।" "अमन प्यार से पेट नहीं भरता ज़िन्दगी जीने के लिए और भी चीज़े चाहिए होती है, जैसे कि पैसा या यूँ कहो तो एक सिक्योर्ड लाइफ।" "तो वो भी हो जाएँगी न एक दिन बस थोड़ा सब्र कर लो ।" अमन ने विनती करते हुए कहा । "अमन हम काफी समय से साथ है। दोनों एक साथ लॉ कर रहे हैं और तुम जो यह साथ में आईएएस की तैयारी कर रहे हो, भला तुम्हें इससे कुछ मिलने वाला है। तीन बार तुम पेपर दे चुके हो अभी तक तुम्हारा पेपर क्लियर होने पर ही नहीं आया है। तुम कॉलेज के बाद या कोई लॉ फर्म ज्वाइन कर लेना।या फिर कोई सरकारी नौकरी में लग जाना । " "नेहा वक़्त एक सा नहीं रहता आखिर तुम्हें ज़ल्दी क्या है? जल्दी? हमारा लॉ का यह आख़िरी साल है, बस मेरे लिए अच्छे-अच्छे रिश्ते आना शुरू हो चुके हैं।अब मैं चलती हूँ मेरा लेक्चरर हैं । नेहा सुनो ! सुनो! और नेहा बिन सुने ही चली गई ! अमन पुकारता रह गया ।
नेहा सीधे कैंटीन में अपने ग्रुप में पहुँचकर धम्म से कुर्सी पर बैठ गई । क्या हुआ यार ? वही अमन से झगड़ा ? रिंकी ने पूछा । पागल हो गया है, शादी करना चाहता है ।ठीक है, अफेयर हैं घूम-फिर लिए थोड़ी मस्ती कर ली दो-चार गाने गा लिए। इसका मतलब यह नहीं कि उसके साथ घर बसा लूँ ।" नेहा एक ही साँस में बोल गई । उसकी बातें सुनकर रम्या, साक्षी और रिंकी सभी ज़ोर से हॅसने लगे । बेचारा "अमन अच्छा तो हैं कर लियो यार! शादी दिक्कत क्या हैं ? "तू कर ले उस फ़टीचर आशिक़ से शादी क्या ! फ़टीचर आशिक़ ? साक्षी बोली। "और नहीं तो क्या ! कब उसकी ज़ेब में पैसे होते हैं। दोस्तों से उधार माँगकर तो मुझे गिफ्ट देता था । मनाली भी मनीष से पैसे माँगकर ही ले गया था शायद अभी तक इ.एम.आई. ही भर रहा होगा ! कहकर नेहा हॅसने लगी । पर तूने तो पूरे मज़े लिए न दूसरे के पैसे पर । हां लिए तो नेहा ने अँगड़ाई लेते हुए कहा । देख, अभी तक थकान उतरी नहीं मैडम की रम्या तपाक से बोल पड़ी । सब ज़ोर से हॅसने लग गए । चले ? देर हो रही है लेक्चरर तो बंक हो गया। नेहा किताबें उठाते हुए बोली।
दिन गुज़रे और लॉ कॉलेज का आख़िरी दिन आ गया । और यह फेयरवेल । सब एक दूसरे से मिल रहे थे। अमन नेहा के लिए उसके मनपसंद लाल गुलाब लाया था । पर नेहा अपने सभी दोस्तों से मिलने में लगी हुई थी उसने देखकर भी अमन को नहीं देखा । आख़िर वह अपने क्लास मेट श्याम से अलविदा कह अमन के पास पहुँची । "तुम अभी तक गए नहीं अमन ? " "कैसी बातें कर रही हूँ नेहा ? मैं कैसे जा सकता हूँ ? तुमसे मिले बैगर इस बार आईएएस क्लियर होते ही, मैं तुम्हारे घर आऊँगा रिश्ता माँगने।" "दिमाग ख़राब हो गया तुम्हारा देखो मेरा और तुम्हारा कोई मेल नहीं है । पहले अपनी बहनों की शादी कर लो तुम्हारे पिताजी की पेंशन के पैसे से ही तुम्हारा घर चल रहा है। कोई नौकरी कर लेना फ़िर अपने लिए कोई अपने जैसी ही मध्यम वर्गीय सी लड़की देखकर अपना घर बसा लेना।" नेहा! अमन चिल्लाते हुए बोला । मुझे तो पहले ही पता था तुम्हारा प्याऱ सिर्फ दिखावा है । तभी तो तुम अपने दोस्तों के साथ मिलकर मेरा मज़ाक उड़ाती थी फ़टीचर आशिक़ यही न? हाँ यहीं "फ़टीचर आशिक़, फ़टीचर आशिक़" और कुछ सुनना है तुम्हें ।" नेहा पैर पटकती हुई चली गई । और अमन को महसूस होने लगा कि गुलाब के फूलों से कांटे चुभने लगे हैं ।
नेहा ने फ़ोन नंबर चेंज करा लिया । और निहाल से शादी करकर घर बसा लिया । निहाल का घड़ियों का बिज़नस था । देश -विदेश में वह अच्छा कमा रहा था । नेहा को कोई कमी नहीं थी । बस कभी निहाल का बिज़नेस उसे वक़्त नहीं दे पाता तो वह खीझ उठती और निहाल से लड़ने लगती। बस ऐसे ही ज़िंदग़ी गुज़र रही थी । उसकी सारे दोस्तों की शादी हो चुकी थी। बस एक श्याम बचा था जिसकी शादी में रात को जाना था चार साल बीत चुके हैं और सब दोस्त कैसे अपनी ज़िन्दगी में तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं । वो भी तो कितनी आगे बढ़ चुकी है। यही सब सोचते हुए उसने टीवी चलाया । कितने दिनों बाद आज टीवी देखा है। वरना घर में लोगो को आना -जाना और कभी फुरसत मिले तो कंप्यूटर पर वक़्त गुज़र जाता।
अरे ! यह तो अमन हैं ज़ी न्यूज़ पर क्या कर रहा है? उसके हाथ एकाएक रुक गए रिमोट पर । वहाँ से एंकर कह रही है, "मिलिए अमन कुमार आई.पी.एस. जिन्होंने छत्तीसगढ़ जैसे खरतनाक नक्सल क्षेत्र से नक्सलवादियो का सफ़ाया कर दिया और कितने ही ग्रामीण लोगों की जान बचाते होते अपना फ़र्ज़ बखूबी निभाया । देश को नाज़ है ऐसे बहादुर अफ़सर पर।सरकार अगली २६ जनवरी को इन्हे सम्मानित करेगी।" अमन आई.पी.एस,! इसे तो आई.ए.एस. बनना था । अमन टीवी पर ? नेहा को यकीं नहीं हो रहा था । अरे ! इसे बंद करो और तैयार हो जाओ शादी छतरपुर है । हमें शाहदरा से जाने में वक़्त लगेगा , यह कल का इंटरव्यू दस बार दिखाएंगे। नेहा ने घूरकर निहाल को देखा और जाने के लिए तैयार होने चली गई ।
सारे रास्ते नेहा को अमन की वही बात याद आती रही कि 'वक़्त कभी एक सा नहीं रहता नेहा ।' शादी में नेहा के सभी दोस्त मिले श्याम भी नेहा को देखकर खुश हुआ । और तभी उसकी नज़र भीड़ पर गई, जहां सभी किसी एक शख़्स को घेरकर खड़े थे । जैसी ही भीड़ हटी तो देखा, यह तो अमन है। भीड़ से निकलकर कब वो नेहा के पास पहुँचा उसे पता ही नहीं चला । हैलो नेहा कैसी हूँ ? नेहा धीरे से बोली ठीक हूँ । तभी निहाल वहाँ आ पहुँचा । आप एक दूसरे को जानते हैं ? जी बिलकुल । दोनों एक ही कॉलेज में थे । मेरा नाम अमन है। आपको कौन नहीं जानता, सर आपने तो कमाल कर दिया ।यू आर ग्रेट। कहते हुए निहाल ने अमन से बड़ी ही गर्मजोशी से हाथ मिलाया।
आज पूरे देश को आप पर नाज़ है। नेहा तुमने बताया नहीं कि अमन को तुम जानती हूँ। तुम्हारे सभी दोस्तों से मिला हूँ। बस इन्हीं का ज़िक्र नहीं किया कभी । नेहा कुछ बोलती इससे पहले ही अमन बोल पड़ा, अरे ! इन्हे अमन नाम नहीं याद रहा होगा। वैसे भी मैं इनके लिए था "फ़टीचर आशिक़" कहकर अमन ज़ोर से हसता हुए चला गया । नेहा की आँखे भर आई । यह अमन जी क्या कह रहे थे ? तभी निहाल को उसके परिचित ने बुला लिया । और नेहा धीरे से आँसू पोंछते हुए बोली । "फ़टीचर आशिक़" !!!!!!!!!!
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बड़ी देर से खुद को शीशे मैं निहारते हुए बोली, "कि अब पहले से ज्यादा डरावनी लग रही हूँ । त्वचा बिलकुल काली हो गई हैं । और धीरे-धीरे कुत्ते के मॉस की तरह लटकने भी लगी हूँ । दाँत बिलकुल नुकीले और, ज्यादा बड़े हो गए है। उसे खुद से ही डर लगने लगा था। रात के बारह बज चुके हैं । जनता कॉलोनी वाले बेशर्म लोग सो गए होंगे, ज़रा वहाँ चलकर देखो तो कि आज कौन मेरा शिकार बनने वाला है। अपनी लाठी लेते हुए और से बजाते हुए वह जनता कॉलोनी की ओर चल पड़ी। ये कम्बख़त लोग अब मेरे डर से दरवाज़े पर यह ताबीज़ और ॐ के निशाँ बनाए रखते हैं । तब तो ईश्वर से डरे नहीं अब पापी लगे ईश्वर की मदद मांगने लगे । लगभग चिल्लाते हुए वह जनता कॉलोनी के घर के आगे से निकल रही थी। अरे ! वाह ! यह बूढ़ा तो बिना कोई ईश्वर की मदद लिए आज आराम से सोना चाहता है । यहाँ तक कि इसने तो घर के बाहर कुछ ॐ भी नहीं लगवाया कहकर चम्पा उसके घर के अंदर घुस गई।

घर में बिलकुल सनाटा था । एक कोने में बूढ़ा चुपचाप सो रहा था। इस बूढ़े की बीवी तो पिछले साल ही मर गयी थी। एक बेटा था वो भी छोड़कर भाग गया। अब क्या मरे हुए को मारो यह कहकर उसने बूढ़े की चादर खींच ली। और उसे ज़ोर से ज़मीन पर पटका । कौन है ? कौन है ? कहकर वह चिल्लाने "लगा बचाओ" "कोई बचाओ"। अरे! कोई नहीं आएगा तुझे बचाने कहकर चम्पा ने उसके चेहरे पर दो-चार थप्पड़ रसीद कर दिए। और उसे हवा में घुमा दिया। "मुझे छोड़ दे चम्पा मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है? क्यों कमीन कैसे तो बुरी नज़र से मुझे देखता था। बहन चम्पा कभी कुछ किया तो नहीं तेरे साथ" । "हलकट अब बहन कहीं का । जा भाड़ में ।" चम्पा ने गुस्से में कहा । और ज़ोर से लात बूढ़े को मारकर आगे बढ़ गई । और सुन अगली बार दरवाज़े पर ॐ लिखवा लियो समझा दमे का मरीज़।" बस यही कहते हुए चम्पा हवा के झोंके की तरह बाहर निकल गई।

रात के एक बज चुके हैं । गली में चुड़ैल का खौफ पूरा है । एक दहशत है पूरे सात-आठ महीनों से इस मोहल्ले में इसी चुड़ैल के डर के कारण काफी लोग मोहल्ला छोड़ कर जा चुके हैं । और जो लोग नए हैं, उन्हें मकान बेचने के लिए लगा रखा बचने पर जब तक रहना हैं तब तक चम्पा चुड़ैल से बचने के लिए उन्हें भगवान का सहारा लेना ही होगा । इन नए मकानों को यह पता है कि चम्पा की कोई प्रेम कहानी हैं और सब कॉलोनी वालों ने उसके आशिक़ को मार डाला था और वो भी इसी प्रेम के दर्दनाक अंत के कारण खुदखुशी करकर सबसे बदला ले रही हैं । पर सच तो यह भी है कि वो मारती नहीं है बल्कि डराती है। और इतना डराती है कि आधे लोग दिल का दौरा पड़ने से मर चुके हैं।

गीता का घर आते ही वह ज़ोर से चिल्लाई "हो गीता कब आएँगी तो वापिस तुझे आना होगा। उसकी इतनी दहाड़ से ही पेड़ भी थर-थर काँपने लगे हैं। गीता तेरे कारण मैं अभी तक भटक रही हूँ। तुझे मैं छोड़ोगी नहीं।" यह कहते ही उसका चेहरा लाल हो गया। गीता को गए एक साल हो चुका हैं । परन्तु उसने घर बेचा नहीं है ।अपितु एक साल से घर पर ताला लगा है । कहानी क्या है किसी को पता नहीं पर उन्हें पता है कि जब गीता घर आएगी तो उसका वो आख़िरी दिन होगा। सुबह हो चुकी है। सब जाग चुके हैं और वो बूढ़ा जिसने कल मार खाई थी । अपनी आप-बीती लोगों को सुना रहा है कि किस तरह वो रात को ॐ लिखना या पीर बाबा का ताबीज़ पहनना भूल गया था।

कई हफ़्ते बीत चुके है। चम्पा चुड़ैल गली में हुंकार मारकर घूम रही है। उसकी आँखें डरावनी है। वह तभी ज़ोर से चीख़ती है। अंदर सारे मोहल्ले के लोग अनिष्ट की आशंका के कारण पलंग के नीचे छुप चुके हैं ! गीता के घर का दरवाज़ा पर ताला नहीं है। वह आँधी की तरह अंदर घुस जाती है ।गीता को गीता सोता देखकर उसके पलंग पर ज़ोर से धक्का मारती है । चल उठ डायन मेरे पैसे लेकर आ । कौन ? कौन? कैसे पैसे गीता बुरी तरह डर जाती है ! मैं चंपा याद आया? हाँ चम्पा चल दे मेरे पैसे वरना अभी तेरा काम तमाम करती हूँ। अरे ! चम्पा तुम तो मर गयी थी न ? मर चुकी हो पर अपनी पगार लेने के लिए एक साल से भटक रही हूँ ! कहकर गीता को घूँसा मार दिया । गीता दर्द से तड़पी और संभलते हुए बोली कि तुझे पता है कि मेरा कोई कसूर नहीं था मेरे शराबी पति ने तेरी पगार शराब में उड़ा दी जब भी मैं पैसे माँगती तो वो मुझे बेतहाशा पीटता था । उस दिन तुझे गालियाँ देकर घर से निकाला । और फिर मुझे पीटा बाद में पता चला कि तेरी मौत हो गयी है।

"हाँ मैं तेरे घर से पागलों की तरह गुस्से में बड़बड़ाते हुए निकली और रास्ते में एक गाड़ी से टक्कर हो गई । बस सिर फटा और मैं खत्म। यह सब बोलते हुए चम्पा गीता के सामने आकर खड़ी हो गई , उसका डरवाना रूप किसी ताड़का से कम नहीं था बिखरे बाल 'तिरछी-टेढ़ी आँखें जो अपनी जगह टिकती नहीं थी।झाड़ू से भी बुरे बाल उसके लम्बे दाँत और खूनी नाखून देखकर गीता बेहोश हो गई। और चम्पा गीता के अंदर घुस गई। गीता के अंदर घुसते ही उसने दूसरे कमरे को ज़ोर से लात मारी गीता का पति मोहन उठ खड़ा हुआ क्यों री गीता पागल है क्या ? पिटेगी अभी ? वैसे भी एक साल से अपनी माँ के घर रहकर बड़ी झाँसी की रानी बनी फिरती है। कहते हुए जैसे ही मोहन ने हाथ छुड़ाया चम्पा ने उसका हाथ मोड़ दिया, तू मुझे रुक मारेगा ! मुझे चम्पा को ? अभी बताती हूँ । उसने पास रखे डंडे और झाड़ू से पीटना शुरू किया और मोहन चिल्लाने लगा, रोने भी लगा। "तू मेरी गीता नहीं हो सकती। हाँ मैं तेरी गीता नहीं, चम्पा नौकरानी हूँ। जो तेरे घर नौकरानी का काम करती थी। साले पैसे वाला होते हुए भी मुझ गरीब का पैसा भी दारू में खा गया मुझे उस दिन अपने बच्चो की फीस भरनी थी" फिर मोहन को घुमा घुमाकर पीटा "मुझे माफ़ कर दे । माफ़ कर दो। कभी नहीं । मुझे जाने दे मैं कल ही जाकर तेरी तीन महीने की पगार के साथ-साथ कुछ और पैसे भी तेरे बच्चो को दे आऊँगा कहकर मोहन ने चम्पा के पैर पकड़ लिए।सुन अगर कल तो मेरी झोपड़ी पर नहीं गया । तो तू जान से जायेंगा। फिर ॐ भी तुझे नहीं बचा पाएंगा।

अगले दिन मोहन उस संकरी सी गली में जा पहुँचा और चम्पा के घर पहुंचकर न सिर्फ उसके पैसे लौटाएं बल्कि उसके तीन बच्चों की पूरे साल की फीस मास्टरजी को दे आया तथा हर संभव मदद का वादा कर घर लौट आया । उस दिन के बाद चम्पा चुड़ैल की कहानी पुरानी हो गई । उसके खौफ के किस्से बस किस्से ही रह गए। मोहन अब शराब भी कभी-कभी पीता हैं और गीता को मारता भी नहीं हैं। मन ही मन गीता चम्पा चुड़ैल को धन्यवाद देती हैं ।



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सौम्या मेट्रो मे बैठी अपने स्टेशन का इंतज़ार कर रही थी । वह रोज़ रिठाला एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने जाती है, फिर वापिस अपने घर जाने के लिए इंदरलोक मेट्रो स्टेशन पर उतरती है। वहां से उसके घर का रास्ता बीस मिनट का हैं । उसके दो बच्चे उसका इंतज़ार कर रहे होते है कि कब माँ घर आए और आकर उनको खाना खिलाए।  आज मेट्रो रास्ते में दो बार ख़राब हो चुकी है। और उसका मन है कि वो उड़कर किसी तरह अपने घर पहुँच जाए । आँखे बंद करती  है  तो  वह सात साल पीछे पहुँच जाती है। शादी करके वह कितने अरमानों से साहिल के घर आई थी। सबकुछ अच्छा भी गुज़र रहा था। साहिल एक अच्छी कंपनी एप्पल में मार्केटिंग मैनेजर की पोस्ट पर था । अच्छा कमाता था । पिताजी ने उसका घर और काम देखकर ही एक योग्य वर चुना था ।  साहिल सचमुच योग्य था उसका आदर करता था और उसके प्रेम में भी कोई कमी नहीं थी । शादी के छह-आठ महीने ऐसे बीते कि कोई सपना हक़ीक़त में बदल चुका हूँ । वह अपने सभी दोस्तों से कहती फिरती थी कि शादी करके सेटल हो गई है और खुश भी बहुत है । वह अपने हर दोस्तों से पूछती रहती थी कि, "कब शादी कर रहे हो ?" "सेटल क्यों नहीं हो जाते?" सब उसे कहते कि "हर किसी को  तेरी तरह   22-23  साल की उम्र में  कोई राजकुमार नहीं मिलता  सेटल होने के लिए ।" वह अपनी किस्मत पर इतराती है कि सही समय  पर सेटल हो गई है और उसके माँ-बाप भी अपनी ज़िम्मेदारी से फारिग हो गए । 

शादी को एक साल बीता था, शादी की वर्षगाठ थी। साहिल ने डायमंड की रिंग दी थी। कुछ दिन गोवा में बिताए एक अच्छी वर्षगाँठ मनाने के बाद जब वह घर आई तो उसने चहकते हुए कहा कि "इतना अच्छा समय तो हमने अपने हनीमून सिंगापुर में भी नहीं बिताया था । थैंक्यू ।  "योर वेलकम स्वीटहार्ट!" साहिल ने भी गले लगाते हुए कहा था । अच्छा! तुमसे एक बात करनी थी। मैं सोच रहा था कि तुमने बी.एल.एड.किया हुआ है। फिर जॉब क्यों नहीं कर लेती ?" "जॉब ???? सौम्या ने कहा" ! पर क्यों ? सौम्या देखो, अब साल बीत चुका हैं । फॅमिली के बारे में सोचेंगे ।  जितना कमाएंगे उतना अच्छा हैं । साहिल ने कहा ! पर तुम्हारी सैलरी से तो गुज़ारा अच्छा हो रहा है।  मम्मी तुम  और मैं ही तो हैं । कल को बच्चे होंगे तो क्या तुम्हारी एक  महीने की ढाई  लाख सैलरी कम पड़ेगी ? सौम्या का जवाब था। गाड़ी की  ई.एम.आई. भी भरता हूँ और भी लेना देना लगा  रहता है ।  तुम्हारे  पापा  ने तो शादी में  गाड़ी दी  नहीं। यह कहकर साहिल बाहर निकल गया।  सौम्या हैरान सी देखती रह गई । उसे  हमेशा  से लगता था  कि  नौकरी   करना   हमारी  मर्ज़ी  होनी चाहिए  कोई मज़बूरी  नहीं। वह  ऑनलाइन  शेफ  बनकर  अपना  शौक  पूरा  करना  चाहती  है, अब  पैसे  आए  न  आए  ऐसी  कोई गरंटी  थोड़ी  न है । 

आज छह साल हो गए । उसे इसी रिठाला के स्कूल में जॉब करते हुए । छह साल में उसकी सैलरी तीस हज़ार तक पहुँची  है और साहिल महीने के पाँच लाख कमाता है।  पहले बच्चे के बाद उसने बहुत कहा कि अब वह जॉब छोड़ना चाहती है  पर साहिल और उसकी माँ ने साफ़ इंकार कर दिया । अब रोज़ वो घर जाती है, बच्चों  के लिए  कुछ  बनाती  है। वे  उसके  बिना खाना  नहीं  खाते और  उनकी दादी  खाना  खिलाने  के लिए  ज़िद भी नहीं  करती । फ़िर थोड़ा आराम कर शाम के खाने की तैयारी करती है। बच्चों  को होमवर्क कराती है। स्कूल का भी काम होता है।  साहिल भी ऑफिस से  थक हुआ आता है । दोनों 
 में बातचीत तो नाम भर की रह गयी है। कभी बच्चे  ज़िद  करे  तो शनिवार या रविवार  घूमने ले जाता है।

