ग़ज़ल
जीते तो है, पर ज़िन्दगी जीने की चाह नहीं है
सांस भर लेना तू बस रस्म अदायगी सी है
वे कौन लोग है जिनके कदमो में बिछ जाती हैं तू ज़िन्दगी
मुझे अपनी खार देख, उनकी बहार से जलन सी है
वक़्त ने गमो के साथ जीना बड़ी जतन से सिखाया हैं
आज घर मैं ख़ुशी के मेहमान देख घुटन सी हैं
न गुलाल चढ़ता हैं न पिचकारी भिगोती है
दर्द के रंगों में रंगी मेरी होली बेरंग सी है
गर्मी सर्दी चार छह महीने रहती हैं
मौसम से भी गए गुज़रे लोग पल में बदल जाते हैं
गैरत तो कपडे सी हो गयी हैं
खिड़की वही रहती हैं परदे बदल जाते हैं
जो कल उसका दुश्मन आज मेरा दोस्त हैं
अगर सुर मतलब के हो तो कही भी बदल जाते है
ढाई अक्षर प्रेम का ऐसा पढ़ा उसने
राहें नहीं बदली, बस हमसफ़र बदल जातें हैं
खुश हैं मुझे वो उदास करके, मसलन मसले सुलझ भी जाते
उसे लगा क्या फायदा हैं बात करके
वह और लोग होंगे जिन्हे मांगने से मिल जाता हैं
हम तो और खाली हों गएँ उससे फरियाद करके
वो सिकंदर भी तो बिना कुछ लिए ही गया था
फिर तुझे क्या मिल गया मुझे बर्बाद करके
मैं मजबूर, बेक़सूर और तुझसे दूर
सकूँ मिल गया तुझे मेरे ऐसे हालात करके
शायद मेरा मरा मंन ज़िंदा हो जाएँ
खुदा देकर उसे सजा देख ले मेरे साथ इन्साफ करके !
काश!
काश सुनाने के लिए कोई कहानी होती
एक राजा होता उसकी एक रानी होती
शब-ए-फ़िराक हमने भी गवाई होती
दिल-ए-मुंतजर होता हमारा भी
हमे भी थोड़ी परेशानी होती
गलती हमारी भी हैं सब छुपा लेते हैं
आदतें हैं होठो की वो मुस्कुरा लेते हैं
फिर तुम्हे क्यों इतनी हैरानी होती
ग़ज़ल
भिखारी भी रोटी को हाथ लगाते हुए डरता हैं
इन धमाकों ने इंसानियत मिटा दी
रब्ब हर जगह नहीं रह सकता
इसीलियें उसने माँ बना दी
मौसम का हाल अख़बार में भी लिखा था
हमे लगा हमारा
हाल देखकर बादल रो पड़े
ख़ामोशी पसर के
बैठी थी हमारे
बीच
बात शुरू करने
के लिए वो
भी रो पड़ा
हम भी रो
पड़े
जीते जी तो
कभी यह राज़
न खुला
बदनाम तब हुए
जब वो हमारी
मईयत पर रो
पड़े
मुझे तेरे बनाये
बुतो से
नहीं तुझसे
आस हैं
ऐ खुदा मेरी
बेबसी पर कभी
तू भी रो
पड़ेकमजोर तो मैं नहीं थी, अब बहादुर भी न रही
मेरी शादी, शादी, शादी न रही
घोड़ी पर एक गधा आया था
वह गधा कब शेर बन गया, और मेरी आज़ादी न रही
सोचा था रज़िया बनेगे , क्या पता था भजिया तलेगे
उसने शासक बनकर राज़ किया, यहाँ मैं शहज़ादी ही न रही
सिरदर्द, करमजर्फ़, काठ का उल्लू या लल्लू
सब नज़र आ गया अब उसकी कोई भी तारीफ़ आदि, इत्यादि न रही
टूटा पत्ता ................
एक तेज हवा का झोंका आया
और शाख से पत्ता टूट गया
बरसो का साथ पल में छूट गया
कितना हरा और खुशहाल था
प्रक्रति के स्नेह से सरोबार था
कितनी ऋतुएँ बदली फिर भी भी वह विचलित न हुआ
आज कौन से ववक़्त की मार उसने झेली हैं
उदास हैं हर डाल टहनी भी कितनी अकेली हैं
अपना और उस टूटे हुए पत्ते का अस्तित्व एक सा पाती हूँ
समझ सकती हूँ वो दर्द तभी तो उस पेड़ से अक्सर लिपट जाती हूँ
ग़ज़ल
जो गुज़र गया है वह बदल नहीं सकते
मेरी आँख के आंसू तेरी आंखो से निकल नहीं सकते
मेरे पतले होने का राज़ सुन ऐ दोस्त
जो 'गम' रोज़ खाते हैं उसे खा तो लेते हैं पर उगल नहीं सकते
बहुत तेज़ चल रही हैं तू ज़िन्दगी
पंख हमारे हैं नहीं और होंसलो की उड़ान हम भर नहीं सकते
कागज़ के नोटों के पीछे भागने के सिवा कोई चारा नहीं
कुछ ज़ज़्बातों और आरज़ू के भरोसे उसे खरीद नहीं सकते
एहसास-कम-ऐ-तरी किसी को न बक्श मेरे रब
हमे मौत भी नहीं आती और हम ज़ी भी नहीं सकते
अब न आएँगी बहार
न कोयल कूकती हैं न चिड़िया चहकती हैं
फूलो पर भी न तितली बैठती हैं
लता और आम की कोपल भी उदास हैं
शायद इस बगिया को अब न कोई आस हैं
ऐसी पतझड़ आई कि लूट ले गयी पूरा संसार
मैंने कहते सुना हैं पेड़ की डाल को
अब न आएँगी बहार
मौसम की मार कहा इतनी झेली जाएं
मासूम कालिया सोच में पड़े अब कैसे मुस्काएं
पत्तों मैं भी रंग नहीं हैं
प्रकर्ति ने ऐसा वैधव्य धारण किया कि
छूट गया सब श्रृंगार
अब न आएँगी बहार
गुल न बुलबल रहे
प्रेम के गीत कौन सुनायें
चकोर न देखे चाँद को
चाँद सोचे प्रीतम रूठा क्यों जाएँ ?
सिर्फ पहुचे कानो तक कौवे के कर्कश सुर और ताल
अब न आएँगी बहार
पहले जैसा............
आईना मुझसे मेरी … गीत गुनगुनाते हुए
गुज़रे आईने के करीब से
रोककर पूछा उसने
इतने दिनों मिले नहीं तुम अपने मीत से
मैंने पूछा गीत सुन रहे थे क्या?
उसने कहा हम चेहरा बांच रहे थे
गीत सुना तो पूछने की हिम्मत आ गयी
कि आँखों को काले बादलो ने क्यों ढक लिया
चेहरे का रंग गुलाल सा लाल था
मुस्कान का मौसम रहा सदाबहार था
अब इस लगातार होती बारिशों ने
सब कुछ बहा दिया हैं
रोज़ मुझसे बचती फिरती हूँ
इसीलिए मैंने आज यह सवाल किया हैं
यह भी वक़्त का तक़ाज़ा हैं
पहले जहाँ खुश थी आज वहाँ गम ज्यादा हैं
आज बारिशें हैं फिर भी रह गया मन प्यासा
अब जीवन में कुछ नहीं रहा पहले जैसा............. ?
ग़ज़ल
चाँद पर जाना और चाँद को पाना दो अलग-अलग बातें हैं
बेवकूफ हैं आदमी जो दिल के खलल को दिमाग के साथ जोड़ देता हैं
रोज़ नए-नए रिश्ते क्यों देखता हैं मेरा बाबा
यह क्या बात हुई कि पिंजरा तो खोला अब पंख तोड़ देता हैं
सुना था जोड़िया आसमानो में बनती हैं
मगर पंड़ित जी तो कहते हैं सितारे भी खफा हैं और मंगल भी रोक देता हैं
लोग मकानो से फ्लैटों में आ गए
मजबूरी या ज़रूरत कि बॉलकनी के लिए छत छोड़ देता हैं
डोली या जनाज़े मे से मैंने जनाज़े को चुना
खुदा का घर बुतो के घर से ज्यादा सकूँ देता हैं
खीच के लेकर जा रहा हैं वक़्त मुझे
इक मेरा माज़ी हैं कि यादो की गाँठ बार-बार खोल देता हैं
कब जान-पहचान थी.................