उसका स्टेशन आ चुका है। और  भी वर्तमान  में  लौट  आई  है। अरे! रीना तू यहाँ कैसे? सौम्या एक युवती से टकराते हुए बोली। "सौम्या तू ? गले लगाते हुए रीना बोली।   किसी रिश्तेदार के से मिलने आई थी।  दो साल  हो गए शादी को रौनक के रिश्तेदार बुलाते ही रहते है।  रीना ने कहा। "चलो अच्छा हैं, सेटल हो गयी। तू भी फाइनली।  सौम्या ने कहा। हाँ, यार अब हुई हो सेटल तीस के बाद ।  और बता यहाँ कैसे ?स्कूल से आ रही थी। जॉब करती हूँ। घर आ न कभी ? तेरा शनिवार और एतवार तो छुट्टी होती होंगी ? सौम्या ने पूछा ! अरे ! जॉब छोड़ दी! रौनक कहा कि मैं इतना कमा रहा हूँ।  किसलिए ? बस, तुम हमारी   ज़िन्दगी और घर सम्भालो फिर मैं भी थक गई थी, बीमार रहने लगी थी।  चल, मैं चलती हूँ ! तेरा फ़ोन न. वही हैं ? हाँ, वही हैं ! कहती हुई रीमा चली गई।

 सही मायने में सेटल तो रीना है। अगर  कोई पायलट  है  तो  वो क्यों  घर  बैठेंगी  पर  अगर  कोई  ज़मीन पर ही रहना  चाहे  तो उसे ज़बरदस्ती  पायलट  बनाना  ज़रूरी  है  और  उड़ना  उसकी मज़बूरी  भी नहीं है। यही सब सोचते-सोचते वो घर पहुँच  गई । घर पहुँची तो  बच्चे बिस्कुट खा रहे थें  ।  सास सो रही थी ।  उसने भी दवाई खाई ।  कई दिनों से उसे भी कमजोरी महसूस हो रही थी।  डॉक्टर ने  कुछ ताकत की गोलिया दी है।  जिन्हे खाना याद नहीं रहता।  तभी पिताजी का फ़ोन आया कि मामा जी आये हुए है, कह रहे है  कि गीता को समझाओ कि अच्छा लड़का है।  शादी करके सेटल हो जाये । लो बात करो ।

"उसे जीने दीजिये, मामाजी।  जब होना होगा सेटल हो जाएगी।  उसका मन नहीं हैं तो जिद न करे। शादी करकर भी सही मानिये में कौन सेटल होता है। यह तो वक़्त बताता है । कहकर उसने फ़ोन रख दिया। और बच्चो को सुलाने लगी।  

Me too by Swatigrover in Hindi

आज ऑफिस में कैंटीन में यही बातें चल रही थी ये जो इतने दिनों न्यूज़, इन्टरनेट और अखबार में आए दिन मी टू से सम्बन्धित लगातार खबरें आ रही हैं। रमेश ने कहा, “यार ये सब ऐसे ही हैं नाना पाटेकर, संस्कारी आलोक नाथ, एम. जे. अकबर, साजिद खान जाने कितने लोग कोई साफ़ सुथरा नहीं है।” मीना ने कहा, तुम्हें क्या मालूम कैसे-कैसे साँप और भेडियों से हम लड़कियाँ घिरी रहती हैं।

विरेन चुपचाप बैठा हुआ सिर्फ प्रियंका को देख रहा था और उसके चेहरे के भाव पढ़ने का प्रयास कर रहा था। बहुत प्यार करता है उससे, पर कभी कह नहीं सका था, पर अब उसकी अगले महीने शादी है। और शादी भी किसी राजकुमार से हो रही हैं। एक नयी दवाई कंपनी का प्रोविजनल डायरेक्टर समीर खन्ना।
अरे! तू भी तो कुछ बोल प्रियंका? यह क्या बोलेगी यह बस कुछ दिन की मेहमान है। इससे तो मिल गया एक अच्छा खासा पैसा वाला बकरा। सीमा के इतने कहने पर ही सब खिलखिलाकर हँसने लगे।
विरेन बुझे मन से चला गया उसे भी पता हैं उसकी इतनी औकात नहीं कि प्रियंका के ख्वाब पूरे कर सके। ऑफिस से निकलते ही मनोज मिल गया था उसका बचपन का दोस्त। आज मिल ही गया तुझे टाइम ? बता सब बढ़िया ? विरेन ने उसे गले लगाते हुए पूछा। “हां यार! चल सामने वाले पब में बैठते हैं। कुछ उदास लग रहा हैं मनोज ने पूछा।“ कुछ नहीं यार जिस लड़की से प्यार करता हू उसकी अगले महीने शादी हैं बस इसलिए कहीं मन नहीं लग रहा।
उसे कभी बताया कि तू उससे पसंद करता है। मनोज ने पूछा।
जब तक बताता तब तक देर हो चुकी थी और उसके मंगेतर के बारे में सुनकर हिम्मत नहीं हो रही हैं।
“कौन हैं वो?” मनोज ने पूछा
सिप्रा जो नई दवाई कंपनी आई हैं उसका मालिक ही समझ समीर खन्ना। प्रियंका को एक शादीमें देखा था। तभी रिश्ता भेज दिया था कबाब में हड्डी कही का। विरेन ने गुस्से में कहा।
नाम सुनकर मनोज के हाथ पैर कापने लगे पसीना आ गया उसके चेहरे पर। क्या हुआ तुझे ए.सी. में कैसे पसीना आ रहा हैं। काउन्सलिंग करवा रहा था बंद कर दी क्या। विरेन के चेहरे पर चिंता साफ़ झलक रही थी।
मनोज को काटो तो खून नहीं वह कुछ बोल नहीं पाया उसने बस यही कहा कि बाहर चलते है। बाहर चलकर मनोज ने राहत की सास ली। “यार! विरेन तुझे पता हैं मैं क्यों काउंसलिंग ले रहा था ?”
“नहीं यार, मैंने जानबूझकर नहीं पूछा मैंने सोचा, जब ठीक हो जायेंगा, तो अपने आप बतायेंगा। अब बताना चाहता है, तो बता?”
यार! आज से ठीक पाच साल पहले जब मैंने नया-नया ऑफिस ज्वाइन किया था तो उसके मेनेजर ने एक दिन ओवरटाइम के बहाने मेरा यौन शोषण किया था और मैं इतना डर गया था कि पुलिस क्या किसी को न बता सका और कुछ उसने भी मुझे धमकी दी थी कि अगर मैंने बताया तो मुझे पागल साबित कर मेरा करियर ख़राब कर देगा। बस तब से बस यह काउन्सलिंग करवा रहा था ।
“कौन था वो कमीना? साले की जान ले लेता हू होमोसेक्सुअल हैं क्या?”
नहीं बस, एक विकृत सोच का जीवंत उदहारण हैं। कई लड़के-लडकियों का भी फायदा उठाया हैं। नाम हैं समीर खन्ना।
क्याआआआआ विरेन को कांटो तो खून नहीं मासूम सी प्रियंका का चेहरा उसकी आँखों के सामने आ गया। उसने हमेशा प्रियंका को ऑफिस की हर बुरी नज़र से बचाया हैं और आज वो किस हैवान के पल्ले बंधने जा रही है। “चल, पुलिस के पास चलते है मनोज।“ विरेन ने कहा।
नहीं यार! मैं कहीं नही जा रहा मेरे में हिम्मत नहीं है। हां तेरे लिए इतना कर सकता हू कि प्रियंका को यह बताकर उसे सबूत दिखा सकता हू। आगे फिर उसकी ज़िन्दगी जो चाहे वो करे।
विरेन ने मनोज को बहुत समझाया, पर वो नहीं माना। हारकर उसने प्रियंका को मनोज के घर बुलाया ।
क्या बात हैं? विरेन मैं बड़ी मुश्किल से रात के आठ बजे यहाँ आ पायी हू। तुम्हे तो पता ही हैं कि शादी पास आने वाली हैं। एक हफ्ते मे ऑफिस से रिजाइन दे दूंगी। पहले यह देख लो, फिर बात करना मनोज ने सारी बात और सी.डी. प्रियंका को दिखा दी। प्रियंका बेहोश होते-होते बची। “नहीं यह सच हैं क्या? अगर यह सच हैं तो तुम यह सबूत पुलिस को भी दे सकते थे। मुझे क्यों दिखा रहे हो?” प्रियंका ने कहा।
“दिखा सकता था, पर नहीं दिखा पाया लड़कियों की ही सिर्फ इज्ज़त नहीं होती लडको की भी इज्ज़त होती है। हमे भी खौफ हैं और यह समीर खन्ना कोई मामूली व्यक्ति नहीं हैं बड़े-बड़े लोगो से इसकी जान पहचान है, तभी तो मेनेजर से मालिक बना फिरता है। और मुझे यह सी.डी. पिछले साल ही मिली है। उसे लगा था कि कैमरे बंद हैं पर कैमरा चल रहा था और सब कुछ रिकॉर्ड हो गया उसने यह सी.डी. खुद रख ली। मगर पिछले साल उसके ही ड्राईवर ने नौकरी छोड़ने से पहले मेरे द्वारा की एक आर्थिक मदद का एहसान इस सी.डी. को चुराकर और मुझे देकर उतार दिया।“ मनोज ने कहा।
“देखो मनोज तुम देर न करो अभी पुलिस के पास चलते हैं न जाने कितने मासूम इसका शिकार बन चुके होंगे और अब सौ चूहे खाकर मुझसे शादी करकर यह बिल्ली हज को जा रही हैं। तुम्हे पहल करनी होगी,” प्रियंका ने कहा।
“देखो प्रियंका, सच तो यह हैं कि मेरा दोस्त विरेन तुमसे बहुत प्यार करता हैं और मैंने उसी दोस्त के प्यार का मान बचाने के लिए यह सब बताया हैं बाकि मेरा करियर, मेरा प्यार, परिवार बहुत महत्व रखता है। मेरा काम था बताना, आगे तुम्हारी मर्ज़ी जो करना हैं वो करो।“ मनोज यह कहकर कमरे से चला गया।
प्रियंका भी जा चुकी थी और विरेन भी इस तस्सली के साथ घर पंहुचा कि वो फिर से प्रियंका को बचा पाया।
अगले दिन हर न्यूज़ चैनल सबमें तहलका मचा हुआ था मी टू के तहत इतना बड़ा खुलासा ‘सिप्रा कंपनी के सह मालिक समीर खन्ना को हुई जेल आज से ठीक पाच साल पहले अपने ही जूनियर का यौन उत्पीड़न किया’ और भी चार-पाच लड़के, लडकियों के इसी मी टू हैशटैग ने समीर के कुकर्म का भांडा फोड़ दिया। उसे जेल हो गयी। कंपनी के शेयर एक दिन में गिर गए। विरेन और प्रियंका खुश थे कि मनोज ने हिम्मत दिखाई। और उसकी हिम्मत को देखते हुए और भी लोग आगे आए। सभी प्रियंका को इस शादी से बचने पर बधाई दे रहे थे।
“यह सब तुम्हारे कारण हुआ हैं विरेन, अगर तुम न होते तो पता नहीं मेरी ज़िन्दगी क्या होती थैंक यू।“ प्रियंका ने भावुक होकर कहा।
“कैसी बातें कर रही हो तुम। तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो और यू नो डट
आई लाइक यू” विरेन एक मुस्कान के साथ बोला।
“मी टू” कहकर प्रियंका हँसने लगी और विरेन ने उसे गले लगा लिया। सच तो यह हैं कि इस देश को सिर्फ इसी मी टू की ज़रूरत हैं। काश! यह बात इस समाज के लोग भी समझ पाते।।।।।।
Padmavati by Swatigrover in Hindi


पूरे भारत में पद्मावती फिल्म को लेकर बवाल मचा हुआ था ! टी.वी पर वही खबरे बार-बार आ रही थी! और अपने घर में बैठी पदमा सोच रही थी , कौन थी यह रानी? मेरी तरह सुन्दर या मुझसे भी ज्यादा सुन्दर ? बड़ी बहादुर थी वो जो आग में जल गयी ! बारहवीं कक्षा तक पढ़ी पद्मा इसी बात पर इतरा रही थी कि उसका नाम ,रूप-रंग पद्मावती जैसा ही हैं, तो वो भी किसी रानी से कम नही हैं ! और लड़को की तो वैसे ही लाइन लगी हुई हैं ! 

अपने व्यक्तित्व पर इतराती हुई जब बालकनी में आई तो देखा कि सामने वाले घर का महेश उसे कुछ इशारे कर रहा था उसने एक तिरछी नज़र डाली और अंदर आ गयी ! और बड़बड़ाते हुए बोली कि " कहा महेश और कहा मैं, पद्मा जिसके लिए तो कोई राजारतनसेन ही आयेंगा नहीं तो वह कुंवारी ही रह जायँगी, यह महेश जैसे सड़क छाप आशिक से शादी नहीं हो सकती !"
पत्राचार से फॉर्म भरने जा रही पद्मा सोच रही थी कि क्यों बाबा पढाई पर इतना ज़ोर देते रहते हैं भला पद्मावती भी कभी पढ़ती थी ? मन ही मन कुढ़ती हुई जब यूनिवर्सिटी के दरवाज़े पर पहुंची तो देखा कि महेश अपने दोस्तों के साथ खड़ा उसका इंतज़ार कर रहा हैं ! "कमीना मेरा पीछा कर रहा हैं " क्यों रे तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ तक आने की ? "एक साल हो गया तेरे प्यार में पढ़े हुए बता शादी करेगी मुझसे ?"महेश की आँखों में प्रेम साफ़ झलक रहा था ! "तूने अपनी शक़ल देखी हैं फ़टीचर कही का ! मैं पद्मावती हूँ तुझ जैसे नौकरों से शादी करने के लिए पैदा नहीं हुई !" कहते हुए पद्मा पैर पटकते हुए घर चली गई और सोच लिया बाबा को कहूंगी मुझे नहीं पढ़ना !
महेश का दिल और सपने दोनों टूट गए रही-सही कसर दोस्तों ने मज़ाक बना कर पूरी कर दी ! पदमा का रिश्ता बाबा ने तय कर दिया लड़का सचमुच पदमा के टक्कर का था सुन्दर, धनी और राजपूत जात का रोबीला लड़का ! पदमा खुश थी घरवाले रोके की रस्म का सामान ख़रीदीने बाहर गए थे और वो फिर बालकनी में खड़ी पद्मावती फिल्म का विरोध करने वालो का शोर और नाटक देख रही थी !
तभी घंटी बजी दरवाज़ा खोला तो महेश खड़ा था ! "तू क्या आया हैं यहाँ करने चल भाग यहाँ से !" "मैं तुझे आज अपना बनाने आया हूँ" यह कहकर उसने पद्मा को ज़ोर से अंदर की तरफ धक्का दिया और दरवाज़ा बंद कर दिया ! पदमा चिल्लाई मगर शोर के कारण उसकी आवाज़ कौन सुने? महेश पर वासना इतनी हावी थी कि वह पद्मा के साथ ज़बरदस्ती करने लगा ! "तेरी शादी होगी तो मुझसे वरना मैं तुझे किसी के लायक भी नहीं छोडूंगा !" महेश उस समय किसी वहशी से कम नहीं लग रहा था !
पदमा उसकी गिरफ़्त से निकलकर रसोई में पहुंची और हाथ में माचिस उठाकर बोली "नहीं मैं तुझे जीतने नहीं दूंगी उसे महेश साक्षात् खिलजी लग रहा था और रानी पद्मावती का आभास कर स्वयं को जलाने के लिए हुई तो माचिस नहीं जली और महेश को अपनी तरफ बढ़ता देख चाकू उठाकर उस पर वार पर वार कर दिए! लहूलुहान महेश घायल होकर ज़मीं पर गिर गया और करहाने लगा ! मगर पदमा को एक ही आवाज़ सुनाई दे रही थी जो उसके अंतर्मंन से निकल रही थी कि 'वर्तमान 'पद्मावती की ज़रूरत जौहर नहीं हैं आज की नारी मरेगी नहीं मारेगी..... "करणी सेना वालो का हजूम जा चुका था ! बिना जाने किस पद्मावती के सम्मान की रक्षा करने की ज़रूरत हैं !!!

diwali ke baad by Swatigrover in Hindi

 सुमित आज बड़ा खुश था उसका ऑफिस में प्रमोशन हो गया था अब वह एक टेलिकॉम कंपनी का सीनियर मैनेजर बन चुका था। सब उसे ऑफिस में बधाईयाँ देते हुए उसके द्वारा दी गई पार्टी का आनंद ले रहे थे। दिवाली का बोनस और ऊपर से यह प्रमोशन उसने सोच लिया था कि इस बार की दिवाली को यादगार बना देगा ।

ऑफिस से निकलकर जैसे ही वह घर पंहुचा उसने अपनी पत्नी मीरा और बच्चो को कहा, “बाज़ार चलो इस बार दिवाली पर कोई कंजूसी नहीं होगी, जो चाहों खरीदों”। सुमित की बात सुनते ही मीरा समझ गई कि कई महीने से रुका प्रमोशन आज ज़रूर मिल गया हैं ।
सब बाज़ार गए, खूब खरीदारी हुई।आज सुमित सारा बाज़ार खरीदकर अपने परिवार की अधूरी ख्वाइशे पूरी करना चाहता था। पर आठ साल का सोनू बोला पापा “ पटाखे नहीं ख़रीदे? “ सुमित को याद आया पटाखों पर तो कोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया हैं, तभी पटाखे किसी भी दुकान पर नज़र नहीं आ रहे हैं उसने बोला, ”बेटा शाम तक पटाखे आ जायेंगे।”
अगले दिन शाम को घर सज चुका था पड़ोसी भी मीरा और उसके बच्चो के ठाठ-बाट देखकर दंग रह गए थे। जब सुमित पटाखो की टोकरी लेकर पंहुचा तो बच्चो ने ख़ुशी से गले लगा लिया । मीरा ने पूछा तो उसने बताया “अरे! यार दोस्त की बंद पटाखों की फैक्ट्री का जुगाड़ हैं उसके बिक गए, हमारा भी काम बन गया। वैसे भी सब जला रहे हैं।”

दस हज़ार के पटाखे जलाए गए कोई ऐसी आतिशबाजी नहीं थी जो न जलाई गई हो रात के बाद सुबह आई । दिवाली के ठीक हफ्ते बाद मीरा ने सुमित कोऑफिस में फ़ोन कर बच्चो के अस्पताल ‘चाचा नेहरु’ में बुलाया ।डॉक्टर ने कहा, “आपके बच्चे के फेफड़ो में धुँआ घुस गया हैं, जिस वजह से सांस लेने में परेशानी हो रही हैं। किसी बड़े अस्पताल में ले जाइए।“ सुमित और मीरा अस्तपताल 'संजीवराम' में ले गए सोनू की सर्जरी हुई, बीस दिन बाद सोनू को घर लाया गया। फिर भी इलाज चलता रहा ।डॉक्टर और दवाईयो के बिल, ऑफिस में काम का बोझ, जिसे चाहकर भी सुमित संभाल नहीं पा रहा था। बॉस भी उसे प्रमोशन देकर पछता रहे थे । बुक की गई नई गाड़ी को कैंसिल कराया गया । बीमा होने के बावजूद सोच से ज्यादा ख़र्चा हो रहा था । तब तो सुमित और मीरा टूट ही गए, जब डॉक्टर ने सोनू को अस्थमा बता दिया और सख्त हिदायत दी की धुएं से दूर रखो। आज मीरा बार-बार सुमित को रोते हए कह रही थी कि “हाय! दिवाली के बाद: यह क्या हो गया इससे अच्छे तो हम पहले थे सुमित। दिवाली के बाद : क्या हो गया! क्या हो गया” पर सुमित की नज़रे रद्दी में पड़े उस पुराने अख़बार पर थी, जिसे उसने पढ़कर भी नहीं पढ़ा था कि ‘सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर लगाया प्रतिबंध’।।।।।।।।।।.......
Cindrella by Swatigrover in Hindi

...आज सुबह से ही बारिश हो रही हैं! जनवरी के महीने में इतनी बारिश होना थोड़ा अजीब लगता है पर शायद नीमा खुद आँसू नहीं बहा सकती इसीलिए यह काम आसमान कर रहा हैं! खिड़की के पास खड़े कब से नीमा बारिश को देखी जा रही हैं और उसे अपना बीता हुआ कल इन्ही बूंदों में भीगता हुआ साफ़ नज़र आने लगा हैं!
दो साल पहले नीमा की शादी इस शहर के संपन तथा अमीर घराने में हुई थी उसका पति नरेश न सिर्फ दिखने में सुन्दर था बल्कि हर तरह से एक बेहतरीन जीवनसाथी था! नीमा की माँ सिलाई का काम करती थी पिता तो बचपन में ही सड़क दुर्घटना में गुज़र गए थे! दो छोटे-भाई और माँ की मदद करने के लिए नीमा बारहवी के बाद पढाई छोड़ ट्यूशन और प्राइमरी स्कूल की 2000 की नौकरी कर अपने परिवार का सहारा बनने की कोशिश कर रही थी ! हालाकि स्कूल की प्राचार्य की आर्थिक मदद से उसने स्नातक की पढाई करनी शुरू कर दी! माँ भी किसी तरह सिलाई का काम करके गृहस्थी की गाड़ी को खीचने का प्रयास कर रही थी !
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था वैसे-वैसे नीमा की शादी की चिंता भी बढती जा रही थी नीमा में कोई कमी नहीं थी सिवाय इसके की वो गरीब थी दहेज़ देने का तो साहस ही नहीं था! एक बार स्कूल के वार्षिक जलसे में प्रसिद्ध समाज सेविका आई और अपने बेटे नरेश के लिए नीमा को पसंद कर गई प्राचार्य ने जब यह बात नीमा की माँ से कही तो उन्हें यकीन नहीं हुआ फिर बस बिना कुछ सोच-विचार के शादी के लिए हां कर दी! सब उसे सिन्ड्रेला कहने लगे माँ भी कहती “मेरी सिन्ड्रेला को किसी की नज़र न लगे” उसकी सारी सहेलियों और गली-मोहल्ले की नजरों में वह एक सिन्ड्रेला थी! शादी करके जब वो ससुराल में आई तो उसे भी वहा की सम्पनता देख यकीन हो गया की वो सचमुच की सिन्ड्रेला हैं!
शुरू के कुछ महीने तो सपने की तरह बीते! धीरे-धीरे उसे लगने लगा की पडोसी और आसपास के लोग या तो उसका मजाक उड़ाते हैं या फिर उसे दया की दृष्टि से देखा जाता हैं! उसने यह बात अपनी सास को भी बताई पर उनका कहना था की सब उससे जलते हैं! मगर एक दिन उसे पता लगा कि नरेश के कई औरतों के साथ सम्बन्ध हैं और वो पूरे जात-बिरादरी में इतना बदनाम था की कोई भी उसे अपनी बेटी नहीं देना चाह्ता था! तभी तो एक गरीब की बेटी की आहूति दी गई!
दोनों पति-पत्नी में इतनी तकरार बढ़ गई की मारपीट की नौबत आ गई और उसे मजबूर होकर घर छोड़ना पड़ा! घर आकर वह अपनी माँ से गले मिल फूट-फूट कर बहुत रोई ! वह नरेश से प्यार करने लगी थी वह चाहती थी कि वह सुधर जाए और उसे ले जाए ! पर ऐसा नहीं हुआ नरेश ने तलाक देकर उसे छोड़ दिया !
दोनों भाई पढाई में होशियार निकले और उन्हें छात्रवृति मिल गई थी जिसके चलते दोनो दसवी के बाद इंजीनियरिंग की तैयारी हेतू देहरादून के हॉस्टल में चले गए! अब रह गई नीमा और उसकी माँ! उसने फिर से स्कूल की नौकरी कर ली सब उसे बड़ी ही दया की दृष्टी से देखते या उसका मजाक बनाते हुए कटाक्ष करते “लो सिन्ड्रेला आ गई अपने पुराने झोपड़े में!“ अब उसे इन सबकी आदत पड़ गई थी इसीलिए उसने बुरा मानना बंद कर दिया! आज पूरे दो साल बाद उसे नरेश की खबर मिली तो यह की उसकी मौत हो गई वो भी एड्स से! अरे! नीमा बेटी “अब बैठ भी जा कब तक खड़ी रहेगी”! उसकी ज़िन्दगी में इन दो सालो में कोई बदलाव नहीं हुआ हैं बस यही की उसे अब कोई सिन्ड्रेला नहीं कहता माँ भी नहीं!!!!!!