जून की गर्मी में यह
बादल क्यों सिसकने लगे
आज तो मैंने
न तेरा ज़िक्र किया न कोई बात की
कमज़ोर और पतले होने
में क्या फर्क हैं
क्या समझाएं हम यह
तो बात हैं बदलते हालात की
रिश्ता टूटने की वजह सिर्फ इतनी थी
कि वो दहेज़ में लायी
सिर्फ संस्कार थी
खाली करने आया था खाली
कर गया
हंसी भी ले गया और उदासी भी उसकी मुझ पर उधार थीतो ज़िंदगी हमारी कब तुझसे जान-पहचान थी
ग़ज़ल
कभी बारिशें भी अज़ीज़ थी हमे
अपनी आँखों का पानी देख यह मौसम अच्छा नहीं लगता
वक़्त भी गुज़र गया मौसम भी बदल गया
फिर भी कुछ हैं जो कभी नहीं भूलता
ज़िन्दगी हाथ पकड़कर ले गयी हमे
उसका कहना हैं यादों में कोई इतना नहीं भटकता
मुनासिब था क्या हमसे दूर जाना
पूछकर जाते तो कोई नहीं रोकता
दुखी पति की पुकार
आज फिर बेसकूंनी और गम ऐ दिल हैं
बहुत ज्यादा आ गया बिजली का बिल हैं
तुमसे शादी में कुछ ऐसे निभा रहा हूँ
बारिशों के मौसम में भी गीजर चला रहा हूँ
तुम्हारे मा-बाप ने तुम्हे ऐसे पाला हैं
पिज़्ज़ा हट का डिलीवरी बॉय बन गया मेरा साला हैं
जब तुम मुझे व्हट्सूप पर पति-पत्नी पर बने लतीफे सुनाती हूँ
ऐसा लगे मेरा ही मज़ाक उड़ाती हूँ
तुम मंदाकनी और उर्वशी का अवतार हूँ
तुम्हारे साथ चलकर यह एहसास होता हैं
हूर तुम जैसी होती हैं और लंगूर मुझ जैसा होता हैं
मैके चले जाना का दस्तूर पुराना हैं
तुम रूठी रहो मुझे तू सिर्फ मनाना हैं
अभी कपडे धोये हैं फिर उन्हें सुखाना हैं
घर का सारा काम करके ऑफिस भी जाना हैं
उस घडी को कोस रहे हैं जब घोड़ी चढ़े थे
अच्छे खासे कुंवारे थे
मत मार्री गयी जो पति बने थे.....
ग़ज़ल
आँखों पर चश्मा चेहरे पर मुस्कराहट
मैंने अपनी उदासी को भी हिजाब पहना दिया
मोहब्बत में लेने-देने की रस्मे अदाएंगी इस तरह अदा कि
महंगा तोहफा माँगा तो उसने दो किलो प्याज़ थमा दिया
किसी को भी माँ-बापू बनाकर सिर झुका लेते हों
फिर क्या हुआ जो किसी ने काफिर बुला दिया
तल्ख़िया, कदूरत, तगाफुल सब सिखा दिया
देख तूने मुझे अपने जैसा बना दिया
बेवफाई की सजा होती हैं वह समझी नहीं जाती
तभी तो तुझे बाहर का रास्ता दिखा दिया
तेरे जाने के बाद........
सांस लेने और जीने में फर्क समझ आया
गुल ही गुल बिखरे पड़े थे
यह खार से भरा रेगिस्तान तो अब नज़र आया
अब चाँद को नहीं
उसकी दूरियों को ताकते हैं
मुस्तबिल में नहीं माज़ी में झाँकते हैं
ज़ंजीर सी जकड़ी याद हैं
पिंजरा भी खुला हैं
सियाद भी नहीं हैं
फिर भी बुलबुल क़ैद हैं
गिरे एक बार और संभालते रोज़ हैं
बोलते हुए अलफ़ाज़ भी खामोश हैं
यह सब हुआ हैं
यह सब किया हैं
तेरे जाने के बाद........
ग़ज़ल
तर्क -ए -ताल्लुकात न करते तो क्या करते
माफ़ी तो मांग ली पर उसे गलती का एहसास नहीं होता
प्रेम की पराकाष्ठा ही तो यह
दिग्विजय की शादी के बाद कोई बूढ़ा निराश नहीं होता
बेटिया बोझ नहीं होती बना दी जाती हैं
एहसास-कम-तर तो घर का कोई सामान भी नहीं होता
हम जानते है गरुर हम पर बहुत सजता हैं
पर नीचे बैठने से गिरने का डर नहीं होता
कहाँ तक अपनी आँखों के जुगनू छुपाओ मैं
दिन तो काट जाता हैं पर रात में छुपाना आसां नहीं होता
सोचती हूँ………
सोचती हूँ कि सच बोलो
सुना हैं झूठ के पैर नहीं होते
शायद तभी उसे चलने के लिए
सौ झूठों का सहारा लेना पड़ता हैं
फिर मंन का क्या करो
यह भी तो भारी हों जाता हैं
और आईने से भी मुँह छुपाना पड़ता हैं
वह थोड़ा ग़मज़दा होगा
हैरान या परेशान होगा
शुरू में सब मुश्किल होगा
बाद में आसान होगा
झूठी उम्मीदों से कई गुणा
अच्छी एक तसल्ली हैं
जिससे दिल बेशक न बहले
पर वह दिल से की गयी नेकदिली हैं
होंसला तो करना होगा
अब सच बोलो
सोचती हूँ.………।
मैंने एक दोस्त को कहा
"मैं रोज़ सुबह उठती हूँ
बाबा रामदेव के अनुसार योग भी करती
ऑफिस में सात-आठ घंटे बिताकर लौटना
फिर एक चाय की प्याली को
हाथ में पकडे हुए डूबते सूरज को देखना
दोस्तों से भी बतियाते हैं
किताब पढ़ने का शौक भी फरमाते हैं
रात्रि का भोजन कर फिर सोने जाते हैं
सब तो करती हूँ और क्या करो?
पता नहीं क्यों उसका चेहरा गंभीर था
मुझे लगा शायद मेरा ही सवाल अजीब था
उसने कहा बस एक काम और किया करो
खुश भी रहा करो............................................................!
मेरे महबूब
मेरे महबूब कहीं ओर् मिला कर मुझसे ………………
जहाँ मोह-मायो के बंधन नहीं
कटु स्वरों की सरगम नहीं
गोली की बौछार न हों
बुज़र्गो का नाटकीय व्यवहार न हों
समय लाल निशान में क़ैद न रहे
मंन विचलित और बेचैन न रहे
नन्हे जंगली कोए परेशान न करे
कोई नया परचा या चर्चा हैरान न करे
सुरक्षा संबंधी कर न हूँ
ऐसे परिंदे न बने जिनके पर न हूँ
मेरे महबूब कहीं ओर् मिला कर मुझसे ……………
छोटी सी आशा
सीने में हैँ दिल यह छोटा सा
दिल में होती छोटी सी आशा
चंदा और सितारे इसमें
धरती के नज़ारे इसमें
गहरा हैं यह सागर के जैसा
छोटी सी आशा.……।
भोला-भाला दिल ही तो हैं
किसी से यह प्यार करता किसी पे यह वार करता
मीठे-मीठे ख्वाबों का प्यासा दिल ही तो हैं
बगिया में नहीं खिलते हैं बिन माली के फूल
कैसे टूटते हैं दिल के रिश्ते होती हैं कौन सी भूल
जितना यह पांस चाहे उतनी ही लगती मंज़िल दूर
बीते न दुःख की रीति
कौन सुने इसकी आप बीती
खुशियों ने मुँह फेरा हैं
मुश्किलो ने यूं घेरा हैं
इतना सब सह जाता हैं
कुछ नहीं कह पाता हैं
जाने यह सब्र हैं कैसा
छोटी सी आशा.……।
अच्छा हुआ.......
जो सर्दियों में बरसात हुई
मंन था कि भरा पड़ा था
एक ख्वाब हक़ीक़त से डरा पड़ा था
बेसकूनी और बेहिस रात गुजारी हैं
सुना हैं इस बार तुम्हारी भी
चाँद -तारो से बात हुई
लम्हे भी गुज़र रहे हैं
और साल भी गुज़र जाएंगे
कभी-कभी लगता हैं
कि हम खुद में ही सिमट जायेंगे
तभी टकरा गए उस मोड़ पर
गम -ए -लिबास तुझसे
लिपट गया हमे छोड़ कर
फिर तो बेहिसाब आंसूओं
से भरी मुलाकात हुई
बरसात हुई
अच्छा हुआ.......
लगता था
लगता था हमी पर क़यामत टूटी हैं
बच्चे तो वह भी बिलख रहे हैं
जिनकी गुड़िया भी पुरानी हैं
और उनकी नानी भी उनसे रूठी हैं
वेडिंग सीजन
पीपल भी सूना पड़ा हैं झूले भी ढीले हों गए
नहीं चहचहाती चिड़ियाँ सुना हैं सबके हाथ पीले हों गए
सरसो भी सयानी होंकर अब शरमा रही हैं
इस बेसाखी उसकी भी बारात आ रही हैं
मेथी ने कहा मटर से होली से पहले तुम भी कर दो इज़हार
मटर चाहे लाली गज़ारिया को उसने तो किया इंकार
बाबा पालक मूली के प्रेम विवाह से है हैरान
बेटी छरहरी दामाद चुकंदर हैं पहलवान
गोभी भी खुश हैं बिना डाइटिंग के आलू के साथ हों गयी सेटिंग
इस साल के अंत तक हों जाएँगी उसकी भी वेडिंग
प्याज़ ने कहा चाचा बाजरे से जाते-जाते
मेरे भी भिन्डी के सग फेरे करा दो
बाजरा बोला भिन्डी कहती हैं-
मुझे तो प्याज़ से दोस्ती वाला प्यार हैं
सच तो यह मुझे अपने प्रिंस चार्मिंग का इंतज़ार हैं..................