Raksha Bandhan by Swatigrover in Hindi

सात साल की नन्ही सुबह से ही जिद कर रही है कि इस बार राखी कान्हा की मूर्ति को नहीं कान्हा को ही बाँधेगी, तभी कुछ खाएगी। उसकी माँ सरला पहले तो हँसने लगती हैं फिर नन्ही को समझाती हैं कि मूर्ति में साक्षात् भगवान बसते हैं इसीलिए मेरी प्यारी गुडिया जिद नहीं करते जल्दी से राखी बांधकर खीर-पूरी खा ले।” मगर नन्ही की वही जिद की राखी तभी बाँधेगी जब कान्हा स्वयं आएंगे। वरना कुछ नहीं खाना है। 

सात साल की नन्ही का कोई भाई नहीं हैं। अभी कुछ वर्ष पहले पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी। नन्ही के पिता की दुकान पर कब्ज़ा करके विधवा माँ बेटी को ससुराल वालो ने कुछ पैसे देकर घर से निकाल दिया। ज्यादा पढ़ी-लिखी न होने के कारण, फलों का ठेला लगाकर सरला अपना और  नन्ही का गुज़ारा कर रही हैं। बस रिश्तेदार के नाम पर एक सगा भाई जो अपने परिवार के साथ शहर जाकर ऐसा बसा कि वापिस लौटकर नहीं आया। हाँ, राखी पर 200 रुपए का मानी आर्डर भेजकर अपना फ़र्ज़ निभा लेता हैं उसे भी डर हैं कि गरीब बहन कहीं पैसे न मांगने लग जाए। नन्ही जब अपने हमउम्र के बच्चो को राखी बाँधते देखती थी तो उसका भी मन करता था इसीलिए सरला ने तभी से कान्हा को ही उसका भाई बना दिया। हर साल कृष्ण की मूर्ति को राखी बांधने वाली नन्ही क्या अनोखी जिद लेकर बैठ गई।
सरला ने एक उसे बहुत बार समझाया कि नन्ही राखी बांध कर खाना खा ले पर वह नहीं मानी। “माँ, सभी के भाई आते है मेरा भाई कान्हा भी आएंगा।“ “गरीब का कोई नहीं होता हां पर तेरा भाई कान्हा ज़रूर आएंगा।“ यह कहकर सरला थोड़ी देर में आने का बहाना कर घर से निकल गई। और सीधे गाँव की नाटक मंडली में, जो छोटा लड़का कृष्णा बनता हैं उसे मीठे फल फल देने का वादा कर घर आने के लिए राज़ी कर आई।
जब आधे घंटें बंद किसी ने दरवाज़ा खटखटाया तो सामने उस कान्हा बने लड़के को देख सरला ज़ोर से चिल्लाई—“देख नन्ही तेरा भाई आ गया।“ नन्ही उसे खींचकर अन्दर लायी, आज उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। उसे राखी बांधी, खीर-पूरी खिलाई। उसे बात करते देख सरला सोचने लगी यह नाटक वाले भी क्या नाटक करते हैं सचमुच का कन्हैया बना फिरता हैं। जाते-जाते सरला के मना करने पर भी यह कंन्हैया नन्ही को कंचे दे गया ओर सरला से बोला, “मैया फल तो दे। सरला ने कहा, कल दूँगी आज ठेला कहाँ लगा पाई।” मन में सोचा, लालची कही का, कल तक नहीं रुक सकता। “नहीं मैया फलतो मैं लेकर जाऊंगा।“
शाम के चार बजे जब किसी ने दरवाजा खटखटाया तो सरला ने देखा तो गुस्से से बोली, “क्यों रे। लालची हो गया हैं क्या? नाटक खत्म कर, राखी भी खत्म हो गई। चल भाग यहाँ से, अभी तो कृष्ण बनकर आया था।” “कहा माई,मैं  तो अभी आया हू, काम से कही चला गया था, इसीलिए देर हो गई।” “अरे! तो फिर वह कौन था?” सरला एकदम डर गई, भागती हुई अन्दर गई देखा कि नन्ही कंचे की पोटली खोलने की कोशिश कर रही हैं उसने पोटली छीनी और खोलकर देखा तो कंचे बेशकीमती मोती और हीरे बन चुके थे। फल की टोकरी में रखे दो फल भी नहीं थे, फिर जब कान्हा की मूर्ति को देखा तो वह मुस्कुरा रही थी। कृष्ण की वही कुटिल मुस्कान। सरला जोर-जोर से रोने लगी नन्ही ने पूछा,”क्या हुआ माँ?” नन्ही को सीने से लगाती  हुई बोली,” बड़ा अच्छा रक्षा बंधन हो गया !!!! 

सलीम-अनारकली

SALIM- ANARKALI by Swatigrover in Hindi

सामने  कुर्सी  पर शान  से  बैठा  हुआ। रंग-बिरंगा  स्वेटर  और  गले में  मफलर   पहनकर  बड़ी-भूरी  आँखों  से   इधर-उधर  देखकर  पूरे  घर का  जायज़ा ले  रहा है  घर  के  सभी  सदस्यों की  गतिविधियों  को  ध्यान  से  देख  रहा  है  तभी  दादाजी  की  आवाज़  आई "सलीमममम  " बस  फ़िर  अपनी पूछ को  हिलाता  हुआ  भागकर  दादाजी  के  पास  पहुँच  गया  और  लगा  उनके  पैर  चाटने । "मेरा  सलीम  चल  बेटा  छत  पर  चलते  है  बड़े  दिनों  बाद  इतनी  अच्छी  धूप  आई  है ।" "चल  बेटा  चल  " दादाजी  उसकी  भूरे बालों  वाली  पीठ  पर  हाथ  फेरते  हुए  सलीम  को  लेकर छत  पर आ  गए 

इस  पालतू  कुत्ते  का  नाम  सलीम  क्यों  पड़ा  ? इसके  पीछे  भी  मज़ेदार   किस्सा  है । एक  बार  दादाजी  अपने  जवानी  के  दिनों  में  दादी  को  घुमाने  ले  गए । किसी  गाइड  से  लालकिले   के  इतिहास  को सुनते  हुए दादी  की मुगलों में  अच्छी  ख़ासी  दिलचस्पी  हो  गई  और  दादाजी  जी  को  उसी  वक़्त  मुगले-ए-आज़म  दिखाने  का  फ़रमान  सुना  दिया । फ़िल्म  में  दिलीप कुमार  का  क़िरदार  इस  कदर  पसंद  आया  कि  सोच  लिया  अपने  बेटे  का  नाम  सलीम  रखेंगे  मगर  चार  लड़कों  की  माँ  दादी  फिर  लड़के  का  सुख  नहीं  भोग  पायी  और  दो  लड़कियों  के  बाद   दोबारा  बच्चा  पैदा  करने  में  सक्षम  नहीं  रहीं । उदास  दादी  की  हालत  दादाजी  से देखी  नहीं  गई  और  वह  उनके  लिए  एक प्यारा  सा  कुत्ता  ले  आये  और  उसका  नाम रखा  सलीम । जवानी  से   लेकर  बुढ़ापे  तक  दो  तीन पीढ़ी  सलीम   की  निकल  चुकी  है  मगर  नाम  हमेशा  यही  रखा  जाता  सलीम। अब  दादी  गुजर  चुकी  है । और  दादा  के  पास  यह सलीम  ही  रह  गया  । इसे  भी  कितनी  शानो -शौकत  से  पाला  गया  है।  दादा  के  साथ  उनके  बिस्तर  पर सोता  है ।  घरवाले  बाद  में  खाये  पहले  इसकी  थाली  लग  जाती  है  । हर  त्योहार  में  इसे   भी सदस्य  की  तरह  कपड़े  दिए  जाते  हैं । इसका  शैम्पू  साबुन  सब  अलग  है, हर  फरमाइश  दादा  ऐसे  मानते  है, जैसे  दादी  का  हुकम हों। सलीम भी  दादा  के  साथ  दादी  की यादों  में आँखो से  आँसू  बहाकर  उनका पूरा  साथ  देता  है

तभी  सामने  वाले  के  घर  का  कुत्ता  भी छत  आ  गया  और  ज़ोर -ज़ोर  से  भोंकने  लगा  अब  यह  पशु  अपनी  भाषा  तो  समझते  ही  है । "आ गया  तू"  और  फिर  अपना सलीम   भी  भोंकने  लगा। जब भी  दादा  को  कोई  भी  बाहर  का  व्यक्ति  परेशां  कर रहा  होता  है  तो  फौरन  वह सलीम   को  उसके  पीछे  छोड़  देते  हैं । सलीम   भी  हर  गली  को  युद्ध  का  मैदान  समझ  बस  शुरू  हो  जाता  है। अपने   भौ-भौ का  शौर्य  दिखाने  । सामने  वाले  मेहता  अंकल  से  दादाजी  की  नहीं  बनती  है।   सच  तो यह  है  कि  गली  में  रह  रहे  दीपांकर  अंकल  को  छोड़  उनकी  मोहल्ले  में  ज़्यादा  नहीं  बनती   दीपांकर  अंकल  उनके  बचपन  के  दोस्त  है  शायद  वो  तभी  गुस्सैल  दादाजी  को  झेल  लेते  हैं । बाकि  गली  के  आवारा  कुत्ते  तो  सलीम और  मेहता  जी  के  कुत्ते  भीरू  से  डरते  हैं । मेहता  जी  ने  दादाजी  के  सलीम   से  टक्कर  लेने  के  लिए ही भीरू को  पाल  रखा  है  दोनों  जब  भी  आमने-सामने  होते  है  तो  मज़ाल  है  कि  दोनों  में  से  कोई  भी  पीछे  हट  जाए । 

साथ  वाले  कमलेश  अंकल  मकान  किराये  पर  देकर  अपने  बेटों  के  पास  कनाडा  चले  गए । और  वहां  आ  गई  सिल्की जिसके  सफ़ेद बाल   और  काले  कान और  हरी  सी  आँखे  सचमुच  बहुत  सुन्दर  थीं   छत  पर  चारपाई  पर  बैठी  धूप  सेंक  रही  थी  और  उसके  साथ  एक  बूढ़ी सी  आंटी  भी  लेटी  हुई  थी । सलीम   ने  सिल्की  को  देखा  तो  भीरू   को भी  देखकर  भोंकना  भूल  गया  । बस  नज़रे  सिल्की  से  हटती  नहीं  थी  सिल्की  भी  इतराती  हुई  सलीम   को  जलाने  के लिए भीरू   को  देखकर  पूछ   हिला  रही  थी  मगर  नज़रे  उसकी  सलीम   पर  ही  थी । अब  जब  भी  सिल्की  बूढ़ी   आंटी  के  साथ  बाहर  निकलती  तो  वह  भी  दादाजी  को  धोती  से  पकड़  बाहर  घुमाने  ले  जाता । सलीम   को  इश्क़  हो  गया  था  । भीरू  को  भी  सिल्की  अच्छी  लगने  लगी  थी, लगता  था  फिर  कोई  घमासान  युद्ध  होगा  मगर  सिल्की को   सलीम की  तरफ  आकर्षित देख, वह  मेहता  अंकल  के  बेटे के  दोस्त  की  कुतिया  रोज़ी  के  साथ  सेट  हो  गया । अब  तो  सिल्की  और सलीम   अकसर  छत  पर  मिलने  लगे  और  प्यार भरी  बातें  भी  शुरू  हो  गई । 

"मुझे तुम्हारा  नाम  सलीम   खास  पसंद  नहीं  है, थोड़ा  मॉडर्न  नाम  रखते  क्या  यह  पुराना  सा नाम  रख  लिया"  सिल्की  कहती । "दादी  को  पसंद  था  न  इसलिए  दादा  ने  रख  दिया  वैसे  मेरा  नाम  इतना  बुरा  नहीं  है, सिल्की माय लव   सलीम   ने  कहा । "तुम  गली  के  उस शेरू   कुत्ते  से  कल  क्या  बात  कर  रही  थी?  देखो! मुझे  यह  सब  पसंद  नहीं सभी  गली  के  कुत्ते  छिछोरे  और  आवारा  है  उनसे  दूर  रहो"  सलीम   सिल्की  की  आँखों  में  देखकर  बोला "बस वो मुझे गुडनाइट  कह  रहा  था ।" और  मुझे  भी  तुम्हारे  दादा  पसंद  नहीं  है  सड़ो और  गुस्सैल  आई  डोंट  लाइक  हिम "सिल्की  नज़रे  फेरते  हुए  बोली । "सिल्की  प्लीज  ऐसे  मत  बोलो । चलो  अब  जल्दी  से  एक गुडनाइट किस  दू ।" गुडनाइट  कह  सलीम छत  से  चला  गया । 

अब  तो  रोज़  यह  सिलसिला  चल  निकला  और  एक  दिन  दादा  जब  रात  को  सलीम   को  ढूंढ़ते हुए  छत  पर  आए  तो  दोनों  को  साथ  में  चिपककर  बैठे  देख  हंगामा  मचा  दिया । सुबह  बुढ़िया  को  खूब  सुनाया  कि  "संभाल  कर  रखो  अपनी  कुतिया  को  देखो  उसकी  हिम्मत  कैसे  हुए  अच्छे  कुल  के  कश्यप  के  सलीम   से  इश्क़  लड़ाने  की ।" "उसका  नाम  सिल्की  है, अपने  उस  भूरे  कुत्ते  को  संभाल  लो  वरना  सारी   ऊँचे  कुल  की  अकड़  निकाल  दूँगी ।" बुढ़िया  भी  बोली  जा  रही  थी ।  सामने  छत  पर  खड़ा भीरू भी हँस  रहा  था  । "देखा  सलीम   तूने  चमारो  की  कुतिया  से  आँख  मटका  कर  हमारी  जग  हँसाई  करवा  दी  । बेटा  तू  मुझे  कहता  मैं  अपने  कुल  की  सुशील  ख़ानदानी  कुतिया  से  तेरी  बात  करवाता  यह  सिल्की  ही  बची  थी  हम  तो  इन  चमारों  से  बात  न  करे, पता  नहीं  कमलेश  भी  किसको  घर  दे  गया। दादाजी यह बोलकर  सिर  पकड़कर  बैठ  गए । "अरे ! यह  इंसानों  ने  तो  हमें   भी  इस  जात-पात  के  चक्कर  में  फँसा  दिया । अपने  बेटों   को अपनी  पसंद  की  शादी  नहीं  करने  दी  अब  मेरे  पीछे  पड़  गए"   आज पहली  बार  सलीम   ने  दादाजी  से  थोड़ा  दूर  बैठना  ही  ठीक  समझा । 

रात  को  छत  पर  ताला  लगा  दिया  जाता  । मुझे  सख्त  हिदायत  दी  कि  मैं  दोनों  पर  नज़र  रखो  और  मैं  दादाजी  का  वफादार  पोता  सोनू  करता  भी यही  था  । पर  सलीम   बहुत  उदास  हो गया  था  और  सिल्की  भी  मोबाइल  पर  गाने  'पहले  प्यार  का पहला  गम'  सुनती  मिलती । मुझे  तो  और  भी  खा  जाने  वाली  नज़रों  से  देखती  अब  सलीम   किसी  पर  भौंकता  नहीं  था  भीरू  पर  भी  नहीं  । "इश्क़  ने  सलीम  तुम्हें   निकम्मा  कर  दिया  वरना  तुम  भी कुत्ते  काम  के  थे"। अब  भीरू सलीम   को  यह  कहकर  उसके  साथ  उसका  गम  सुनने  बैठ  जाता ।  एक  दिन  दादाजी  ने  कहा कि "सलीम   को  अपने  भाई  के  पास  जबलपुर  लेकर  जाएंगे  और  सलीम  का  रिश्ता  अपने  खानदान  की किसी  कुतिया  से  करवाएँगे ।" 

मगर  इससे  पहले  दादाजी  जबलपुर  जाते  सलीम  तो  मौका  देख  घर  से  भाग  गया । और सिल्की  को  भी  अपने  साथ  ले  गया । आखिर  प्यार  बगावत  करना  सीख  गया   कई  दिन  बीते गए पर  दोनों  का  कुछ  पता  नहीं  चला । दादाजी  रोज़  सलीम  को  ढूँढ़ने  निकल  पड़ते  मगर  मायूस  लौट  आते  उस  सिल्की  की  बुढ़िया  को  भी  खूब  सुनाते   आख़िर  एक  दिन  दादा ने  चारपाई  पकड़  ली । "हाय!  मेरा  सलीम  क्यों  भाग  गया?  तेरा  रिश्ता  तो  ऊँचे  ख़ानदान  में  तय  किया  था ।"  दादाजी  रोज़ यहीं  कहते  रहते । एक  दिन  मुझसे  दादा की   हालत  देखी  नहीं  गई  और  मैं  खुद  सलीम  को  ढूँढ़ने  निकल  पड़ा। आखिर  एक  हफ्ता  धक्के  खाने के  बाद  सलीम  का  पता  लग गया  मेरे  दोस्त  पिंटू  ने  हमारे  घर  से  तीन-चार  किलोमीटर  दूर  झुग्गी  झोपड़ी  में  सलीम-सिल्की को देखा  दोनों  पहचान  में  आ  नहीं  रहे  थे, इतने  मैले  कुचले  मगर  खुश । मुझे  देखकर  दोनों  ने  दौड़  लगा  दी । अरे! सलीम  सुन  यार ! करते  है  कुछ, रुक  तो  सही ।" मैं उसकी  पूछ  पकड़कर  बोला। वो  रुका  और  मेरे  गले  लग  गया 

पिंटू  की तरक़ीब  से  इस  प्रेम  कहानी  में  नया  मोड़  आ  सकता  था   इसीलिए  घर  आकर  मैंने  दादाजी को  कहना  शुरू  किया  "कल  दादी  सपने  में  आकर  कह  रही  थी  कि  आखिर  तेरे  दादा  प्यार  के  दुश्मन  ही  निकले  उस  अकबर  की  तरह  भगा  दिया  न  मेरे  सलीम  को । आने  दे ऊपर इन्हें दीवार  में  न चुनवाया  तो ।" क्या !!!!!! सचमुच  सोनू  तेरी  दादी  ने  यही कहा?"  दादा  ने  हैरान होकर  पूछा । और  यह  भी  कहा, "बुड्ढा  बीमार  होगा  तो  जल्दी  मरेगा ।" मैंने यह  कहा  ही  था  कि  दादाजी  उठकर  बैठ  गए  । "प्यार  किया  तो  डरना  क्या !!!!"  गीत  दादाजी  की  आँखों  के  सामने  चलने  लग  गया  "नहीं  सोनू मैं  प्यार  का  दुश्मन  नहीं  बन  सकता ।" "मेरे  सलीम  तू  घर  आजा"  दादाजी की  इस  दहाड़ को  पूरे  मोहल्ले  ने सुना। 

सलीम  सिल्की  के  साथ  वापिस  आ गया   सिल्की  की  बुढ़िया  तो  मकान  खाली  कर  वहाँ  से  चली  गई ।   दादाजी  ने  दोनों  का  विवाह  कर  दिया  और  शादी  में  दादी  की  फ़ोटो  लगवाई  गई  और  दादा  ने  कहा  "देखा  लक्ष्मी  मैं  प्यार  का  दुश्मन  नहीं  हूँ ।" भीरू  और  गली  के कुत्ते  बारात  में  शामिल  हुए  और  मोहब्बत  ज़िंदाबाद  कहकर गली  के  बच्चे  चिल्लाने  लग  गए । दादाजी  ने   सिल्की  को  अनारकली  कहना  शुरू  कर  दिया   सभी  मोहल्ले  वाले  आज  भी  सलीम और  अनारकली  की  कहानी  यह  कहकर  दूसरों  को  सुनाते  है  कि  "इस  बार  अनारकली  दीवार  में  चुनवाई  नहीं  गई ।"