दोहे
एक हिंदी अध्यापक की हाय ! यह कैसी मजबूरी हैं
अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ा रहा हिंदी कितनी गैर ज़रूरी हैं
जिसका धरम , कर्म यहाँ तक की व्यवहार भी हिंदी हैं
बड़ा बेरंग हैं वह अध्यापक जिसका श्रृंगार भी हिंदी हैं
अंग्रेजी टीचर को दे ऐसी शानदार पगार कि छह महीने में ले ले एक नयी कार
हिंदी को दे गिन-गिन नोट कि खाये वो रोटी संग अचार
मैंने अंग्रेजी को उस हिसाब से सीखा हैं
मेहमाननवाज़ी करने का मेरा अपना ही सलीका हैं
कालिदास भेजे मेघदूत पूछे संस्कृत का क्या हैं हाल
माँ को नहीं पूछते यह बच्चे नानी तो और भी बेहाल
माँ हैं वह मेरी उससे प्यार की डोर नहीं टूटती
कितनी भी अंग्रेजी सीख लो मेरी हिंदी नहीं छूटती
मुझे तो दोनों बहनो जैसी लगती है
हिंदी माँ तो उर्दू मौसी लगती हैं
यह कैसे हुनर हैं जो घर पर खाली बैठे हैं
और भ्रष्ट्राचार के ये सिफारशी बीज कुर्सी पर पककर बैठे हैं
एक सच क्या बोला मुझे तो घर बैठा दिया
अब क्यों प्रजातंत्र के निडर अफसर डरकर बैठे हैं
कितनी नेकियाँ करकर दरिया में डाली हैं
इन्हे देखो! समुन्दर पीकर भी यह प्यासे बैठे हैं
तुझे हाँ न करने की यही वजह बहुत हैं
कितने लंगूर हैं जो हूर गवां बैठे हैं
कोई कहे राम, अल्लाह, ईसा, बुद्ध, जैन या गुरू गोबिंद
भक्ति का एक और भी रंग हैं सब मिलकर बोलो जय हिन्द
कभी जहां होती थी होली, दिवाली, ईद वह बस्ती पड़ी हैं शमशान
मैं इसीलिए बच गयी क्योंकि मैं नहीं बनी हिन्दू, ईसाई, सिख या मुसलमान
हे शनिदेव! इस बार तुझ पर भी सडिसत्ती चढ़ी हैं
चबूतरे से नीछे उतरकर तो देख पूजा के लिए औरतें बाहर खड़ी हैं
वो एक ही तो हैं सब उसी से तो मांग रहे हों
जो प्रेम से बंध जाएगा उसे परम्परा से बांध रहे हों
कबीरा खड़ा बाजार में ना ढूंढे गुरु न मांगे ज्ञान
उसे तो सब जाति और धर्मी मिले वो ढूंढ रहा था इंसान
व्रत , नमाज़ अरदासें करकर भी फिरता हैं परेशान
एक दूसरी को बुरा कहे बस अपने मन से हैं अंजान
ग़ज़ल
आँगन में चिड़िया चहचहाने आ गई
लगा बिटिया अब्बा-अब्बा बुलाने आ गई
*
चिड़िया चू-चू, कोयल कू-कू, गिलहरी कूद रही हैं
मेरी न सही बाग की बेटियाँ तो झूले झूल रही हैं
*
बाबा बेटो को ज़मीन या सारी जागीर दे दो
बेटी को तो बस किताबें और तालीम दे दो
*
जहां बेटे जन्मे उनके परिवार पूरे हो गए
बूढ़े की तीन बेटियां थी उसके ख़्वाब पूरे हो गए
*
बाप ऐबी था और माँ कमज़ोर बन गई
उस घर की बेटियाँ बेटे बन गई
*
माँ-बाप के गुज़रते ही हिस्सा मांगने आई हैं
बेटे मकान लेने आए बेटियाँ पेटियां लेने आई हैं
फूल सूख जाए तो तितलियों को उलहाने न दो
हादसे के बाद बेटियों को मुरझाने न दो
*
कोई कुत्ता काट जाए तो भी घर से निकलने दो
सावित्री तो हैं बेटी इसे लक्ष्मीबाई भी बनने दो
*
जिस समाज में अस्मिता एक लिबास हैं
वहां की बेटी कल भी थी और आज भी उदास हैं
*
इस देश की बेटी लड़ाकू विमान उड़ाएगी
ज़मीं संभाली हैं अब क्षितिज भी बचाएंगी
लगा बिटिया अब्बा-अब्बा बुलाने आ गई
*
चिड़िया चू-चू, कोयल कू-कू, गिलहरी कूद रही हैं
मेरी न सही बाग की बेटियाँ तो झूले झूल रही हैं
*
बाबा बेटो को ज़मीन या सारी जागीर दे दो
बेटी को तो बस किताबें और तालीम दे दो
*
जहां बेटे जन्मे उनके परिवार पूरे हो गए
बूढ़े की तीन बेटियां थी उसके ख़्वाब पूरे हो गए
*
बाप ऐबी था और माँ कमज़ोर बन गई
उस घर की बेटियाँ बेटे बन गई
*
माँ-बाप के गुज़रते ही हिस्सा मांगने आई हैं
बेटे मकान लेने आए बेटियाँ पेटियां लेने आई हैं
फूल सूख जाए तो तितलियों को उलहाने न दो
हादसे के बाद बेटियों को मुरझाने न दो
*
कोई कुत्ता काट जाए तो भी घर से निकलने दो
सावित्री तो हैं बेटी इसे लक्ष्मीबाई भी बनने दो
*
जिस समाज में अस्मिता एक लिबास हैं
वहां की बेटी कल भी थी और आज भी उदास हैं
*
इस देश की बेटी लड़ाकू विमान उड़ाएगी
ज़मीं संभाली हैं अब क्षितिज भी बचाएंगी
आज रहने दे...............................
ऐ साकी न डाल पैमाने में शराब
आज रहने दे
डॉक्टर ने कहा कि लीवर हो गया हैं ख़राब
आज रहने दे
पता ही नहीं चला कि कब बहने बड़ी हों गयी
उनकी शादी की उम्र हों गयी
बाप तो पिछले साल चल बसा था
अब तो बूढी लाठी पर भी दीमक आ गयी हैं
तूने मुझे निगला ठीक
पर शराब तू तो मेरा घर खा गयी हैं
रोयेंगी माँ बेहिसाब आज रहने दे
बिन पिए मदहोश होने का दिन आया हैं
जिसके लिए दिल मुंतज़िर रहा
हम उसकी गली के चक्कर लगाते रहे
वह तग़ाफ़ुल करके इतराते रहे
उठेगा उस चेहरे से हिज़ाब आज रहने दे
ऐसा नहीं कि इस मरने से डर गया मैं
क्यों इस जाम को लेने से पीछे हट गया मैं
जिसकी न कदर करी न उसे कभी मोहब्बत करी
उस ज़िन्दगी से होनी हैं मुलाकात आज रहने दे
ऐ साकी न डाल पैमाने में शराब आज रहने दे
आज रहने दे
डॉक्टर ने कहा कि लीवर हो गया हैं ख़राब
आज रहने दे
पता ही नहीं चला कि कब बहने बड़ी हों गयी
उनकी शादी की उम्र हों गयी
बाप तो पिछले साल चल बसा था
अब तो बूढी लाठी पर भी दीमक आ गयी हैं
तूने मुझे निगला ठीक
पर शराब तू तो मेरा घर खा गयी हैं
रोयेंगी माँ बेहिसाब आज रहने दे
बिन पिए मदहोश होने का दिन आया हैं
जिसके लिए दिल मुंतज़िर रहा
हम उसकी गली के चक्कर लगाते रहे
वह तग़ाफ़ुल करके इतराते रहे
उठेगा उस चेहरे से हिज़ाब आज रहने दे
ऐसा नहीं कि इस मरने से डर गया मैं
क्यों इस जाम को लेने से पीछे हट गया मैं
जिसकी न कदर करी न उसे कभी मोहब्बत करी
उस ज़िन्दगी से होनी हैं मुलाकात आज रहने दे
ऐ साकी न डाल पैमाने में शराब आज रहने दे
दिल का हुजरा
दिल का हुजरासाफ़ कर जाना के आने के लिए
ध्यान न गैरो का उठा उसके बिठाने के लिए
चश्मे दिल से देख यहाँ जो जो तमाशे हों रहे
दिलसिता क्या क्या हैं तेरे दिल सताने के लिए
एक दिल और लाखों तम्मना उस पर और ज्यादा हविस
फिर ठिकाना कहाँ हैं उसके टिकाने के लिए
नकली मंदिर मस्जिदो में जाय सद अफ़सोस हैं
कुदरती मस्जिद का साकिन दुःख उठाने के लिए
क्यों भटकता फिर रहा ए-तलाशे यार में
रास्ता शाहरग में हैं दिलबर पै जाने के लिए
दिल का हुजरा साफ़ कर जाना के आने के लिए
जन्मदिन विशेष
सिर्फ अलफ़ाज़ नहीं जिन्हे स्याही में डूबोकर कागज़ को भिगोया हैं
ये दिल के वो ज़ज्बात हैं जिन्हे शब्दों में मैंने पिरोया हैं
मैं एक गरीब कवि हूँ
कलम का लिखा खाता हूँ
जहां इनका कोई मोल नहीं
वहां सच बोल आता हूँ
मेरी साफगोई मुझें अमीर होने नहीं देती
ज़रूरत भर बचती हैं
शौक पूरे नहीं होने देती
ऐ-दोस्त हम धर्मो से नहीं मोहब्बतो से नज़दीक हैं
नानक मेरे साथ हैं अब अल्लाह भी मेरे करीब हैं
मेरे गीत, नगमे, कविताएँ, कहानी
यही मेरी जायजाद हैं जो बेशकीमती और अज़ीज़ हैं
तेरे जन्मदिन पर दौलत सारी की सारी दे दू
तू कहे तो तुझे अपनी शायरी दे दू................