Dil Se.... by Swatigrover in Hindi



"यार ! जफ़र  तेरा  हाल  भी  शहरुख  की  फिल्म  'दिल  से'  की  तरह  होने  वाला  है ।"  इमरान   ने  कहा । "क्यों  क्या  होने  वाला  है  मुझे ?" उस  फ़िल्म  में  हीरोइन  हीरो  को छोड़  कुछ  समय  बाद  लौट  आयी  थी । फिर  अंत  में  पता  चला  कि  वो  मानव  बम बनकर  आई  है और  फिर  हीरो  तो  हीरो  ही  है  देश  बचा  लेता   है  और  अपनी  हीरोइन  के  साथ  ही  मर  जाता  है ।" "मेरी   ज़िंदगी का  क्या  कनेक्शन  है  इस  फ़िल्म  से ?" ज़फर  ने  इमरान  को  घूरते  हुए  पूछा ।  "देख  यार! तेरी गलफ्रेंड  सहर  जिसका  तीन  साल  से  कोई  अता-पता  नहीं  था । वो  अचानक  वापिस  आ  गई । किसी  भी  सोशल  नेटवर्किंग  साइट  पर  उसका  कोई  नामो-निशान  नहीं  था और  अब  वो  आकर  कहती  है  कि  किसी  मजबूरी  के  चलते  ऐसा  किया  मजबूरी  कि  अब्बू  बीमार  थे । और  आज  हम  दोनों  ने  उसे  दो  लड़कों  के  साथ  देखा  जिनसे  वो  कोई  बैग  एक्सचेंज  कर  रही  थी । पीछा  करने  पर  किसी  अँधेरी  सी  गली  में  गायब  हो  गई । तू  मान न  मान  भाई  26  जनवरी  आने  वाली  है  और हम  लोग  नेशनल  डिफेन्स  ऑफ़  सिक्योरिटी  में  काम करते  है। हमारे  ऊपर इस  कार्यक्रम  की  सुरक्षा  की  जिम्मेदारी  है। समझ  यार ! इसी  बात  का  फ़ायदा  उठाने  के  लिए  ही  वो  वापिस  आयी  है।" इमरान  की  बातो  में  गंभीरता  साफ़  झलक  रही  थीं ।

"ऐसा  कुछ  नहीं  है, यार! वो  ऐसा  कभी  नहीं  कर  सकती  वो  अचानक  से  कोई  टेरर  कैंप  तो  ज्वाइन  नहीं  कर  सकती । सीधी-सादी  लड़की  है  सहर। सचमुच  उसके  अब्बू  बीमार  थे । ऐसा  कुछ  नहीं  होगा । उन  लड़कों  के  बारे  में पूछूँगा ।" उसे  ज़फर अपनी  गाड़ी  में  बैठता  हुआ  बोला। "ठीक  है, मेरा  काम  तुझे  आगाह  करना  था  और  वैसे  भी आशिक़  का  जनाज़ा निकलेगा  धूम  से ।"  इमरान  के  चेहरे  पर  मुस्कान  थीं । 

"कल  तुम्हारे  साथ  वो  दो  लड़के  कौन  थे ?" ज़फर  ने  सहर  से  पूछा   "क्या  मतलब ? कौन  से  दो  लड़के?" थोड़ा  घबराते  हुए  सहर  बोली । "वही  जो  कल  गोल  मार्किट  में  तुम्हारे  साथ  थें ।"  कल  मैं और   इमरान  किसी  काम  से  वहीं  आए  हुए थें ।" ज़फर सहर की  सवालियाँ नज़र का  ज़वाब  देते  हुए  बोला।  "वो  मेरे  चाचा  के  बेटे  थे,  आजमगढ़  से  कुछ  सामान  देने  आये  थे । कल  की  ट्रैन  से  वापिस  चले  गए ।" बोलते  समय  सहर  इधर-उधर  देख  रही  थीं । वैसे  एक  बात पूछो,   तुमने इन  तीन  सालों  में  क्या  किया ?"  "क्या  किया  क्या  मतलब?  अब्बू  की  सेवा  की । उन्हें  कैंसर  था  और  वो  उसी  बीमारी  से  लड़ते  हुए  अल्लाह  के पास  भी  चले  गए ।  तुम  पुलिस  वालो  को  मोहब्बत  भी  करनी  नहीं  आती  क्या ? जो  तुम  मुझ पर  शक  कर  रहे  हों ।" सहर   चिढ़ते  हुए  बोली । "ऐसा  मत  कहो,  मेरी  जान ।  चलो,  आज  ड्यूटी  नहीं  है, मूवी  देखने  चलते  है ।"  ज़फर  ने  सहर  को  गले  लगाते  हुए  कहा ।


इमरान गाना रहा  था, "दिल तो आखिर दिल है ना मीठी सी मुश्किल है ना पिया पिया, पिया पिया ना पिया जिया जिया, जिया जिया ना जिया दिल से रे... !!!!!!!!!""  "बंद  कर  गाना  आज  हमें चावड़ी बाज़ार चलना  है, ख़बर  मिली  है  कि  कुछ लोग  आजमगढ़  से  लालकिले  पर  हमला  करने  के  मकसद  से  यही  छुपे  हुए  हैं ।"  ज़फर  ने  इमरान  को  लगभग कमरे  से   धकेलते  हुए  कहा  । 'दोनों  चावड़ी  बाज़ार  पहुंचे । अपने  ख़बरी  से  मुलाकात  करने  के  बाद  मेट्रो  स्टेशन  की  तरफ़  मुड़े  ही  थे  तो  सामने  सहर हाथ  में  किताबें  पकड़े  एक  लड़की  और  वहीं  दो  लड़कों  जो  उसके  चाचा  के  बेटे थे  । उनके  साथ  नज़र  आई । ज़फर  और  इमरान  दोनों की  आँखों  को  यकीन  नहीं  हो  रहा  था  कि  सामने सहर  है ।' "मैं  कह  रहा  हूँ  न  यार ! कुछ  गड़बड़  तो  ज़रूर  है। तूने  उसे  पूछा  था, उन  लड़कों  के बारे  में  ?"  इमरान  ने  लगभग  ज़फ़र  पर  चिल्लाते  हुए  कहा । "हां  पूछा  था,  उसने  कहा, उसके चचेरे' भाई  है  ।  कल  की ट्रैन  से  आजमगढ़ चले  गए  हैं  । पर यह  तो तो तो ........ "" ज़फर  बोलते  हुए  चुप  हो  गया  । "उसने  कहा, तूने  मान  लिया । देख, मुझे  फैंटम  के  सैफ  की तरह  देश  के  लिए  शहादत  देनी  है । न कि  शाहरुख़  की  तरह  बेवकूफ  बनना  है।" इमरान  ने  गंभीर  होते  हुए  कहा । 

"यह  फिल्मों   को  छोड़  दे,  तू  सहर के  पीछे  क्यों  पड़  गया है । आयूब की  गलफ्रेंड  भी  दो  साल  बाद  फ्रांस  से  वापिस  आई  थी ।" ज़फर  ने  चिढ़ते  हुए  कहा ।  "मैं नहीं, तू  पीछे पड़ा  है उसके। हाँ,  बिलकुल  शहनाज़ को मैं  अच्छे  से  जानता  हूँ ।  वो  तो  ब्रेकअप  के  बाद बाहर  पढ़ाई  करने  गयी थीं।  और जब  लगा होगा  कि  नहीं  रह  सकती आयूब  के  बिना,  तो  वापिस  लौट  आई।"  इमरान  ने  सफ़ाई  देते  हुए  कहा। "जो  भी है, मुझे  सहर  पर  भरोसा  है और  कल  का  कार्यक्रम  भी  अच्छे  से  होगा ।  ज़फर  ने  बड़े  विश्वास  के  साथ  कहा । पर  उसकी आवाज़  में डर साफ़  झलक  रहा  था ।  

"मुझे  कल  26  जनवरी  देखने  जाना  है । वहाँ  के  वी.आई.पी. पास  तुम  मुझे  दे  दोंगे न ?" सहर  ने  बड़े  प्यार  से  पूछा  और  ज़फर मना  न  कर  सका ।  इतनी  सादा  तबीयत   क्या ऐसा कोई  ख़ौफ़नाक  काम कर  सकती है? ज़फर  ने  मन  ही  मन  ख़ुद  से  सवाल  किया । 

'कल  26  जनवरी  की  परेड थी,  सब  ठीक  चल  रहा  था ।  तभी लालकिले  के  बाहर  बम  विस्फोट  हो गया  है ।  भगदड़  मच  गयी, लोग  इधर -उधर  भागने  लगे ।  पर  किसी   की  जान  नहीं  गयी । बस  200  के  लगभग  लोग  घायल  हो  गए । और  विस्फोट  किसी महिला  ने  किया  है । पहचान  पता  की  जा  रही  है।' बार-बार  लगातार  न्यूज़  चैनल  पर  यही  आ  रहा  था  । ज़फर  भागता  हुआ  सहर  के  पास  पहुँचा  और  उसे  खींचता  हुआ  अपने  फ्लैट  में  ले आया ।  "यह  हरकत  तुम्हारी  है  न  सहर ? तभी  तुम्हें 26  जनवरी देखने  जाना  था, आज  से  पहले  तो  कभी  नहीं  गई । मेरा  दोस्त  इमरान  कब  से  मुझे  समझा रहा  था  और  मैं  तुम्हारी  मोहब्बत में  पागल  तुम्हारे हर  झूठ  पर  भरोसा  कर  रहा  था  । तुम  जैसे  लोगों  की  वजह  से  पूरी  कौम  बदनाम  होती  है । अब बताओ  सच  क्या  है, यह  न  हो कि  मैं  तुम्हे  जान से  मार  दूँ ।" सेहर  को  ज़मीन  पर  धक्का मारते  हुए  ज़फर बोला ।  "मैंने कुछ  नहीं  किया, मैं   ऐसा घिनोना  काम  क्यों करूँगी ?  पागल  हो  गए  हो क्या ? सहर चिल्लाते  हुए  बोली । "बताओ, तुमने  कोई  बम  छिपा  रखा  है  ?  जफ़र  उसे  टटोलते  हुए  बोला ।  "दूर हटो मुझसे,  ऐसा  कुछ  नहीं  है ।  सहर   फिर  चिल्लाई । "आखिर  वो  दोनों  लड़के थे?  तुम्हारे  चाचा  के तो  लड़कियाँ  है। यह  बार-बार  तुम  पैकेट  में उन्हें  क्या  देती  रहती  हो ?"  तीन  साल बाद  मेरे  पास  क्यों  आयी ? तुम सभी  सोशल  नेटवर्किंग  साइट्स    से  गायब  कैसे  हो  गई ? बताओ ?" ज़फर  गुस्से  में  बोला ।

"सुनो, अम्मी  ने  फ़ोन  पर  एक  दिन   बताया  कि  अब्बू  को  कैंसर  है  तो  यह  सुनकर  मैं    लखनऊ  चली  आई।  वहाँ  पता  चला  कि  अब्बू  ने  तो  गलत  लोगों  से  कर्ज़ा  लिया  हुआ  है  ।  अब्बू  के मरते  ही  वह  लोग  हमारे  पीछे  पड़  गए । तब  से  लेकर  अब  तक  मैं  और  अम्मी  भाग  ही  रहे  है ।  वो  मेरे अब्बू  के  दोस्त  इक़बाल  अंकल  के  बेटे  थे,  जो  मुझे  पैसे  देकर  मेरी  मदद  कर रहे  थे, ताकि  मैं अब्बू  का  कर्ज़ा  चुका  सको। भाईजान  दानिश  को  मेरी  सहेली  शबनम  पसंद  थी,   इसलिए'रिश्ते  की  बात  करने के  लिए  उन्होंने  आजमगढ़  जाने से   मना  कर  दिया ।"  सहर   बिना  सांस  लिए  आँखों  में  आंसू  भरकर  बोले  जा  रही  थी ।  क्या  उस  दिन  चावड़ी  बाज़ार  में  वो  शबनम  थी ? ज़फर  ने  पूछा । "हाँ  वही थी और  26  जनवरी  की  परेड  में  हम  साथ  थे, तभी  तुमसे  पास  मांगे  थे, फिर  यह हादसा  हुआ  और  तुम पागलों  की  तरह  मुझे  यहाँ  ले  आये ।"  सहर ने  ज़फर  को  धक्का  मारते  हुए  कहा ।  यह  तुम  मुझे  बता  सकती  थी  सहर? "वो  लोग  मेरे  पीछे  लगे  हुए  थे तभी   मैंने  खुद  को  इंटरनेट  की  दुनिया  से गायब  कर  दिया । तुम्हें   बताती  तो  तुम  अपना  पुलिस  वाला  रूप  दिखाते  वो  तुम्हे  भी  मार  देते । मैं  उन्हें  सारे  पैसे  लगभग  दे  चुकी  थी । अब  तुम्हें   अम्मी  से  मिलवाना  था  ताकि  नयी  ज़िन्दगी  शुरू  कर  सके ।  तुमसे  प्यार  करती  हूँ  इसलिए  वापिस  आई ।  पर  तुमने  तो। ..  कहते  कहते  सहर रुक  गई ।" "मुझे  यकीं  नहीं  है, जब  तक  तुम  सही  साबित  नहीं  होती, तब  तक  इसी  फ्लैट  में  कैद होकर  रहूँगी।"  ज़फर  सहर  को  ऊँगली  दिखाते हुए  बोला । "मैं  घर  जा  रही हूँ । जब  तुम्हारे  पास  सबूत  हो, तब  मुझे  पकड़कर  ले  जाना।  यह  रहा, मेरा  पता । पर्स  से  कागज़  निकाल  उसके  मुँह  पर  मारकर वह  फ्लैट  से  बाहर  आ गई  ।         

दो  महीने  की  कड़ी  तहकीकात  के  बाद  पता  चला  कि  वो  मानव  बम बनकर आई  महिला कोई  और  नहीं  आयूब  की  गलफ्रेंड  शहनाज़  थी । कड़ा  पहरा  होने  की  वजह  से  लालकिले  के बाहर  बम  गिराकर  चली  गई । अभी  फरार  है, पर  जल्दी  पकड़ी  जाएंगी ।  "यानि  दिल  से  मूवी  आयूब  के  साथ  हो  गयी ।" इमरान  हँसता  हुआ  बोला ।  "साले  बड़ा  भरोसा  था शहनाज़  पर, अब  बोल  कमीने, तेरी  बातों  में  आकर  मैंने  सहर   को  पता  नहीं  क्या  कुछ  कहा  और  उस  पर  यकींन  भी  नहीं  किया ।" ज़फर  मायूस हो गया  ।  "मैं  अपनी  गलती  मानता  हूँ।  कोई  नहीं, यार! वो  तुझे  माफ़  कर  देगी। फिर  तुम  निकाह  कर  लेना  सब  ठीक । इमरान  ज़फर  को  गले लगाते  हुए बोला ।  

ज़फ़र  सहर के  दिए  पते  पर  पहुँचा  तो  दरवाज़े  पर  ताला  लगा देख  बगल की  चायवाली  दुकान  पर  पहुँच गया । "ज़रा  बताओगे, यह  लोग  कहाँ  गए  है ?" ज़फर  ने  पूछा। "पता  नहीं  साहब,  दो  हफ्ते  पहले  ही  यहाँ  से  चले गए ।"  चाय  वाला  बोला ।  "कुछ  पता  है, कहा  गए ?" "नहीं  साहब,  बस  जाते  हुए  देखा  था । ज़फ़र  ताले  को  देख  रहा  था, तभी  चाय वाले ने रेडियो का चैनल बदला  तो  गाना  आ  रहा था 
"दिल है तो फिर दर्द होगा, दर्द है तो दिल भी होगा, मौसम  गुज़रते  रहते  दिल से, दिल से, दिल से, दिल से रे. ..................... । । । । 




First love - HAPPY VALENTINE DAY by Swatigrover in Hindi


सुमित  को  लगा  पिछली बारिश  ने  प्यार  के  नए  फूल  खिला  दिए  हैं । मगर  ईशा  अभी  भी  उन  फूलों  को  दोस्ती  की  निग़ाह  से  ही  देख  रही  है । सुमित  की  एम.बी.ए. पूरी  होते  ही  उसकी  अच्छी  कंपनी  में  नौकरी  लग  गई  ।  वह  अच्छा  कमा  रहा है  । कंपनी  उसे  बाहर  भी  भेजना  चाहती  है, पर  उसने  ही  मना कर  रखा  है । कहने को  बहाना  परिवार का है । मगर  मजबूरी  प्यार  की है। ईशा भी  किसी  पब्लिशिंग  हाउस  में  इंटर्न  लग गई है  और  ऋषभ  से  ब्रेकअप  के  बाद  अपना  मन  काम  में  लगाने की कोशिश  कर रही है।

अक्सर  सुमित  ईशा से मिलता  और अपना  दिल  खोलकर उसके  सामने  रख देता  परन्तु  ईशा  उसके  दिल  का  कोई  टुकड़ा  उठाने  को तैयार  नहीं  है। साथ  घूमना, शॉपिंग  करना और  मूवी  देखना।   ये  सब  वो  अपने  दोस्त  सुमित   के साथ  कर  रही  है। एक  दिन  दोनों  शिप्रा  मॉल  में  लंच  कर रहे  है । तभी ईशा  ने  कहा, "कल ऋषभ  का  फ़ोन  आया  था, अपने  किये  की  माफ़ी  माँग  रहा  था ।"  सुमित ने  वहीं  खाना रोक  दिया । क्या  कह  रहा  था , ऋषभ? सुमित को गुस्सा आ गया।  बताया  तो  उसे  अफ़सोस  है, अपने  किये  पर।  ईशा  खाना  खाते  हुए बोली। तुमने  फिर  क्या  सोचा, वापिस  उसी  के  पास  जाने  का   इरादा  है  ? सुमित  ने  ईशा  की  आँखों  में  देखते हुए अपना ज़वाब  जानने  की   कोशिश  की।  अब  उस  पर  भरोसा  करना  मुश्किल  है, वो  स्कूल   वाला  ऋषभ  नहीं  रहा । अब  उसे  भी  खेल  खेलने  आ  गए  है, खैर मुझे  अपना  मूड   ख़राब  नहीं  करना ।  ईशा  ने  बिल   मंगाते   हुए  कहा। "अरे ! ईशा  मैं  दे  रहा हूँ  न।  " सुमित  ने  जेब  से  कार्ड  निकालते  हुए  कहा । नहीं, तुमने  पिछली  बार  बिल  दिया  था। अब  रहने  दो, मुझे  अच्छा  नहीं  लगता।  ईशा  सुमित  को  देखते  हुए  बोली।  जब  नौकरी  पक्की  हो  जाये, तब  दे  देना।   मैं  मना  नहीं  करूँगा । सुमित  ने  कार्ड  दिया  और  दोनों  मॉल  से  बाहर  निकल  आए। 

दिन  बीतते  जा  रहे  है।  एक दिन सुमित अपनी  बहन के साथ कनॉट प्लेस में शॉपिंग कर रहा है। उसने  ईशा और ऋषभ  को  कैफ़े  कॉफी  डे  में  साथ  देखा  तो  देखता  रह  गया । उसका   मन   किया  कि  अंदर  जाकर  ऋषभ  का   मुँह  तोड़ दें ।  मगर  वो  क्या  कर  सकता   था ? कुछ  नहीं ? लगता  है  वापिसी  हो  गयी, पहले  प्यार  की । सुमित मन  ही  मन  कुढ़ता  हुआ  बोला । कुछ  दिनों  बाद  जब  उसने  ईशा  को  फ़ोन  कर  मिलने  के  लिए  बुलाया तो  वह आई, मगर  उसे  किसी   हैंडसम  से  लड़के  की गाड़ी  से उतरते  देखा  तो  खुद  से  कहने  लगा  कि  क्या  वो  सचमुच  इतना  पागल  है  कि  इस  लड़की   के  प्यार  में दीवाना बनता जा रहा है । पर ईशा  तो  कुछ  और  ही  सोचकर  बैठी  हुई  है । "हैल्लो  सुमित,  कैसे  हो? अंदर  चले, मैं  पहले  भी  ऋषभ  के  साथ  यहाँ आई  हुई  हूँ ।" ईशा  आज  बहुत  ख़ुश  है। दोनों  अंदर  आ  गए । "क्या!  बात  है ?  बहुत  ख़ुश  नज़र  आ  रही  हो।  क्या  कुछ  खोया  हुआ  मिल  गया ? " सुमित ने  पूछा। मेरे  बॉस  ने कहा  है कि  मेरी  नौकरी  पक्की  हो  सकती  है। मैं  अच्छा  काम  कर रही  हूँ। ईशा  ने  चहकते  हुए  कहा।  अभी  गाड़ी में   किसके  साथ  थी?  आई  मीन मुझे  कह  देती, मैं  पिक कर लेता । सुमित  पूछते  हुए  थोड़ा  घबरा  रहा  है   कि  कहीं   ईशा को  बुरा  न   लग  जाए ।  वो  मेरी  मम्मी  की  दोस्त  का  बेटा  आरव था।  वो  इसी  तरफ  जा  रहा  था ।  इसलिए  यहाँ  तक  छोड़   दिया।  अब  कुछ  आर्डर  करें ? 

ईशा  ऑफिस  की  बातों के  साथ-साथ  घर  की  बातें  भी  बता  रही  है। सचमुच बहुत दिनों बाद उसे इतना खुश देखा है। तुम्हें पता  है, आरव   की  मम्मी  ने  तो  मम्मी  से  मेरा   रिश्ता  ही  माँग   लिया । मम्मी  ने आंटी  को कहा, तुम  तो  बड़ी  खड़ूस  सास  बनूँगी। कहकर  ईशा हँसने लगी । तुम  क्या चाहती हो ?  कितनों  से   प्यार   का वादा   किया है  तुमने?  कभी  ऋषभ, फ़िर  आरव  और  कितने  है  ? "सुमित से अब  रहा  नहीं  गया, उसके  मन  का  गुबार फूट पड़ा।  यह  क्या कह  रहे  हों? दिमाग  तो  ठीक   है  न  तुम्हारा? यह  ऋषभ  कहाँ  से  आ  गया ? ईशा को   गुस्सा आ  गया । मैंने  तुम्हें  कुछ  दिन   पहले  सी.पी. में  उसके   साथ देखा था। सुमित  की आवाज़ ऊँची हो गई।  हाँ!  देखा  होगा, आख़िरी बार  मिलने  के  लिए  बुलाया  था,  वो  और उसका  परिवार हमेशा  के  लिए  मुंबई जा  रहे हैं ।  तुम  मेरे  इतने  अच्छे  दोस्त  हो  और  तुम्हें  मुझ   पर  भरोसा  नहीं  है।  ईशा  ने  उदास  होकर कहा। मैं  तुम्हारा  दोस्त  बनते-बनते  थक  चुका  हूँ,  मुझे  अब  मेरे  प्यार  का  ज़वाब  प्यार  से  ही  चाहिए । सुमित  ने  ईशा  का  हाथ  पकड़ते  हुए  कहा । ईशा ने  झटके से अपना हाथ  छुड़ाया  और वहाँ  से  बिना  कुछ  कहे  चली  गई।

कई महीनों  तक  दोनों  में  बात  नहीं  हुई। फरवरी  का  महीना है। सुमित ने इस  वैलेंटाइन   डे  के  लिए  बहुत  कुछ  सोच  रखा  था। पर  ईशा ने  राब्ता  ही  खत्म   कर  दिया । सुमित  माफ़ी  माँगना  चाहता  है। कुछ  कहना  चाहता  है। पर  ईशा  ने  पहले  व्हाट्स अप  पर नंबर  ब्लॉक   किया और  फ़िर  फ़ोन  उठाना  बंद  कर  दिया ।  उसकी  दोस्त  ने  बताया, ईशा  और  आरव  अब  साथ-साथ  है। सारे  प्यार  भरे  दिन  निकल  गए  और  वैलेंटाइन डे भी  आ  गया और उस  दिन सुमित ऑफिस की  तरफ़  से दो  साल  के लिए  शिकागों  जाने  के  लिए  एयरपोर्ट  पर  पहुँच  गया। साथ  में  ऑफिस  की  कलीग  दीप्ति  है जो शिकागो  में  सुमित  के  साथ  एक  नया  रिश्ता  कायम   करना  चाहती  है ।  दीप्ति  तुम  अंदर  जाओ, मैं  ज़रा  माँ  को  फ़ोन  कर  लो ।  सुमित  ने  अपने मोबाइल  को देखते  हुए कहा।  एयरपोर्ट  में  अंदर  जाने  से  पहले  सुमित  ने कई  बार  मुड़कर  देखा पर जिसके  बारे  में  उसका दिल  सोच  रहा  है, वह  नहीं  आने  वाली। अब  मैं   उसे  भूलकर जिंदगी में  आगे  बढूँगा। सुमित ने मानो  फैसला  लिया। सुमित एयरपोर्ट  के  अंदर  जाने  लगा तभी  "हैप्पी  वैलेंटाइन  डे" सुना तो  पीछे  मुड़कर  देखा।   ईशा  हाथ  में  गुलाब  लिए   खड़ी  है ।  "ईशा  तुम !  गुडबाय  बोलने आई  हूँ?" सुमित  अब  भी हैरान  है।  

"नहीं, मैं तो  आई  लव  यू  कहने  आई  हूँ। आई  लव  यूँ  सुमित।  तुमसे  दूर रहकर  लगा  कि तुम्हारे  साथ  ही  रहना है । तुम्हारी  आदत  हो  चुकी  है।" गुलाब  ने देते  हुए  ईशा  ने  कहा ।  सुमित  ने  यह सुनते  ही  ईशा  को  गले  लगा  लिया  और  अचानक  बारिश  शुरू  हो गई । "मेरे  साथ  शिकागो  चलोगी?" यह  पूछते  हुए  उसने ईशा  के होंठ चूम लिए । चलोगी, पर  पहले मेरी  मम्मी  से  बात  तो कर लो।   ईशा  ने  भी जवाब  में  उसके  होंठ  चूम  लिए।  तुमने  इस  बारिश  को  आज बेहद  खूबसूरत  बना  दिया ।  सुमित  ने ईशा  की  आँखों  में देखकर  कहा। दोनों  एक  दूसरे  के गले  लगे  बारिश  में  भीगते जा  रहे है।

समाप्त 



विकलांग  मन

लगातार दूसरी बार नमन आठवीं  में फेल हो गया। उसके पापा ने उसकी  डंडे से पिटाई  की । माँ ने भी लाड  नहीं  दिखाया ।  "पापा  बात  नहीं  समझते, आख़िर  मैं  पढ़  ही नहीं  सकता  तो पढ़ाई छुड़वा क्यों नहीं  देते । एक  साल  घूम-फिर लूँ, फिर  पापा  की  कपड़ो  की  दुकान संभाल  लूँगा, बस  इतनी  सी  बात  तो  है,  पापा  फालतू  में  ही  स्कूल  और ट्यूशन पर  इतने पैसे  लगा  रहे  हैं।"  बिस्तर  पर लेटते  हुए  नमन  ने  मन  ही  मन  सोचा। वही साथ  वाले  कमरे  से माँ  की  आवाज़ें  आ रही  थीं  जिसे  नमन  दीवार  पर  कान  लगाकर  बड़ी  ध्यान  से सुन रहा  था । "सुनो  जी  ! मैं  तो  कहती  हूँ  कि  नमन  को दुकान  पर  रख  लो, वैसे  भी  आगे -जाकर  उसने  यही  तो  करना  है  । क्यों  बेकार  में  पैसे  खराब  करे ?लगातार  दूसरे  साल  भी  नमन  फेल  हो गया है ।"  

 "अरे ! अभी  13  साल  का  तो  है, आठवीं  भी  पास  नहीं  कर  पा  रहा  है । दुकान  पर  बैठा  लिया  और  किसी ने   बाल-मज़दूरी  का केस  डाल दिया। फ़िर  पूरी  बिरादरी  को  पता चल  जायेंगा  कि  महेंद्र  का  बेटा  पढ़  नहीं  सका इसलिए दुकान  पर  बैठा  लिया। मैंने  सोचा  था कि मैं  तो तंगी  और  अपने  पिताजी  की  बीमारी  के  कारण  पढ़  नहीं  पाया  कम से कम यह  तो  पढ़  ले, मैं  अपना  अधूरा  सपना  अपने  बच्चे  के  ज़रिये  पूरा  करना  चाहता  हूँ  तो  क्या  गलत  कर  रहा  हूँ? मेरे  कारोबार  को  अपनी  शिक्षा  से  और  आगे  ले जाता, अब  क्या  बस  मेरी  तरह  कपड़े  का  दुकानदार  बनकर  रह जायेंगा क्या?"  कहते-कहते पापा  की  आवाज़  भर  आई।  और  माँ   पापा  को  दिलासा  देते  हुए  बोली, हम  अपने  बच्चों   पर अपने  सपने  नहीं  थोप  सकते  जी  कल  को  गुस्से  में  आकर  कुछ   कर बैठा  तो  फिर   क्या  होगा ?"  मैं  अपने  थोप  रहा  अगर  कल  को  वो  दुकान  पर  नहीं  बैठेंगा तो  क्या  मैं उसके  कोई   ज़बरदस्ती   करूँगा  अरे !  नमन  की  माँ  यह  उम्र  पढ़ाई  की  होती  है  दुकान  पर  सौ  तरह  के   लोग  आते  है  किसी  गलत  संगत  में  पड़  गया  तो  तुम  वैसे  भी  अपना  बेटा  गवा  दूंगी,  थोड़ा  काबिल  तो बनने  दो  ताकि  दुनियादारी  समझ  सकें   इससे  आगे  नमन से  सुना न  जा  सका 

अगले  दिन  नमन  का  दाखिला  सरकरी  स्कूल  में  करवा  दिया  गया। नमन  के पापा शायद  हार  नहीं  मानना  चाहते  थें ।पर  नमन  को  अभी  किताबें  देखकर  यही  बात  याद  आती  कि  "मैं  जब  पढ़  नहीं  सकता  तो  मुझे  क्यों  पढ़ाया  जा रहा  है।" एक  दिन  स्कूल से  लौटते  वक़्त  नमन  को   गगन  दिखाई  दिया  जो  उसका  होनहार  पड़ोसी  था । "क्यों  गगन  तू  तो  नौवीं  में  पहुंच  गया  और  इस  बार  भी आठवीं में  प्रथम  आया  है। एक  बात  तो  बता  यार ! तू ठीक  से  चल  नहीं  सकता, लिख  नहीं  सकता, तू  शारीरिक  रूप  से  अपंग  हैं । फिर  कैसे  पढ़  लेता  है?" "क्योंकि  मैं  मन  से  विकलांग  नहीं  हूँ  न  इसलिये पढ़  लेता हूँ ।   मेरी  इच्छाशक्ति  और  मेरे  माँ -पापा  के  सपने  मुझे  हिम्मत  नहीं  हारने  देते । दोस्त  अगर  हम एक  बार  ठान  ले न,   तो  हम  क्या  नहीं  कर  सकते , यह  तो  फिर  भी  पढ़ाई  है। नमन  को  गगन की बात  समझ में  आ गई  कि  वह  मन  से विकलांग  हो  चुका  हैं। 

अगले  साल  नमन  अच्छे अंको  से  पास  हो  गया  और  धीरे -धीरे  आगे  चलकर  उसने  प्रथम  स्थान  भी  प्राप्त  कर  लिया  । उसके  माता  पिता  ख़ुशी  से  फूले  नहीं  समां  रहे  थें।  अब उसने  ठान  लिया  था  कि वह  अपने  पिता  के कपड़े  की  दुकान  को  एक  बड़े  कारोबार  में  बदलकर  एक नई  ऊंचाइयों  तक  ले  जाएगा , क्योंकि  अब  मन  की  विकलांगता    खत्म  हो चुकी  थीं । 

cab writer by Swatigrover in Hindi



कैब  ड्राइवर

रात  के  ग्यारह  बज  चुके  थे। मेहर ने नोएडा सेक्टर-56 के अपने ज्वेलरी के शौरूम से बाहर निकली  और  अपनी  बुक की  हुई  कैब  को  देखने लगी। पर  दूर-दूर  तक कोई  गाड़ी  नज़र  नहीं  आई । अरे! क्या  टाइम  हो  गया  है अब  तक  निधि  की  बुक  की  हुई  कैब  क्यों  नहीं आई। मेरा फ़ोन तो काफ़ी  दिनों  से  ठीक से  काम  नहीं  कर  रहा  पर  यह  लड़की  भी  ठीक  से कोई  काम  नहीं  करती  हैमेहर ने चिढ़ते हुए कहा। चारों तरफ़ देखकर निधि  को  फ़िर फ़ोन  किया। पर निधि का फ़ोन भी बिज़ी जा रहा था। आज  तो  ऑटो  ही  लेना  पड़ेगा। हे! भगवान आज ठीक से घर पहुँचा दियो। मेहर परेशान होते हुए बोली।  मेहर  सहारनपुर  से  यहाँ अपनी बुआ के घर आई थीं।  उसकी  माँ  बचपन  में  ही  गुज़र  गई  थीं । और पिता  का  कुछ अरसे  पहले  ही  देहांत  हो  गया  था ।
तभी एक  कैब  दूर  से  आती  हुई  नज़र  आई।  उसे  लगा  कि  यह  क्या ! उसकी  सहेली  निधि  ने  आख़िर कैब  बुक  करवा  दी । कैब  अपनी  ही गति से  चली  जा  रही थी । कैब  ड्राइवर  ने  शायद  मेहर  को  नहीं  देखा  था, वह  तो  आगे बढ़ता ही जा रहा  था ।  तभी  निधि  कैब  के  सामने  आ गई  और  उसे  अपनी  गाड़ी  रोकनी  पड़ी । आप  कैब  रोक  क्यों  नहीं  रोक  रहे  थे ? इतनी  जल्दी  में  कहा  जा रहे  थे ।  "मैम  आपको कहा  जाना  है ? मुझे   यहाँ  नहीं  रुकना है।" ड्राइवर ने जल्दी  दिखाते हुए कहा।  " आप  चलो  पहले  ही  देर हो चुकी  है ।  मेहर  जैसे  जबरदस्ती कैब   में  बैठते हुए बोली।  अरे ! मैम यह  सब  क्या  है? ड्राइवर ने गुस्सा में कहा।  "ओला  कैब  मेरी  सहेली  ने  बुक  करी  है ।  अब  क्या  ड्रामे  कर  रहे  हो ?" मेहर  गुस्से  से  बोली । "जी  मेरी  कंपनी का  नाम  लूपरा  है । आपने  कोई  कैब  बुक  नहीं  की ।  मैं   किसी  और  को लेने  जा रहा  हूँ ।"  ड्राइवर बड़ी  तन्मयता  दिखाते  हुए  बोला । ओह ! इस  कंपनी  का  नाम  पहले  कभी   सुना  था  पर  मुझे  बहुत  देर  हो गई  है। अब  अकेली  लड़की  कैसे  जाएँगी  ? प्लीज  मुझे  घर  छोड़  दीजिये  कोई  ऑटो  और  कैब  भी  नहीं  मिल रही है । "प्लीज़  आई  बेग  यू " मेहर  ने  बड़ी  ही बेचारी  बनकर  कहा । "कहा चलना  है ?"  ड्राइवर  ने  मुँह  बनाते  हुए  कहा ।  बस मयूर  विहार फेज-3 छोड़ दीजिये। 

कैब  तेज़  चलती  गई  और  मेहर  के  बताये  पते पर  उसने कैब को रोक दिया गाड़ी  से  निकलकर  वह  बाहर  निकली  और  पैसे  पूछने  के लिए  जैसे  ही  ड्राइवर  को देखा, वह  उसे  देखती  ही रह  गई । इतना हैंडसम लड़का उसने  आज  तक  ज़िंदगी  में  नहीं   देखा  था ।  काली  आँखें, हल्के  घुँघराले  बाल न ज़्यादा  गोरा  न  काला  रंग  चेहरे  पर  इतनी   कशिश की  बस  देखती रह गयी। "आप रहने दीजिये मुझे  देर हो रही  है।" कहकर  ड्राइवर ने  कैब  वापिस  घुमा ली । और स्पीड से  कैब  निकालकर ले गया। और मेहर तब  तक  कैब  को  देखती  रही जब  तक  वह  आँखों  से  ओझल  नहीं  हो गई । जब  सोने  लगी  तो  उसी कैब वाले  का चेहरा ही  नज़र  आने लगा  अरे! काश ! यह  ड्राइवर न  होता, पर इससे  क्या  फर्क पड़ता है, पता नहीं  फिर कब मिलेगा? अब  कहाँ मिलेगा? शरीफ था। मुझे ठीक से घर पहुँचा दिया। और क्या चाहिए। ऐसे कितने सवालों के बारे में  सोचकर  उसे कब नींद आई  उसे  पता  ही नहीं  चला। 
कल  ज्वेलरी की शॉप में  जाते  हुए  उसने  सबसे  पहले  निधि  को फ़ोन  किया।  
"निधि  कल  कैब बुक  क्यों  नहीं  करी  तूने  ? अरे ! कुछ दिखाई ही नहीं दे  कर रहा  था ।  ठीक  से पहुँच गयी  सॉरी  यार!  मैंने  तुझे  फिर फ़ोन भी किया  पर  तूने  कॉल  ही पिक नहीं  किया ?" निधि की  आवाज़  में  पछतावा  साफ़  झलक  रहा था ।  "मैं   तुझसे गुस्सा थी, पर  हाँ  मैं  ठीक  से  पहुंच  गयी थैंक्स  टू  डेट  हैंडसम  प्रिंस चार्मिंग ।"  मेहर  मुस्कुराते  हुए  बोली ।   कौन   था  वो  निधि  की  आवाज  में  एक खनक  थी।  "था कोई  बाद  में  बताऊँगी। मेहर  ने  कहकर  फ़ोन  रख  दिया।

दिवाली आने  वाली  है  और  इस  त्योहार  के  मौसम में  पहले  ही  शो रूम  में  बहुत  भीड़   है ।  तथा  रोज़  यह  बात  तो  तय  है  कि देर  तो  होनी  ही होनी हैं । पर  रात   को   वही  कैब   मिल जाये   तो क्या   कहने । मेहर मन ही मन यह सोचकर गुदगुदा उठी।  आज  मेहर फिर  किसी  ऑटो  का  ही इंतज़ार  कर  रही  थी ।  तभी  वही  कैब  गुज़री  और  उसने  हाथ  दे  दिया। "अरे! मैम  आप   कोई  और   गाड़ी  देखिये  न  वाय  मी"   ड्राइवर  ने  थोड़ा  मुस्कुराते  हुए तथा  व्यंग्य  करते  हुए  कहा। "खड़ूस कही  का  थोड़ी  शक्ल  क्या  अच्छी  मिल गई, यह  तो आसमान  में  ही रहने  लग गया । देखिये  आप  मुझे  आधे  रास्ते  ही  छोड़  दीजिये  मेरा  कजिन  मुझे  फिर वहाँ  से  लेने   आ  जाएगा।  पैसे  ले लेना  मेहर थोड़ा झिझकती  हुई  बोली। "आईये बैठिए" ड्राइवर ने  इतराते  हुए  कहा।

गाड़ी अपनी गति से चल रही थी। मेहर खिड़की से बाहर देखते हुए ही बोली-- "लगता है कि आपकी परमानेंट सवारी है जिसे आप पिक करते है। जी बिलकुल पर्मानेंट ही है।" ड्राइवर ने शांति से ज़वाब दिया। "आपकी कार में कोई शीशा क्यों नहीं है। आई मीन एक्सीडेंट भी तो हो सकता है।" मेहर ने  बात शुरू करने के लहजे से पूछा। "जिनकी गाड़ी में होते है क्या उनसे एक्सीडेंट नहीं होते है?" एक  अज़ीब सा रूखापन ड्राइवर की आवाज़ में था। ऐसा जवाब सुनकर मेहर ख़ामोश हो गई। "यह नूमना  तो बात करना ही नहीं चाहता अज़ीब है। बस आख़िरी बार कोशिश कर लेती हूँ।" मेहर ने मन ही  मन सोचा। "क्या बात है मेहर? कोई सेल्फ़ रेस्पेक्ट है या नहीं? या इस सपनों के राजकुमार से  बेइज़्ज़ती करानी है।" अंतरतमा की आवाज़ थी । अरे! "कल यह मिले न मिले नाम तो पूछा ही जा सकता है । मन ने मेहर को उकसाया। और मन जीत गया ।

"मेरा नाम मेहर है। मैं यहाँ सहारनपुर से आयी हूँ। अपनी चाची के पास रहती हूँ। यहाँ एक ज्वेलरी शोरूम में सेल्स में काम करती हूँ । आपका नाम क्या है?" मेहर एक ही सांस में बोल गई। "मैंने  वैसे कुछ पूछा नहीं था।" ड्राइवर ने कार की खिड़की से बाहर देखते हुए कहा। "लो करा ली  बेइज़्ज़ती आया मज़ा! अंतरात्मा  की  आवाज़  थी। "आपका स्टॉप आ गया 100 रुपए दे दीजिये।  मेहर गाड़ी से उतरी 100 रुपए पकड़ाते हुए बोली "थैंक्यू"। उसकी आवाज़ में एक अज़ीब सा रूखापन  था। "मेरा नाम ताबिश है" कहकर ड्राइवर ने तेज़ गति से कैब चलाई और कैब नोएडा फ्लाईओवर पर चढ़ गई। "शायद यह भी मुझे पसंद करता है।" मेहर के मन ने कहा। "लेकिन शायद! मेहर की अंतरात्मा की आवाज़ थीं।" "हाँ"! मेहर के मन ने चिढ़ते हुए कहा और अंदर चली गई।

कल फिर से ताबिश वहीं मिला। कल, परसों जाने कितने दिन और थोड़ी-थोड़ी बातों का सिलसिला शुरू  हो गया। एक दिन मेहर ने ताबिश को कहा कि "क्या  हम  इस  लिफ्ट  के अलावा कहीं  मिल नहीं सकते। मेरा मतलब  किसी  मॉल  या  रेस्तरां में।" मेहर की आवाज़ में एक गुज़ारिश थीं। इतना  सुनते  ही  ताबिश  ने  गाड़ी  रोक  ली और बाहर निकलकर  कहने लगा कि "बाहर आओं  मेहर।" "यह मुझे गाड़ी से बाहर निकाल रहा है। कमब्ख़त कहीं का।" मेहर यही बड़बड़ाते  हुए गाड़ी से बाहर निकल गई । "मैं दिन में तो नहीं आ सकता पर मेरे पास यह रात है और दूसरा  तुमसे किसी भी तरह से अलग मिलना मेरी गर्लफ्रेंड को भी पसंद नहीं आएगा।" ताबिश मेहर की आँखों में देखता हुए बोला। "क्या! गर्लफ्रेंड" मेहर चिल्लाई! "मेरा  मतलब  गर्लफ्रेंड  राइट! शायद  यह  वहीं परमानेंट  सवारी  है जिसे  तुम  मुझे  छोड़कर  पिक  करते हो?" मेहर ने घूरते ताबिश की आँखों में देखकर कहा। "हाँ सही वो नोएडा में जॉब करती है मैं उसे रोज़ पिक करता हूँ।  वो ही  आख़िरी सवारी है, जिसे मैं बहुत प्यार करता हूँ मेहर।" ताबिश की आँखें ही उसकी प्रेम कहानी को बयां कर रही थीं। "अगर इसकी गर्लफ्रेंड न होती तो धिक्कार होता लड़कियों की कौम पर" मेहर के  अंतरमन ने कहा। "पर तुम्हारा दिल तो टूट गया मेहर?" यह मेहर के दिल की आवाज़ थीं। "चलो चलते है।" ताबिश ने  कहा। "ताबिश हम दोस्त तो बन ही सकते है, आख़िर मेरे यहाँ ज़्यादा दोस्त भी नहीं है। सिर्फ कभी-कभी ऐसे ही थोड़ी देर रास्ते में रुककर कर बात कर लेंगे। मेहर की आवाज़ में फिर वही गुज़ारिश साफ़ झलक रही थीं। "ठीक है मेहर ध्यान रखना कि दोस्ती और प्यार के  बीच एक बारीक़ रेखा होती है। और वो रेखा हमेशा बनी रहें।" ताबिश गाड़ी में बैठता हुआ बोला। "क्यों नहीं, कुछ-कुछ होता है ताबिश तुम  नहीं  समझोंगे" उसके मन ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा ।

यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा। ताबिश सिर्फ मंगलवार को ही गाड़ी रोककर उससे साथ कुछ वक़्त के  लिए बात करता। और मेहर उस पर भरोसा  करके  अपनी  ज़िंदगी की सभी  बात  बताती  रहती। वह भी बड़े ध्यान से सुनता जैसे किसी नतीज़े पर पहुँचना चाहता हूँ। मेहर को उसका साथ बहुत अच्छा लगने लगा था। वह चाहती थी कि उसके कंधे पर सिर रखकर या  उसकी  बाहों की  पनाहों  में घंटो बैठी रहे। "वो किसी और का है मेहर" उसके अंतर्मन से आवाज़ आती। और वो उतना ही तड़प  उठती थीं। एक दिन उसने  ताबिश  से पूछा "तुम्हारी गर्लफ्रेंड क्या बहुत सुन्दर है?" "ख़ूबसूरती लफ्ज़ उसके  लिए कम है बस मुझे सिर्फ इतना पता है कि मैं उसके बिना नहीं जी सकता ।" कहते  हुए  ताबिश  मेहर  के  कितने  करीब  आ  गया कि  उसे  खुद  पता  नहीं  चला ।  "मैं  तुमसे  प्यार  करने  लगी  हूँताबिश  'बहुत  प्यारमुझे  लगता  है कि  मैं  तुम्हारे  बिना  नहीं  रह  सकती।  मेहर  ने  यह कहकर  ताबिश  को  चूम  लिया । ताबिश  मेहर  को  धक्का  देकर पीछे  हटा  "होश  में  बात  करो मेहर तुमने  मुझे  छुआ  कैसे !" ताबिश  यह  कहकर कैब  को  दौड़ाता हुआ वहाँ से  चला  गया ।  मेहर अपने घर आ गई। सारी रात उसकी आँखों में नींद नहीं थीं।

अगले दिन ताबिश  नहीं  आया  कई दिन  बीत  गए  पर ताबिश का कोई पता ही  नहीं। मेहर परेशां सी रोज़ हर आने-जाने वाली गाडी  को  देखती पर  ताबिश कहीं दिखाई  नहीं  दिया । उसने एक दिन सारी बात निधि को  बताई । "यार! एक बात समझ नहीं  आती कि आखिर यह ताबिश बंद कंपनी की कैब कैसे चला  रहा  है" निधि  की  बातों  में  संदेह था । "वो सब  मुझे नहीं पता बस इतना पता है कि ताबिश का पता लगाना है।" मेहर की यह कहते-कहते आँख भर आई। "यार! 'रो मत करते है कुछ। मैं पता लगाती हूँ, कुछ और नहीं तो उसके घर का पता भी मिल जाए वही काफ़ी है।" निधि  ने  गले लगाते  हुए  कहा ।

कुछ  दिनों  बाद  निधि  पागलों  की  तरह  भागकर आई  और बताया कि "ताबिश के घर का  पता  मिल  गया ।  बड़ी  ही  मुश्किल से  मिला है यार! किसी दोस्त के दोस्त ने बताया वो भी कभी  उसी लूपरा कंपनी में काम करता था। चल, चले!" निधि ने मेहर को लगभग खींचते हुए  कहा। दोनों पता लेकर नोएडा के सेक्टर 104  पहुँच गई फ्लोर की घंटी बजते ही दरवाज़ा एक अधेड़ उम्र की महिला ने खोला। "जी ताबिश है क्या? "कौन ताबिश?" औरत ने पूछा।  "जी वहीं जो एक कैब चलाता है।" मेहर ने कहा। "देखो बेटा ताबिश पाँच साल पहले हमारे किराए के मकान में रहता था ऊपर वाले फ्लोर पर।"  बड़ा ही अच्छा लड़का था। दो साल पहले सुनने को मिला कि उसने खुदखुशी कर ली है, उसके बाद कुछ पता नहीं।" महिला ने कहा।

"कयययययययययया या!!!!!! आंटी आपको कोई  गलतफहमी हुई है। मेहर ने लगभग चीखते हुए कहा। "हाँ, हो सकता है कि कोई गलतफहमी हो गई है। शायद तुम किसी और ही ताबिश की बात  कर रही हूँ । बेटा! मुझे माफ़  करना" और फ़िर वह दरवाज़ा बंद करके आंटी चली गई। "कोई गलत पता  ले  आई  है  तू  निधि?" यार ! क्या  पता तेरा यह कैब ड्राइवर कोई भूतिया ही हूं।" निधि  ने छेड़ते  हुए कहा। "मुँह बंद कर ऐसा कुछ नहीं है यार! मुझे वैसे भी उसकी बहुत याद आ रही है, एक बार  बात  कर  लेता। इस तरह  गायब तो नहीं होता।" मेहर की आँखें यह कहकर भर आई। "बस कर यार! तू तो इश्क़ में निकम्मी  होती जा रही है। निधि ने मेहर को समझाते हुए कहा।     

अगले दिन मेहर ने  देखा सामने से ताबिश  की कैब  आकर रुकी  और मेहर ने जैसे ही ताबिश को देखा वैसे ही उसके गले लग गई और इससे पहले  वो  कुछ  पूछती ताबिश उसे गाड़ी में बैठाता हुआ बोला चलो कहीं  लेकर चलता हूँ। गाड़ी चलती जा रही थी और नोएडा के फ्लाईओवर को क्रॉस कर गाड़ी एक ऑफिस से थोड़ी दूरी पर रुकी शायद कोई  ट्रेवल और टूरिज्म का ऑफिस था। तभी  मेहर ने देखा  एक  खूबसूरत  सी  लड़की  उसी  ऑफिस  से निकली  और  जैसे  ही क्रॉस करने के  लिए  उसने  कदम  बढ़ाया सामने  से  आती तेज़ कार  ने  उसे टक्कर मारी और वह सड़क पर  गिर गई। खून से लथपथ हो  गई । तभी मेहर ज़ोर से चीख़ी और गाड़ी से  निकलकर  उसकी  तरफ़ भागी पर वहाँ  कोई  नहीं  था। "वो मेरी नूरा थी मेहर"।  मेहर ने  पीछे  मुड़कर  देखा  तो ताबिश खड़ा था "पर ताबिश वो तो वो वो तो।।" "वो  तो मर चुकी है"। ताबिश मेहर  की बात खत्म  से पहले ही बोला"। "एक  दिन ऐसे  ही इधर खड़ा  उसका  इंतज़ार कर रहा  था औरतभी तेज़ गाड़ी अचानक आ गई ड्राइवर पिया हुआ था। उसने मेरी  नूरा  को  टक्कर मारी और बस  सबकुछ वही खत्म।" कभी सोचा था  कैब  का काम छोड़कर  अपना  गाड़ी का  काम शुरू करूँगा और  नूरा  से  शादी  मनाऊँगा, पर"।  ताबिश  कहते-कहते  रुक  गया। 

"काम  शुरू  क्यों नहीं  किया?" मेहर की  आवाज़  में डर  और  हैरानी  दोनों  थी। वह  समझ नहीं  पा  रही थी कि  अभी  कुछ  हुआ  वह  क्या  था  कोई  सपना  या डरवानी  हक़ीक़त। "कैसे करता मैं यह  सदमा  बर्दाश्त  नहीं  कर  पाया  और  थोड़े  समय  बाद  फाँसी  लगाकर  जान दे दी। मैं  रोज़  नूरा  को ऑफिस  से  लेने  जाता  था। तभी  एक  दिन रास्ते  में तुम  मिल  गई  और  उस  दिन  तुमने  अपने  प्यार  का  इज़हार  किया  नूरा  को  मुझे  देखते  ही  तुम्हारा  सच पता  चल  गया  कि  मुझे  किसी  ने  छुआ  है  और  अब  वो वापिस  चली  गई ।" ताबिश  मेहर  को  देखता  हुआ  बोला।

 "कहाँ  चली  गई"? मेहर  ने  डरते-डरते  पूछा।  "जहाँ मरने  के  बाद  जाना  होता  है  वह  तो  मेरे  खातिर  ही  इस  धरती  पर  भटक  रही थी ।"  बोलते  समय ताबिश की  आँखों  में  आँसू  थे। मेहर  का  चेहरा  सफ़ेद  पड़  चुका  था उसकी दिमाग की नसें  फटती  जा  रही  थी। अब समझ  में  आया  गाड़ी  में  शीशे का  न  होना। आंटी सच  कह रही थी ।  मेहर ने  सोचा। "ताबिश तुम  मुझे  मार  दोंगे  क्या"? डरावना डर उसकी आवाज़ में था। ताबिश  उसकी और  बढ़ता  जा रहा था। मेहर  पीछे  हट  रही थी।  उसने बहुत  क़रीब आकर मेहर का हाथ पकड़ा  "अगर  मैं  तुम्हे  मार  भी  दूँ तो  तुम  तो  मुझसे  प्यार  करती  हूँ  फ़िर  दोनों  हमेशा  के  लिए  साथ  रह  सकते  है।"  ताबिश  ने  मेहर  की  डरी  आँखों  में  देखकर  कहा । 



"नहीं  ताबिश  मुझे  मरना  नहीं  है"।  और  हाथ  छुड़ाकर मेहर ताबिश से दूर हो गई। "इश्क़  क़ुरबानी  माँगता  है  मेहर।  पर  प्यार  में  हर  कोई  जान  नहीं  दे सकता। जाओं! लौट जाओ" यह कहकर  ताबिश मेहर  से  दूर  जाने  लगा  और  मेहर  ताबिश  को  जाते  हुए देख रही  थी।  तभी ज़ोर  से  चीख  सुनाई  दी  और  ताबिश ने  मुड़कर  देखा एक जोड़ा घायल मेहर  के  पास  खड़ा  उसे  उठाने  का  प्रयास कर  रहा  है ।  "अरे ! यह  क्यों  खुद  हमारी  गाड़ी  के  सामने  आ  गई।"  लड़की  कह  रही  थी।  ताबिश  ने मेहर  का  सिर  गोद  में  उठाया  और  मेहर!मेहर! कहने लगा। "तुम एम्बुलेंस को  कॉल करो मना भी किया था इस  रास्ते से  मत  जाना  मगर  तुम  सुनती  नहीं  हूँ  यहाँ  हादसे  होते  रहते  है । अब  भुगतो"।  दोनों लड़का-लड़की  लड़ाई  कर  रहे  थे ।  ताबिश  बेहोश  मेहर  को  देखा  जा रहा  था  अरे ! "तुम इसे  डॉक्टर  के  ले  जाओं"। ताबिश  ज़ोर  से  चिल्लाया, पर उसे  सुनता  कौन? तभी वो दोनों वहाँ से गाड़ी लेकर भाग गए और  ताबिश चीखता  रह  गया। उसने अपनी कैब का  दरवाज़ा  खोला तभी  यह  क्या ! मेहर  सामने  बैठी  हुई है और  मुस्कुरा रही है।  "मुझे  भी  इश्क़  में जान  देनी  आती  हैं  ताबिश"। ताबिश  ने  मेहर  को  देखा  उसकी  बाहों  में  मेहर  का  ठंडा  पड़  चुका  शरीर  था  उसने  उसकी  आत्मा  को गले  लगाया  और  बेतहाशा  चूमा  और  कैब  चला  दी।

अगले  दिन  मेहर  के मरने  की  खबर  अखबार  में छप गई  और  निधि  यही  सोच  रही  थी, "वो  भूतिये  ताबिश ने  मेहर  को  मार  डाला।" पर यह मेहर ही  जानती  है  कि  उसने   अपने  प्यार  कैब  ड्राइवर के  लिए  जान  तक  दे  दी !!!


 बंद तालों  का  बदला:::1



बंद तालों  का  बदला:::1

पाँचो  दोस्त  अमृतसर  स्टेशन पर  उतर  रात  साढ़े  दस  बजे  उतर  चुके  थे । पेपर  के  बाद  हुई  दो  चार  छुट्टियाँ  का  मज़ा  हमेशा  ही  किसी  ऐसे  ही  कोई  घूमने  का  प्लान  बनाकर  लिया  करते  थे। विपुल  और विनय को हमशा  ज़िन्दगी  में कुछ   रोमांचक  करने  की  ख़ोज  में  लगे  रहते  तभी  उन्होंने  बाकि  दोस्त  प्रखर, सुदेश  और  निशा  जोकि  सुदेश  की  गर्लफ्रेंड  थी  सबको  माउंटआबू  चलने  के  लिए  ही कहा था पर  प्रखर  की ज़िद  पर इस  बार  वाघा  बॉर्डर  देखने  का  मन  था  तो  अमृतसर  पहुंच  गए   । प्रखर  के  पापा  भी  कारगिल  की  लड़ाई  में  शहीद  हो  गए  थे  और  अब  भाई  की  पोस्टिंग भी कश्मीर  में  ही थी  ।  इसीलिए  उसका  सेना  के  प्रति  सम्मान  था  शायद  इस  भावना को   बयान  कर  पाना  प्रखर  के  लिए  थोड़ा  मुश्किल  था   । अमृतसर  पहुंचते  ही  सीधे  अपने  बुक  किये  होटल  में  पहुँच  कर  अपने कमरों  में  आराम  करने लगे ।  तय  तो  यही  हुआ  था  कि  थोड़ा  आराम  कर  घूमने  निकला  जाए  । पर  रात  के  तीन  बजे  सुदेश  और  निशा  ने  तो  अपने  कमरे में   से निकलने  से इंकार  कर दिया   । पर  प्रखर  विपुल और  विनय  तीनो  पहुँच  गए  अमृतसर  के  स्वर्ण  मंदिर  और  साथ  में  थोड़ी  दूर  था   जलियावाला  बाग  ।  गुरूद्वारे  में  माथा टेक  अमृतसर  की  सुनसान  पड़ी  सड़कों  पर  घूमना शुरू  किया   ।

हालॉकि  उनका  होटल  स्वर्ण  मंदिर  से  बहुत  ज़्यादा  दूर  नहीं  था मगर  फिरने  के  लिहाज़  से  बस  निकल  पड़े  उन  गलियों   की  तरफ  जहॉ  आधे  से  ज़्यादा  मकान  बंद  पड़े थे  ।  एक अज़ीब  सा  सन्नाटा  चारों  तरफ़  बिखरा  पड़ा  था  ।  बंद  दरवाजों  के तालों  पर  जंग  लग  चुका  कुछ  टूटकर  गिरने  को  पड़े  थें  । तीनो  दोस्त  बड़े  ध्यान  से  सभी  बंद  घरों  को  देखे  जा  रहे  थे  बीच- बीच  में  विपुल  और  विनय  मज़ाक  भी  करते  थें   ।  "ये  तो  काफ़ी  बड़े  घर  है  पर   लगता  है  कोई  सालों  से  लौटकर  नहीं  आया  विपुल  बोला।  चल  हम  कब्ज़ा  कर  लेते  हैं, यार सुदेश  और  निशा  को  वेडिंग  गिफ्ट  में  होम  स्वीट  होम   गिफ्ट  करेंगे।" कहकर  दोनों  ज़ोर  से  हसँने  लगें  । "अरे! यार  मुझे  तो  भूतिया  घर  लगते  है  एक  अजीब  सी  दहशत  हो  रही  है   ।" प्रखर  बोला   ।  "हो  भी  सकता  हैफिर  तो  मज़ा  आने  वाला  है  इस  ट्रिप  में।"  विपुल  ने  ताली  देकर  विनय  को  कहा   । चुपकर  यार।  चल  निकले  यहाँ  सेहोटल  पहुँचते  है  । प्रखर  ने  कहा 

प्रखर  तेज़- तेज़  कदमों  से  चलने  लगा   । तभी  आगे  जाकर  चाय  की  दुकान  नज़र  आई  तो  विपुल   दोनों  को  ज़बरदस्ती  वही ले  गया  । "भैया  तीन  कप  कड़क  चाय  पिलाओ  तो  और यह  भी  बताओ  की  यह  इतने  सारे  घर  बंद  क्यों  है ?" विपुल  ने  चायवाले  से  पूछा   । "वहीं  अंग्रेज़ों  के  ज़माने  का  जलियावाला कांड  बस  ऐसे  कितने  ही  घर  उजड़  गए  । तो  क्या  कोई  नहीं  जो  इन  घरों  को  संरक्षण  दे  सके  विनय  ने  पूछा   । कौन  देगा  सरकार' कुछ  करती  नहीं  और  इनका  कोई  बचा  नहीं  जो  थोड़े  बहुत  किसी  के  रिश्तेदार  बचे  थे  वे  भी  बाहर   चले  गए  । अब  तो  बस  ऐसे  ही  ख़ाली   है  ।"  चाय  वाले  ने  चाय  देते  हुए  कहा  ।  "और आप ? आप  कबसे  है  यहाँ  पर ?" प्रखर  ने  पूछा। "मेरा  तो  जन्म  यही   हुआ  था  चाय बेचना   हमारा काम तो  बरसो  से  चला  आ  रहा है  ।  चाय  वाले  ने  छोटी  सी  सोती  हुई  लड़की  के  सिर  पर  हाथ  फेरते  हुए  कहा  । तीनों  ने  चाय  वाले  को  पैसे  दिए  और  आगे  बढ़  गए  पर  पता  नहीं  क्या  सोचकर  प्रखर  ने  पीछे  मुड़कर  देख लिया   ।  पीछे  देखते  ही  देखते  लड़की जाग  जाती  है और  बड़ी  होने  लगती  है  और  उसका  रंग -रूप  बदलने  लगता  है  वह  उस  चाय  वाले  का  हाथ  पकड़ती  है  और  चाय  वाला  भी  डरावना   हो  जाता  है  एक  भयानक  आदमी। और  दोनों  प्रखर  को  देख  मुस्कुराते  है। चाय  की  दुकान  गायब।  प्रखर  को  काटो  तो  खून  नहीं  वह  ज़ोर  से  चिल्लाया, "विपुल-विनय।"
"क्या  हो  गया क्यों  चिल्ला  रहा  है"  विवेक बोला।  "हम  यही  तो  है  न"। प्रखर  विपुल  से   बोला  यार  वह  दुकान  और  वो  चाय  वाला  वो  लड़की  सब  सब  ....  भूत  बन  गए। प्रखर  बहुत  डरा  हुआ  था । "देख  भाई  कल  सुबह  बात  करते  है  बहुत  थक  चुके  है  और  उस  चायवाले  की  बातें  सुनकर  मैं  समझ  सकता हूं    कि  तेरे दिमाग  में  क्या  चल  रहा  होगा  जो भी  है होटल  चलते  है  आराम  करते  है।" विपुल  ने  प्रखर  को  होटल  के  अंदर  खींचते  हुए  कहा ।  तीनो  होटल  के  कमरे  में पहुंचे अपने  कपड़े  बदले  और  बिस्तर  पर  पड़  गए  पर  प्रखर  बेचैनी  से  खिड़की  से  बाहर  देख  रहा  था  उसकी  आँखों  में  नींद  नहीं  थी  पर  फिर  भी  थकावट  इतनी  थी  कि  वो ज्यादा  देर  जागने  का  संघर्ष  नहीं  कर  सका  और  सो  गया।
सुबह के  10  बजे  पाँचो  होटल  से  रवाना  हुए  और  रास्ते  में विनय कल  रात  की  बात  सुदेश  और निशा  को  बताता  जा  रहा  था ।  सब  उसका  मज़ाक  भी  उड़ा  रहे  थें   । पर  प्रखर   का  ध्यान उस  दुकान  पर  ही  था  जो  कल  रात  दिखी  थी। "यह  तो  बंद  पड़ी  है"।  निशा  ने  कहा ।  "हाँ  बंद  तो  है  चलो  किसी  से  पूछते  है"  प्रखर  ने  कहा।  साथ  में  कुल्फी  रेढ़ी  वाले  से  पूछा  तो  उसने  कहा  दिन  में  तो  बंद  ही  रहती  है  पर  छह  बजे  के  बाद  कोई  खोलता  हो  तो  पता  नहीं  क्योंकि  मैं  तभी  तक  यहाँ  होता  हूँ। सब  यह  सुनकर  आगे  बढ़  गए  और  प्रखर  को  भी  लगा  शायद  मन  का  कोई  वहम  हो । अब  सब  फिर  गुरूद्वारे  में  माथा  टेक  जलियावाला  बाग  देखने  पहुंच  गए   । चारों  तरफ़  शांति  और  देशभक्ति  का  प्रतीक  यह  बाग  और  उधम  सिंह  की  मूर्ति  सब  के  मन में  साहस  और  श्रद्धा  की  भावना  को  मजबूत  कर  रही  थी । जहां  सुदेश  और   निशा सेल्फ़ी  खींचने  में  लगे  थे  वहीं  प्रखर  को  वही  लड़की  और  चायवाला  दिखाई  दिए  तो  उसने  चारों  को  बताया  सब  उन  दोनों  के  पास  पहुँचे   ।  "भैया  आप  यहाँ  पहचानाकल  रात  हम  चाय  पीने  आये  थे  आप  यहाँ  क्या  कर  रहे  हो ? विपुल  ने पूछा   हम  तो  यहाँ  आते  रहते  हैं  हमारे  सारे  अपने  यही  तो  रहते  है, रात  को  चाय  का  काम। चाय  वाले  ने  अज़ीब  और  बेहद  दर्द  भरी  आवाज  में  कहा ।  वो  छोटी  लड़की  ने  चायवाले  का  हाथ  पकड़ा  हुआ  था   ।" आप  हमारे  साथ  फोटो  खिचवायेंगेनिशा  ने  कह।  और  प्रखर  सब की फोटो  खींचने  लगा   । प्रखर  ने  फोटो  खींचते  वक़्त  यह  महसूस  किया  कि  कैमरे  में  लड़की  बड़ी  नज़र  आती  है  वह  डर  गया  और  कैमरा  निशा  को  दिया  निशा  ने  सेल्फी  खींचे  और  वे  चाय वाले  को  थैंक्यू  बोल  बाग़  से  बाहर आ  गए।