ग़ज़ल
सजदे में हो सिर और ख्याल रहे दुनिया का "साद"
तेरी इबादत से तो मजनू की मोहब्बत अच्छी.....
तेरी नियति नहीं हैं परिंदो जैसी "साद "
जो आसमा के लिए घर छोड़ देते हैं
कैसे गुज़रेगी तेरी ज़िंदगी "साद"
जिसके साथ रहना हैं उससे तो मोहब्बत ही नहीं हैं
गर्मी मैं आग उगलता सूरज सर्दी मैं मीठी सी धूप
वक़्त के तक़ाज़ों से उलझा नहीं जाता
बारिश की बूंदे क्या गिरी खिड़कियाँ बंद होने लगी
और फिर कहते हैं सावन क्यों नहीं आता
ज़िन्दगी मुश्किल, बेदर्द और बेहिस हैं "साद"
पर जिसके साथ ही रहना हैं उससे रूठा नहीं जाता
तो क्या हुआ वो यू मुँह फेरकर बैठा हैं "साद"
जब वक़्त बदलेगा खुद ही बात कर लेगा
धरती के सब्र से कुछ सीख ले "साद"
तपिश सहने का हौसला हो तो बारिशें होती ही होती हैं
उस शख्स से मोहब्बत भी हों जाएंगी "साद "
बस तुझे उसकी आदत होनी चाहिए
मोहब्बत भी तेरी दुआ जैसी है "साद "
जो फर्श से अर्श तक नहीं जाती
ऐसे हालात आए की अपनी हालत पर तरस आया
आया तो आया किसी बेकस पर ऐसा वक़्त क्यों आया
तेरे बनाए बन्दे तुझसे ही नहीं डरते-ए-खुदा
पत्थर गिराए तो क्या जहां तू रहता हैं वो दिल भी बेदर्दी से ढाया
वो यू मेरे ज़ख्मो को कुरेद देता हैं
जैसे जलते हुए चिरगों को कोई हवा देता हैं
दिल की बात दिल में ही रख "साद"
होठों को बताएगा तो मुस्कुराना भूल जाएंगे
टुकड़ा-टुकड़ा चाँद का दिया और मिटटी के घरौंदे रौंद देते हैं
कभी-कभी माँ-बाप भी बच्चों के दिल तोड़ देते हैं
कभी-कभी माँ-बाप भी बच्चों के दिल तोड़ देते हैं
जिन चिरागो ने रोशन करना था उन्होंने घर जला दिया
चल मोमबत्ती इन बूढ़ों को जीने की नयी लौ देते है
चल मोमबत्ती इन बूढ़ों को जीने की नयी लौ देते है
जो आसमा के लिए घर छोड़ देते हैं
कैसे गुज़रेगी तेरी ज़िंदगी "साद"
जिसके साथ रहना हैं उससे तो मोहब्बत ही नहीं हैं
गर्मी मैं आग उगलता सूरज सर्दी मैं मीठी सी धूप
वक़्त के तक़ाज़ों से उलझा नहीं जाता
बारिश की बूंदे क्या गिरी खिड़कियाँ बंद होने लगी
और फिर कहते हैं सावन क्यों नहीं आता
ज़िन्दगी मुश्किल, बेदर्द और बेहिस हैं "साद"
पर जिसके साथ ही रहना हैं उससे रूठा नहीं जाता
तो क्या हुआ वो यू मुँह फेरकर बैठा हैं "साद"
जब वक़्त बदलेगा खुद ही बात कर लेगा
धरती के सब्र से कुछ सीख ले "साद"
तपिश सहने का हौसला हो तो बारिशें होती ही होती हैं
उस शख्स से मोहब्बत भी हों जाएंगी "साद "
बस तुझे उसकी आदत होनी चाहिए
मोहब्बत भी तेरी दुआ जैसी है "साद "
जो फर्श से अर्श तक नहीं जाती
ऐसे हालात आए की अपनी हालत पर तरस आया