बंद  तालों  का  बदला::::2

निशा   ने सारा  दिन शॉपिंग  की।  फ़िर  शाम  को  सारे दोस्त  वाघा  बॉर्डर पहुँचे  । देश  की सेना  को  देख  प्रखर  को अपने  पिता  की याद  आई । सभी  दोस्तों  ने उसे   गले लगाया  और भारत  माता  की जय  और वन्देमान्त्रम के नारे  लगाते  हुए  सभी  एक ढाबे  में  खाना  खा  रहे थे ।  रात  हुई  और  घूमते-फिरते पता  ही नहीं चला कि   कब  वक़्त गुज़र गया ।  और  रात  के  बारह  बज   गए ।  जब होटल पहुंचे तो होटल के मालिक  ने  कहा  कि-"आप सभी को रूम खली करना  पड़ेगा । क्योंकि  पुलिस  आयी थी  उनके  कुछ लोग यहाँ  पर ठहरना  चाहते  हैं  । हमारी  भी मजबूरी   है, आप अपने  आधे  पैसे  वापिस  लेकर  रूम  ख़ाली  कर दीजिये । असुविधा   के लिए  माफ़ी  चाहता  हूँ ।"  यह  कहकर  होटल  के मालिक  ने  सभी  को कमरे  का  सामान  खाली  करने  के  लिए  कह  दिया । "यार ! हम इतनी  रात  को कहां  जायेंगे ?" निशा  ने कहा ।
"जाना  कहा  है? मिल  जायगा कुछपहले  यहाँ  से बाहर  तो  निकले।"  सुदेश ने कहा । "रात  के 1 बज  रहे है। कहाँ  जायेंगे?"  निशा  फिर  परेशान   होकर  बोली  । "इसी  का  नाम  तो  रोमांच  है"।  विनय  विपुल  को  गले  लगाकर  बोला ।
विपुल  गाना  गाते  हुए  जा  रहा  था  कि  'रात  बाकी  बात  बाकी' तभी  सभी  को  चायवाले की दुकान नज़र आई । अरे ! वह  देखो चायवाला  और  उसकी  दुकान  वहाँ  चलते  है, फिर  देखते  है कहाँ  चलना  है। सभी  चाय  की  दुकान  पहुँचे। "भैया  पाँच  कप   कड़क  चाय  तो  देना  विपुल  बोला । वही  छोटी  लड़की  भी  खड़ी  सबको  देख  रही  थी, पर  प्रखर  को  उसकी  आँखें  घूमती  हुई  नज़र  आयी  । उसने  एक  दम  ध्यान  हटा  लिया  । "भैया  कोई  होटल  मिल जाएगा । हम  को  मज़बूरी  में  अपना  होटल खाली  करना  पड़ा  है ।" विनय  ने  कहा।  "चलना  है  तो  हमारे  घर  चलो, वहाँ  रात  गुज़ार  लेना।" चाय  वाले  ने  चाय  देते  हुए  कहा ।  सभी  दोस्त  मान  गए  पर  प्रखर  ने  जाने  से  साफ़  इंकार  कर दिया  उसका  दिल गवाही  नहीं  दे  रहा  था  कि  वो  वहाँ  कोई रात गुज़ारे। सबने  उसे  समझाया  "यार!  प्रखर  रात की  तो  बात है  फिर  सुबह  कही  और  निकल  लेंगे।" विपुल ने  कहा। "मुझे  पहले  से  ही कुछ  गड़बड़ लग  रही  है । मैं  नहीं  जा सकता । तुम्हें  जाना है  तो  जाओ।" प्रखर  गुस्से से  बोला। देख!  इनके घर  जाकर  तेरे मन का  वहम भी  दूर हो  जायेगा। और  हमारी  रात  भी आसानी से कट जाएँगी।" सुदेश  ने  भी  यहीं  कहा। "हाँ  ज़िद  न  करोप्रखर  शॉपिंग  करके  मैं  बहुत  थक  गयी  हूँ ।" निशा  ने भी यही  कहा । न चाहते  हुए भी प्रखर मान  गया ।


सब  के  सब  चाय वाले और  उस छोटी  सी लड़की  के साथ  चल दिए ।  रास्ते  में  मुकुल  ने  चाय वाले से उसके  घर और उस छोटी बच्ची के बारे में पूछा।  और जैसे  ही उसने  यह  बताया  कि  यह  लड़की  उसकी बहन  है  और  उसका  घर  जलियाँवाला  बाग़  के पीछे  है। तो  एक पल  के लिए  सभी  थोड़ा  घबरा  गए  फिर  विपुल ने पूछा, "वहाँ  तो ज्यादातर  घर  बंद  पड़े  है न  भैया?"  "नहीं  हमारा  घर  तो  खुला  हुआ  है । हम  तो  बंसी  चायवाले  के  नाम  से यहाँ मशहूर  थें ।"  चायवाले  ने उत्तर  दिया । यह  कहते  ही  लड़की  की  बदलता  आँखों  का  रंग  इस  बार  सुदेश  ने  भी  देख  लिया और  प्रखर  तो  पहले  ही  डर  के मारे  पीछे  चल रहा  था। जैसे -जैसे वे  उस  गली  की तरफ  बढ़ रहे थे ।  वैसे-वैसे  ही अँधेरा  ख़ौफ़नाक  होता  जा रहा था । निशा  को  लगा  कि  उसके  और  सुदेश  के साथ  कोई  और  भी  चल  रहा  था ।  सभी  बंद  पड़े  मकान  के ताले  खुलते  हुए  से  नज़र  आये  फिर  उसने  अचानक  मुँह  फेरा  तो सब  गायब। निशा  थोड़ा डर  गई  और  सुदेश  का  हाथ  कसकर  पकड़  लिया । तभी  सुदेश  ने पूछा, "क्या  हुआ?" "कुछ  नहीं  शायद  थक  गई  हूँ ।" निशा  ने  अनमने  ढंग कहा । "बस  अभी  पहुंचने  ही  वाले  है  फिर  आप  सब  आराम  ही  आराम  कर  लेना ।" यह  कहते  हुए चायवाले  के चेहरे  पर  एक  डरावनी  हँसी  और  टेढ़े  मेढ़े  दाँत  को  प्रखर  ही  देख  पा रहा  था  । वही  विपुल  और विनय  सभी  घरों  को  गौर  से  देख  उनकी  फोटो  खींचते  जा रहे  थें  ।
तभी  एक  बड़े  100-200  गज़  के मकान  के सामने  आकर वे  रुक  गए। दरवाज़ा  खुलता गया  अंदर  अँधेरा  था  । लाइट  नहीं  आती  क्या विपुल  ने  पूछा । "अभी  बत्ती  चल जाएँगी । तभी  घर  के दो-तीन  बल्ब  खुद  ही जल गए  । और आज वहाँ  एक  औरत  भी  नज़र  आई  । और  कहने  लगी  "बंसी  आ  गए  तुम ?" "हाँ ! आ गया  कुछ  मेहमान  भी लाया हूँ।" बंसी  ने  कहा । औरत  का  मुँह  ढका  हुआ  था। लाल  रंग का  घूँघट  अँधेरे  में  और  भी ज्यादा  चमक  रहा  था । किसी  को भी  उसका  चेहरा  नज़र  नहीं  आया ।  मगर  जब  औरत  की  नज़र  उन  पर पड़ी  तो  अचानक प्रखर को  उसके  दाँत  बाहर  और  बिलकुल  उसका  चेहरा  काला-नीला  और  पीला  नज़र  आया । वह  तो  एकदम  डर  ही  गया  तभी  बंसी  ने  कहा  "भाग्यवंती  इनको  ज़रा ऊपर  वाला  कमरा  तो  दिखाओ  । आज  की रात  यह  यही  रहेंगे । " सभी  उस औरत  के  पीछे  सीढ़ियों  पर  चलने  लगे । एक विचित्र  सा  खौफ  मानो  ऐसा  लग  रहा  था  कि  जैसे  सीढ़ियों  पर कोई  एक नहीं  अनेक  लोग खड़े हों । अनेक  लोगों  का  खड़ा  होना  सिर्फ़  निशा  और  प्रखर  को  महसूस  हुआ।  मगर  जैसे  ही  वह  कुछ  बोलते  तब  कमरा  आ  चुका  था  और  वह  औरत वहाँ  से  जा  चुकी  थीं  ।

कमरा  पुराने समय  के  हिसाब  से  बना  हुआ  था। दीवारों का पेंट उखड़ा हुआ था। एक हलकी-हलकी सी दुर्गन्ध भी आ रही  थी  । और  एक  हल्का  सा  चांदनी  सा  बल्ब  भी  वही  जगमगा  रहा  था। तभी  प्रखर  बोला-"मैं  अभी  भी कह  रहा  हूँ  कहीं  और  चलो  यह  जगह  बिलकुल  भी  ठीक  नहीं  लग  रही  यह  न  हो  कि  पता  चले  कि  हम तो  आये  घूमने  है  और  यहाँ  किसी  भूतिया में फँसकर  भूल-भुलैय्या  ही  न  बन  जाएँ।"  "मुझे  भी  कुछ  अजीब  सा  डर   लगता  है सुदेश आज  जब  मैंने  फेसबुक  पर  डालने  के  लिए  कैमरा  चेक  किया  था, तब  उस  भैया  और  लड़की  की  फ़ोटो  कहीं  नहीं  थीं ।  मुझे  लगा  डिलीट  हो  गयी  होंगी  पर  सिर्फ  वही  दोनों  गायब  थे  बाकी  सब  तो  थे ।  शायद  प्रखर  ठीक  कह  रहा  है ।" निशा  ने  कहा  । "तूने  यह  बात  पहले  क्यों  नहीं  बताई  निशा ? सुदेश  ने  पूछा।" "मैं  दुविधा  में  थी , क्या  कहो ।" निशा  ने  सफाई  दी । "यार  ! वक़्त  देखो  रात  के  एक  बजने  वाला  है  फिर  कुछ  ही  देर  में  सुबह  हो जाएँगी । तुम  लोगों  से  थोड़ा  सब्र  नहीं  होता। चल  यार विपुल  मेरे  दिमाग  में  कुछ  खुराफाती  चल  रहा  है । चल  छत  पर  चलकर  बात  करते  है। इन डरे  हुए  लोगों  को  यही  रहने  दो ।"  यह  कहकर  विपुल  और  विनय  कमरे  से बाहर निकल  गए । "चलो  निशा  थोड़ा  सो  लेते  है, बहुत  थक  चुके हैं।" कहकर सुदेश कमरे में  ही  बिछी  चारपाई  पर  लेट गया । निशा  भी  वही  उसके  पास  बैठ  गयी  और  प्रखर  ज़मीन  पर  बैठ  गया । थोड़ी  देर में  सुदेश  और  निशा  तो सो गए  पर  प्रखर  की  आँखों  में  कहीं  भी  नींद  का नामो-निशान  नहीं  था । वह  तो  बस  कमरे  की  दीवार  को  देखे  जा रहा  था । ऐसे  लग  रहा  था  कि  जैसे इस  कमरे का  कोई  डरावना  गुज़रा  हुआ  कल  है ।  जो  अभी  उसके  सामने  शुरू हो  जाएगा । और  हुआ  भी  वही  उसे  टूटे  हुए  पंखे  पर  कोई  लटकता  हुआ  नज़र  आया और अचानक  गायब  हो गया।  बस  फिर  प्रखर  से  उस  कमरे  में  रुका  नहीं  गया  और  कमरे  से  निकल  नीचे  बरामदे  में  आ गया ।


बंद  तालों  का  बदला::::3

पसीने से  लथपथ प्रखर जैसे ही बरामदे  में पहुँचा उसने देखा कि चार पाँच  लोग काली-पीली  शक्ल वाले लोग  बरामदे  में  घूम  रहे  है, वह  लड़की  भी  वहीं  थीं  । तथा  पहले  से  भी  ज्यादा  डरावनी  लग  रही  थीं । चेहरा  नीला  पड़ा  हुआ था । उसकी  तरफ़  सभी  बढ़  रहे  थें ।  ऐसे लग  रहा  था  सब  उसके  शरीर  के  अंदर  घुस  जायेंगे । और  वह  कुछ  नहीं  कर  पाएंगा।  तभी  वह  ज़ोर  से  चीखा और  वहाँ  सो  रहे  निशा  और  सुदेश  भी  जाग  गए  और  भागते  हुए  नीचे  आए  और  तभी  विपुल  और  विनय हँसते  हुए  कैमरा  लेकर  आ  गए । और  सबकुछ  ठीक  हो  गया।  वह  डरावने  लोग सही  हो  गए । दो  औरतें  और  दो  आदमी  पर  वह  लड़की  नहीं थीं।  "ये  सब  हमारा  किया  हुआ  था । हमने  भैया  से  बात  कर ली थीं । हम यह  डरावनी  वीडियो  अपलोड  करेंगे  और  तहलका  मचा  देंगे । देखना  कितने  ज़्यादा  लाइक  आते हैं । और  खूब  पैसा  भी  मिलेगा।" विनय  ने  कहा । "तू  पागल  है, तूने  मेरी  जान  निकाल  दी  थीं । प्रखर  ने  विपुल  को  धक्का  देते  हुए  कहा । निशा  और  सुदेश  ने  भी  डाट  लगायी । प्रखर  ताज़ी  हवा  लेने  छत  पर  चला  गया । निशा  और  सुदेश  भी वापिस  कमरे  में  आ  गए।  विपुल  और  विनय  वही  कैमरा  चेक  करने  लगे। शुरू से  वीडियो  शुरू  की । पूरा  घर  सब  वीडियो  में  दिख  रहा  था । पर  जब  आगे  बड़े  तो  प्रखर  के  अलावा  वहाँ  कोई  नहीं  था। बस  वीडियो  में  प्रखर चीखते  हुए  दिख  रहा  था।

"यह  क्या  बाकी  सब  लोग  कहाँ गए? तूने  ढंग  से  शूट  किया  था ।"  विपुल  ने  पूछा। "हाँ  यार  सब  सही  चल  रहा  था ।  पता  नहीं  क्या  हुआ ।" विनय  अभी  भी  कैमरा  बार-बार  ठीक  से  देखकर   बोल रहा  था । मगर  बस  प्रखर  ही  दिख  रहा  था  ।  हम  दोबारा  शूट  कर  लेंगे  ज़रा  भैया  से  पूछ  कर  आता  हूँ । कहकर  विनय  पूछने  चला  गया । ढूंढ़ते-ढूंढ़ते  एक  कमरे  में  पहुँच  गया  । उस  कमरे  में  पहले  से  कोई  पीठ  खड़ा  कर  खड़ा  था । घुसते ही  विनय  ने  बोलना  शुरू  किया । "भैया  क्या  फिर  से  वही  लोग  आ  जायेंगे  हमारा  ठीक  से  शूट  नहीं  हुआ  है । उस  आदमी  ने  कुछ  नहीं  कहा । विनय  उसके  पास  चला  गया  उसका  कन्धा  पकड़  फिर  बोला  भैया ।" यह  सुनते  ही  उसने  पीछे  मुड़कर  देखा  तो  विनय  को  कांटो  तो  खून  नहीं । उसकी  दोनों  आँखें  नहीं  थीं, चेहरा  काला  पड़ा  हुआ  था।  एक  भद्दी  और  मोटी  सी  आवाज़  में  बोला-"हाँ  आ  जायेंगे बताओ  कब  बुलाना  है ? यह  कहकर  उसने  विनय  की  गर्दन  पकड़  ली । और  विनय  की  आँखें  बाहर  आई ।
जब  काफी  देर  तक  विनय  नहीं  पहुँचा  तो  वह  उसे ढूँढने   जाने  के  लिए  हुआ  था । तभी  विनय  आ  गया। "तू  ठीक  है? कहा  रह  गया  था ?"  विपुल  ने  पूछा और  देखा  कि  विनय  कुछ  बोला  नहीं  बस  सिर्फ  सिर  हिला  दिया  है । "कब  आ  रहे  है  वो  लोग ? बस  आते  ही  होंगे।" विनय  ने  विपुल  को  घूरते  हुए  कहा । चल  मैं  बाकि  दोस्तों  को  भी  बता  देता  हूँ  । यह  कहकर  विपुल  ऊपर  कमरे  में  गया  तो  वहाँ  निशा  और  सुदेश  पहले  से  ही  सिर  पकड़कर  बैठे  हुए  थे । "क्या  हुआ ? विपुल  ने  पूछा ।  प्रखर  तो  यहाँ  से  जाने  के  लिए  कह  रहा  है। वो  नहीं  मानेगा, अब  हम  यहाँ  से निकलेंगे।  सुदेश  बोला। कैसी  बातें  करते  हो ? एक  वीडियो  और  शूट  कर  लेते  हैं। मैंने  सब  इंतज़ाम  कर  लिया है  बहुत  मज़ा आयेंगा। हम  रातों- रात अमीर  बन  जायेंगे ज़रा  सोचो  तो।" विपुल  ने  कहा । "प्रखर  नहीं  मानेगा ।  वह  वैसे  भी  बहुत  परेशां  लग  रहा  है। और  हम  उसे  नहीं  समझा  सकते। और  उसे  अकेला  भी  नहीं  जाने  देंगे ।" निशा  ने  कहा  । "ठीक  है  तुम  तीनो  नीचे  आओ  ।  हम  वही  थोड़ा  सा  शूट  कर  बाहर  के  दरवाज़े  से  बाहर  निकल  लेंगे ।" विपुल  ने  कहा ।
सभी अपना  बैग  लेकर  नीचे  बरामदे  में  आ  गए।  नीचे  विपुल  पहले  से  ही  उनका  इंतज़ार  कर  रहा  था। विनय  के  हाथ  में  कैमरा  था।  तभी  विपुल  ने  एकदम  से  शुरू  करना  कहा  तो  सबकी  सब  डरावनी  शक्लें  उनकी तरफ  बढ़ने  लगी  और  पूरा  कमरा भूतों  के  हजूम  से  भर  गया  हो  जैसे । प्रखर, निशा  और  सुदेश  ज़ोर  से  चिल्लाए  और  भागने  लगे । सब  दरवाज़े  की  तरफ  भागे  तो  विपुल ने  उन्हें  रोकते  हुए  कहा  कि  ये सब  एक  नाटक  है  पर  ऐसा  कुछ  नहीं  है। विनय  सबको  मना कर  मत  भागों  । उन्होंने  जैसे  ही  पलटकर  देखा  सब  भूत  रुक  गए । तभी  विपुल  ने  कहा- सभी  को  धन्यवाद।  पर  अब  हम  चलेंगे, चल  विनय, चल  यहाँ से,"  यह  कहकर  उसने  विनय  का हाथ  पकड़  उसे  चलने  के  लिए  तो  कहा  तो  उसने  पूरी  ताकत  से  विपुल को  दीवार  की और   धकेला  । सब  विनय  को  देखने  लगे  उसकी  आँखे  लाल  हो  गयी  और  उसका  सिर  घूमने  लगा  इसका  मतलब  वह  भी  एक  भूत  बन  चुका  था  । "सब  के  सब  भागों  यहाँ  से" प्रखर  ने  कहा । चारों  दोस्त  दरवाज़े  की तरफ़  भागने  लगे। सबने  दरवाज़ा  खोला  और  भागते-भागते  सड़क  पर  आ  गए  । फिर  एक  बंद  घर  के  पास  हाँफते-हाँफते रुक  गए  । "मैंने  कहा  था  न  कि  कोई  गड़बड़  है, मगर  मेरी  सुनता  कौन  है?" "अब  भुगतो"प्रखर  ने  चिल्लाते  हुए  कहा। "मैं  और  नहीं  भाग  सकता। मैं  थक  गया  हूँ  । विपुल  यह  कहकर  उस  बंद  घर  के  पास  बैठ  गया।  "जल्दी  से  जल्दी  स्टेशन  पहुंचते  है  और  यहाँ  से निकलते  हैं । सुदेश  ने  कहा । तभी  उन्होंने  देखा  जहाँ  विपुल  बैठा  हुआ  था  उस  घर  का  दरवाज़ा अपने  आप खुला  और  ज़ोर  की  आंधी  आयी  और  विपुल  को  अंदर  खींचकर  ले गयी  । सब  के  सब  बुरी  तरह  डर  गए  और  भागने  लगे। आगे  वो  भाग  रहे  थे  और  पीछे  उनके  भूत  बन  चुका  विनय  भाग  रहा  था ।
छोटी-छोटी  गलियों  में  भागते  हुए  तीनो  दोस्त  एक  खुले  घर  में  पहुंचे।  पीछे  मुड़कर  देखा  तो  कोई  नहीं  था । अब  क्या  करे ! ऐसे  तो  हम  सब  के  सब  मारे  जायेंगे ।  निशा  ने  रोते  हुए  कहा ।  कुछ  नहीं  होगा  बस  कुछ  घंटो  बाद  सुबह  होने  वाली  है  फिर  यहाँ  से  निकल  जायेंगे  सुदेश  ने  उसे गले  लगाते  हुए  कहा।  तभी  प्रखर  ने  उस  घर  की  तरफ  देखा  तो  वह  भी  घर  किसी  खंडहर  से  काम  नहीं  था  सामने  कुछ  तस्वीरें  लगी  थी।  शायद  उसी  घर  के  लोग  थे ।  एक  जगह  पूरा  परिवार  एक  जगह  कुछ  बच्चों  की  तस्वीरें ।  उसी  बच्चों  में  वह  छोटी  लड़की  जो  तस्वीर  में  दिखाई  थी । प्रखर  ने  सुदेश  और  निशा  को  भी  दिखाया  उन्हें  उन  तस्वीरों  में  भी  वही  चाय  वाला   भैया  दिखाई  दिया ।  सब  बुरी  तरह  डर  गए। तस्वीर  के  पीछे  लिखा  था ।  '1919' "इसका  मतलब  यह  लोग  तो  मर  चुके  हैं ।  जलियावाला  बाग़  में  मरने  वाले  लोगों  में  यह  भी  थे  और  वो  जो  हमें  उस  घर  में  दिखाई  दिए वे  इनका  पूरा  परिवार  होगा  तभी  मैं कहो  कि  उनकी  तस्वीर  कैमरे  में  क्यों  नहीं  आयी । इसका  मतलब  विपुल  और  विनय  भूतों  के  सच  के  भूतों  के  साथ  शूटिंग  कर  रहे  थें  ओह  माई  गॉड"  निशा  ने  सिर  पकड़कर  कर  कहा । "अब  क्या  होगा?" सुदेश  ने भी  कहा ।
बंद  तालों  का  बदला::::4

कहीं  यह  घर  भी  भूतिया  तो  नहीं  है । थोड़ा  अंदर  चलते  है  अगर  यहाँ  छुपा  जा  सकता  है  तो फिलहाल  छुपने  में  भी  कोई  बुराई  नहीं  है । सभी  अंदर  के  कमरों  की  तरफ़  चल  पड़ते  हैं । प्रखर  और  सुदेश  अपने-अपने फ़ोन  की  लाइट  जला  कर  अँधेरे में  चलने  की  कोशिश  करते  हैं  । जैसे ही   एक  बंद  कमरे  का  दरवाज़ा  खोलते  है  तो  अंदर  देखते   है  कि  चारपाई  पर  एक  आदमी  लेटा हुआ  होता  है।  उन्हें  देखते  ही  वह  जाग  जाता  हैं  उन  तीनो  को  लगता  है  शायद  यह  आदमी   कोई  भूत  हो  इसलिए  जब  वो  भागने  लगते  है  तब  वो  उन्हें  रोक  लेता  है  । और  उनसे  उनकी  कहानी  पूछता  है । सब  उन्हें  बताते  है  कि  उनके  साथ  अब  तक  क्या-क्या  हो  चुका   है  । "हां  यह  सही  है  कि मैंने  भी  सुना  था  कि  जॉलीवालाबाग  में  मरे  हुए  लोगों  की  रूहे  यहाँ  आती  है । पर  तुम  जिनकी  बात बता  रहे  थे  वो  भाई-बहन  तो  उस  बाग़  में  नहीं  मरे । पर  यहाँ पर बहुत   सालों  पहले  चोरी  हुई  थी, उन  चोरों  ने  ही  उन्हें  बेरहमी  से  मार  डाला  था  । वे  तो  उस  दिन  बाग  में  नहीं  गए  अपितु  वे  तो  दोनों  ही  बच  चुके   थे । मगर एक   रात  की  डकैती  ने  उन  दोनों  की  जान  ले  ली  । वो  बेचारा  तो अपनी   चाय  बेचता  था, नाम  था  उसका  'बंसी  चाय  वाला ।' बस  जब  वो  मर  गए  तो  सबको  मारना  शुरू  कर  दिया  उन  चोर-डाकुओ  को  भी  वे   मार  चुके हैं । और  सब  के  सब  इन्ही  बंद  तालो में  भटकते  रहते  है  और  जब  तुम जैसे  नासमझ  लोग  उन्हें  मिल  जाते  है  तो  तुम्हारे  जैसो  का  भी  शिकार  हो  जाता  हैं ।" उस  आदमी  ने  बड़े  ही  इत्मीनान  से  सारी  कहानी  सुनाई ।

"आप  यहाँ  क्या  कर  रहे  हैं ?" प्रखर  ने  पूछा।  "मैं  तो  चोर  हूँ. आज  यहाँ  आ  गया  था। उस  आदमी  ने  कहा। "अब  यहाँ  से  कैसे  निकला  जाये?"  निशा  घबराकर  बोली  । तभी  उसके  सामने  की  खिड़की  अपने  आप  खुलने  लगी  और  तो  और  वहाँ  से  भी  कोई  साया  आया  और  एक  ऐसे डरावनी  शक्ल  में  परवर्तित  हो  गया और  अपना  हाथ  लम्बाकर  निशा  की  तरफ  बढ़ने  लगा  और  जैसे  ही  उसका  हाथ  निशा  के  गले  तक  पहुँचा  वो  सब  फिर  उस  कमरे  से  निकल  भागे  उनके  साथ  वो  आदमी  भी  था  । इस  बार  घर  के  दरवाज़े  बंद  हो  गए  और  वो  एक  कमरे  से  दूसरे  कमरे  की  तरफ  भागने  लगे ।  मगर  हर  तरफ   वो  काला  साया  उनका  पीछा  कर  रहा  था  पर  तभी  देखा  कि  एक  कमरे  में  विपुल  खड़ा  है  और  उसकी  आँखें  चमक  रही  है। "यार ! तू  ठीक  है  न  ?" सुदेश  ने  पूछा।  "हां  ठीक  हूँ  पर  हम  सब  मारे  जाएंगे। चलो हम  सब  किसी  सुरक्षित  जगह  चलते  हैं  । विपुल  ने  भारी  सी  आवाज़  में  कहा । "कहाँ" "और  तुम  तो  कह  रहे  हो  कि  हम  सब  मारे   जायेंगे।"  प्रखर  ने  पूछा  । "अगर  तुम मेरे  साथ  नहीं  चले  तो  ज़रूर  मारे  जाओंगे  ।" सब  के  सब  विपुल  के   पीछे  चलने  लगते  है  । अब  उस  मकान  का  दरवाज़ा  खुल  चुका  हैं  । वह उन अपने  तीनो  दोस्त  और  उस  आदमी  को  लेकर  एक  और  बंद  ताले  वाले  मकान  की  तरफ़  ले  जाता  हैं  जैसे  ही  विपुल  की  नज़रे  उस  ताले  को  देखती  है  वह  ताला  टूट  जाता  हैं  । "यह  ताला  कैसा  टूटा ? "सुदेश  के  इतना  बोलते  ही  विपुल  का  हाथ  बड़ा   होकर  सुदेश  की  तरफ  बढ़ने  लगता  है । सब  फिर  भागते  हैं  ।

निशा  का  थकान  से  बुरा  हाल  है  ।  "मुझे  लगता  है  यहाँ  से  भागना  फिज़ूल  है। सब जगह  वही  भूत-प्रेत   और  आत्माएं  हैं। आदमी  ने  कहा। "हमे  तो  किसी  तरह  स्टेशन  पहुँचना है  बस  ताकि  हम  जल्द  से  जल्द  यहाँ  से  निकले  ।" प्रखर  ने   कहा  । "तुम्हें  स्टेशन  मैं  पहुँचा  देता  हूँ ।" आदमी ने  कहा । " आप  कैसे  पहुंचाएंगे ? आपको  रास्ता  पता  है? जहाँ हमें   फिर  ऐसा  ख़तरा  नहीं  मिलेगा ।"  सुदेश ने  अपने  मन का सवाल पूछा  था। "तुम  जाना  चाहते  तो  मेरे  पीछे  चलो, वरना   तुम्हारी  मर्ज़ी ।  मैं  तो  यहाँ  से  निकल  ही  जाऊँगा।" यह  कहकर  आदमी  आगे-आगे  चलने  लगा  । तीनों  दोस्त रूककर  सोचने लगे  । "जिस  पर  भरोसा  कर  रहे  हैं  वे  सब धोखा  दे  रहे  हैं ।  सब  हमें  मारने में  लगे  हुए  है, ऐसे  में  अब  इस  चोर  आदमी  पर  भरोसा  करना  ठीक  है  क्या ?" निशा  ने  कहा  । और  हम  कर  भी  क्या  कर  सकते  है  निशा  ? कोई  और  रास्ता  भी  नहीं  है  हो  सकता  है  यह  हमारी  मदद  ही  कर  दें । सुदेश  ने  कहा ।  मेरा  दिमाग  तो काम  नहीं  कर  रहा   ।  "विपुल  और  विनय  मरकर  भूत  बन  चुके  हैं  अब  हमारा  क्या  होगा  ?" प्रखर  ने  कहा ।  "देखो  यहाँ  इस  सुनसान  में  खड़े  रहना  ठीक  नहीं  है । उसी  आदमी  के  पीछे  चलते  है, यह  कहकर  सुदेश  निशा  का  हाथ  पकड़  और  प्रखर  को  भी खींच  उसी  दिशा  की  तरफ  भागने  लगता  है, जहां  वो  आदमी  जा  रहा  था । 

"सुनो ! सुनो ! हम  भी  पीछे  आ  रहे  हैं ।"  तीनों  यह  कहते  हुए  उसके पीछे  चलने  लगते  हैं  । अब  सब  के  सब  गलियों  से  निकल  बाहर  की  तरफ़  आने  लगते  हैं । मगर  रास्ता  सुनसान  है  झाड़ियाँ  और  पेड़  शुरू  हो  चुके  है  ? झाड़ियों  में  रेंगते  हुए  कीड़े  नज़र आने  लगते  हैं  ।  जिनके  देखकर लग  रहा  था  कि  यह  भी  कोई  ज़हरीला  साँप बन  डसने  लग  जायेंगे  ।  "हम जहाँ कहा जा   रहे  हैं ?" प्रखर   ने  पूछा । "तुम्हे  स्टेशन  पहुँचने  से  मतलब  होना  चाहिए ।" आदमी  ने  बड़ी  रुखाई  से  कहा  । "एक  बात  बताओ  उन  दोनों  भाई  बहन  को  मरे  हुए  कितना  समय  हो  चुका  है ? क्योंकि  आपने  ही  यही  कहा  था  कि वो  लोग  उस  जलियावाला बाग़  के  कांड  में  नहीं  मरे  थे  ? "प्रखर   ने  पूछा ।  "उनके  मरने  के  पाँच  साल  बाद ।" आदमी  ने  कहा   ।  "फ़िर  वो  चोर  कब  मरे  जिन्होंने  उन्हें  मारा  था ? कोई  दो  साल  बाद ।"  आदमी  बोलते  हुए लगातार आगे  बढ़ता जा  रहा  था ।  तभी  प्रखर  का  गला  सूखने  लगा, "आपको  यह  कहानी  यहाँ  के  लोगों  ने  सुनाई  होंगीप्रखर  ने  एक  बार  अपनी  आवाज़  को फिर  संभालकर  बोला ।  "कहानी  सुनाने  के  लिए  कोई  ज़िंदा  नहीं  रहा ।"  "फिर  आपको  को  कैसे  पता ?" अबकी  बार  निशा ने  पूछा । " मैं  वही  चोर  हूँ जिसने  उन  भाई-बहन  को  मारा और  उन्होंने  मुझे ।  ।  ।  ।  ।  ।  ।  यह कहकर  उसने  पीछे  मुड़कर  देखा  उसका  जला  हुआ  चेहरा  आँखे  बड़ी-बड़ी ।  मुँह  से  आग  निकलने  लगी वह  ज़ोर  से  दहाड़ा ।
पसीने  और  डर  से  लथपथ  वह  तीनो  ज़ोर  से  चिल्लाये  ।  आवाज़  कही  हलक  में  अटक  कर  रह गयी  और  प्रखर  बोला।   "भागो  निशा और  सुदेश  कहीं  भी  भागों" ।  सब  उलटी  दिशा  की  तरफ  भागने  लगे।


बंद  तालों  का  बदला:::5

जहाँ-जहाँ  वो  भागता  जा  रहे  थें ।  वही  नीचे  ज़मीन  से  सड़े-गले  हाथ  निकलते  जा  रहे  थें।  एक  हाथ  ने  निशा  का  पैर  पकड़ लिया  ।  वह  ज़ोर  से  चिल्लाई  तो  सुदेश  ने  अपने  पैर से  मारना  शुरू कर  दिया। फिर  अपने  बैग   से  कोई  धारधार  चीज़  निकाल उस  पैर में चुभो  दिया\।  तभी  पैर छूट  गया  और  फिर  दोनों  भागने  लगे।  तभी  वही  डरावनी  शक्लों  ने प्रखर  को  घेर  लिया।  तभी  वही  वो जो चोर   डरावना आदमी  था उसने  प्रखर  के  सामने आकर  कहा  कि  "तुम्हे  तो  कोई  तुम्हारा  अपना  ही  बचा  सकता  है ।"  और  प्रखर  की  तरफ  ज़हरीला साँप  फैंक  दिया  ।  जिसका  मुँह  उसके  फन से  भी  ज्यादा  बड़ा  था।   तभी  प्रखर  के पास  सुदेश  और  निशा   पहुँच  गए । और  उन्होंने  जलती  हुई  माचिस  की  तीली   को  साँप  के ऊपर  फैंक दिया।  "भाग  प्रखर" सुदेश  ने कहा।  फिर  तीनो  भागने  लगे।  और  भागते-भागते  निशा  का  पैर  फँस  गया  और  वो अचानक  से  गिर  गई ।
"अरे  ! जल्दी  चलो"।   प्रखर  ने  कहा  । " सब  तेरी  वजह  से हुआ  हैतुझे  ही अमृतसर  आने  की  पड़ी  थी  और  तो  और  वाघा  बॉर्डर  देखने  के लिए  मरा  जा  रहा  था  ।  अब सचमुच  ही  मौत  हमारे  पीछे  पड़  गई  ।  अच्छा-खासा  हमारा  प्लान पहाड़ो  की  वादियों  में  घूमने  फिरने  का  बन  रहा  था  । वही  चले  जाते  अब  तू  मर  हम  क्यों  मरे ? अब  कह  रहा  है जल्दी  चलो  ।"  सुदेश  ने  निशा  को उठाते  हुए  कहा  । "मेरी  वजह  सेमैंने कहा था  कि  उन  बंद  तालों के  घरों  में  जाओं  ।  और  तो और  विपुल और  विनय  को  भी  मैंने  नहीं  कहा  कि  भूतो के  साथ  मिलकर  कोई  खेल  खेलो  ।" प्रखर  ने भी लगभग  चीखते  हुए कहा।  "तुम दोनों लड़ क्यों रहे हों  ? हमें  अपनी जान के बारे  में  सोचना  है न  कि  उसके  बारे  में  जो गुज़र  गया  सो  गुज़र  गया  ।  निशा  ने  दोनों को समझाते  हुए  कहा।


अब  तीनों  लगे  भागने  अब  स्टेशन  ज्यादा  दूर  नहीं  रहा   बस  स्टेशन  पर  पहुंचने  ही  वाले  थे  कि  अचानक  से  ज़ोर  से हवा  आयी  और  निशा  गायब  हो गयी।   वही  झाड़ियों  की  सरसराहट  ने  निशा  को  ले  जाने   का  अनुमान  दे दिया। "निशा  कहा  गयी ? "निशा"  दोनों  सुदेश  और  प्रखर  ज़ोर  से  चिल्लाने  लगे  । मगर  कहीं  कुछ  नज़र  नहीं  आया।   "इसका  मतलब  निशा  हमेशा  के  लिए  हमें  छोड़कर  चली  गयी। " सुदेश  ने लगभग   रोते  हुए  कहा  । "कैसी  बातें  कर  रहा  हैं ? ज़रूरी  है, जो  विपुल   और  विनय  के साथ  हुआ  वो  निशा  के  साथ  भी  हूँ । हो  सकता  है, वह  रास्ता  भटक  गयी  हूँ।" प्रखर  ने सुदेश  का  कन्धा  पकड़  उसे  सँभालते  हुए  कहा  । "आखिर  सब  खत्म   हो गया तूने  महसूस  नहीं  किया  कि वो भूत  निशा  को  उठाकर  ले गए  है। "यह कहकर उसने  गुस्से  में  एक  ज़ोर  का  घूंसा  प्रखर  के मुँह  पर  दे मारा  । "अब  हम  कहीं  के  नहीं  रहेंगे"  बस सुदेश   यह  कहे  जा  रहा  था  और  प्रखर  को मारे  जा  रहा  था ।  फिर  दोनों  में  झगड़ा  शुरू  हो गया  । लगे  एक  दूसरे  को  मारने  सुदेश  के सिर  पर  खून  सवार  हो रहा  था । तभी  एक ज़ोर  का  घूंसा सुदेश  और  प्रखर  के मुँह  पर  लगा  और  वो  दोनों  दूर  जा  गिरे  ।  उनके  सामने  विपुल  और  विनय  भूत  बन  सामने  खड़े  थें  । दोनों  ने  दोनों  को  मारना   शुरू  कर दिया  और  उसके बाद  बाकी के  भूत  भी  उन्हें  खींच  एक उस  जगह  ले आएं, जहा  निशा  को  पेड़  से  उल्टा  टांग  रखा  था  और  उसका  सिर  आग  की  तरफ  था  । जो  कटकर  सीधा  आग  में  गिरने  वाला  था।  निशा  ज़ोर  से  चिल्ला  रही  थी  और  बार-बार  एक  ही बात  कह  रही  थी  "कोई  बचाओं  मुझे" । प्रखर  और  सुदेश  को  ज़ख़्मी  हालत  में  देख  निशा  ने  और  भी ज़ोर से चिल्लाना  शुरू  कर  दिया  । "सुदेश  प्रखर  बचाओं  मुझे"  निशा  ने  कहा । "तुम दोनों  ने हमे बहुत  परेशां  किया है ।  'बहुत  भगाया  अब  हम  तुम्हे  तड़पा - तड़पा  कर  मारेंगे  ।"भूत  बने  विपुल  और  विनय  ने  कहा   । "भाई  मेरी  निशा  और  मुझे छोड़  दें  और  इस  प्रखर  की  जान  ले ले ।" सुदेश  ने  हाथ  जोड़ते  हुए  कहा । "ये  क्या  कह  रहा  है  तू  साले  ?' प्रखर  ने सुदेश  ने कहा   । "बिलकुल  ठीक  कह  रहा  हूँ  तेरे  खानदान  में  तो  वैसे  भी  मरने की  बड़ी  हिम्मत  है। तभी  उस  लड़की बनी  भूत  ने कहा   "सब  मरेंगे  हम  भी  मरे  थे  हमारे पूरे  खानदान  भी  जलियावाला  बाग़  में  मारा  गया  था । सब  मरेंगे ।" तभी  उस  प्रेत  भूतनी  का  मुँह  बड़ा  हो  गया  और  उसका  हाथ  इतना  लम्बा  हो  गया  कि  निशा  की  गर्दन  तक  पहुंच  गया ।  सुदेश  ज़ोर  से बोला निशा !!!!!!! तो  बाकी  के प्रेत  ने  भी  उसकी  गर्दन  पकड़  ली  इसे  पहले  की  निशा  का  सिर  उस  दहकती  आग  में  जाता  ।
प्रखर  को  उस  भूत  चोर  की  बात  याद  आ  गयी   । 'तुम्हे  कोई  तुम्हारा  अपना  ही  बचा  सकता  है ।' तभी  प्रखर ने  अपने  पिता  को  याद  किया  और  अचानक  इतनी  तेज़  रोशनी  हो  गई  कि  उस  लड़की  भूत  का  हाथ  निशा  की  गर्दन  को  तोड़  नहीं  पाया   । सामने  देखा  तो  उसके  पिता की  आत्मा खड़ी  थी   । सभी  भूतों  ने  प्रखर  के  पिता  की  आत्मा पर  हमला  करना  शुरू  किया   । फिर  और  भी  कई  आत्माएँ  आ  गई  ।  तभी  उस  लड़की  भूतनी  को  अपना  परिवार  और  सारा  पड़ोस  जो  उस  जालियावाला  कांड  में  मर  चुका  था  नज़र  आने  लगा  । तभी  वो  लड़की  का  भूत  और  बंसी  की  आत्मा  शांत  हुए  और  निशा  पेड़ से  नीचे  गिर  गई  । "भागों  बेटा  स्टेशन  पहुँचो  बस  पीछे  मुड़कर  मत  देखना   ।"  उसके  पिता  की  आत्मा  ने  कहा   । तीनों  भागकर  स्टेशन  पहुँचे  ।   और  दिल्ली  वाली  गाड़ी  में  चढ़  गए  भीड़  होने  के  कारण  दरवाज़े  पर  ही  खड़े  हो  गए   । सुदेश  ने  निशा  को  गले लगा  लिया  "शुक्र  है, हम बच  गए ।" सुदेश  ने  कहा   । आज  प्रखर  के पापा  और  उन  सभी  नेक   रूहो  ने  बचा  लिया।  निशा  ने   प्रखर को  देखते  हुए  कहा । "हां  देश  के  लिए  मरने  वाले  शहीद  क्यों  कहलाते  है ? आज  समझ  आया   क्योंकि  वह  अमर  हो  जाते  है और  वो  वो  किसी  से  बदला  नहीं  ले सकते।"  यह  कहते  हुए  प्रखर  की  आँखों  में  आँसू  आ  गए  ।
"अब  यह  नाटक  बंद  कर।  बस  यह  हमारा  आखिरी ट्रिप  था।   अब  कहीं जाना होगा  तो  मैं  और  निशा  खुद  देख  लेंगे   । बस  दिल्ली   पहुँच  जाये। " सुदेश  ने  प्रखर  को  घूरते  हुए  कहा ।  गाड़ी अपनी  गति  से  आगे  बढ़  रही  थी  और  सुदेश  पागलों की  तरह  निशा  को  गले  लगाते  हुए "हम बच गए" कहने  लगा। तीनों  दोस्तों  के  चेहरे  पर  मुस्कान  आयी  थी  कि  ट्रैन  के  दरवाज़े  से  किसी  ने  सुदेश  को  ज़ोर  से  खींचा  निशा  ज़ोर  से  चिल्लायी  सुदेश्शशशशशशशशशश   दोनों  ने  देखा  कि  सारे  भूत  सामने दूर  खड़े  थे और  सुदेश  की  गर्दन  कट  चुकी  थीं  और  उनके  हाथ  में  थीं  । निशा  ने  न  कुछ  सोचा  बस  चलती  गाड़ी  से  कूद  गई  और  उसी  दिशा  में  भागने  लगी  और  अँधेरे  में  गायब  हो  गयी   । प्रखर  ने  रोकना  चाहा  पर  देर  हो  गयी  गाडी  अमृतसर  स्टेशन  छोड़  चुकी  थी  ।  और  सुदेश  के  शब्द  "आखिरी  ट्रिप" उसके  कानों  में  गूँज  रहे  थे  ।  ।  ।  ।


समाप्त