आया तो आया किसी बेकस पर ऐसा वक़्त क्यों आया
तेरे बनाए बन्दे तुझसे ही नहीं डरते-ए-खुदा
पत्थर गिराए तो क्या जहां तू रहता हैं वो दिल भी बेदर्दी से ढाया
वो यू मेरे ज़ख्मो को कुरेद देता हैं
जैसे जलते हुए चिरगों को कोई हवा देता हैं
उन्हें उस रब को मुंह दिखाना नहीं आता
पानी की तरह साफ है किरदार मेरा
हमे दिखावे का जुमला मिलाना नहीं आता
उन्हें क्या लगता है वो मेरी तकदीर छीन कर ले गए
वक्त को भी बेवक्त मुस्कराना नहीं आता
उसे माफ भी कर देंगे "साद"
बस हमें बाते भुलाना भी नहीं आता
बहुत अपना बनकर देख लिया
अब गैर बनकर देख लेते हैं
उन्हें दरिया बनने का शौक हैं तो बने रहे
हम खुद को एक कतरे में समेट लेते हैं
तल्खिया, बेरूखी, अदावतें तो तेरी आदतें हैं
हम आता नहीं हैं पर यह मिज़ाज़ तुझसे सीख लेते हैं
उसने भी कई दफा डुबोया हैं मुझे "साद"
अब उसे भी हम साहिल पर परख लेते हैं
धीरे धीरे हम सम्भलने लगे हैं
आदतों और मुहब्बतो से बचने लगे हैं
दिखाई देने लगा हैं तसुवर उनका
अब हम भी दूरिया रखने लगे हैं
जिन ख्वाबो की ताबीर नहीं हैं
उन्हें अलविदा कहना ही सही लगा
जागने से अच्छा तो सोना ही सही लगा
नाकाबिले एहसास से दिल गमज़दा होता हैं
जुदा होने दो अगर जुदा होता हैं
हमे भूला अब हम भी उसे भूलने लगे हैं
धीरे धीरे हम सम्भलने लगे हैं
जब वो हसती हैं........
तो मैं यह नहीं कहता कि फूल बरसते हैं
चारो तरफ दिए जल उठते हैं
उससे मोहब्बत हो जाती हैं या
ज़िन्दगी से कोई अज़ाब कम हो जाती हैं
गुफ्तगू करने के लिए भी दिल
बेक़रार नहीं होता
उसे देखकर दिल बेलग़ाम भी नहीं होता
एक आम जान=पहचान ही हैं
परिचित हैं मेरी इतनी अज़ीज़ नहीं हैं
मेरे ख्वाबो से ज़्यादा हसीन नहीं हैं
पर जब अपने बेहिसाब गमो को
सेमटकार आँखों की बदली को छुपाए
उसकी बरबस मुस्कान बरसती हैं
फिर वो सब कुछ भुलाकर जब हसती हैं
तो सचमुच अच्छी लगती हैं.......
अच्छी लगती हैं....... ....
फलक की खवाहिश करने वाले
चादँ के टुकड़े से गुजारा करे तो कैसे करे
इतना अंधेरा है उजाला करे तो कैसे करे
कुछ बुरी खबरो ने हौसला तोड़ दिया
अब अपना दिल तुम्हारा करे तो कैसे करे
अपने हिस्से की जमी तो प्यास ही रही
इन बारिशो की बूंद पर इतबार करे तो कैसे करे
रिहाई न सही तो न सही पर कैद तो हसीन कर दे
अब इस सजा का इसरार करे तो कैसे करे
मन पर कोई बोझ न आने पाए
मेरे अल्फाजो की कभी कोई कीमत न लगाए
उसे इख्यितयार तो है दिल से निकालने का
पर वो मुहब्बत की तसवीर है उसे कोई न जलाए
अपने सुकूं के लिए ही यह जुल्फे बाधी है
कम से कम ये तो हमें बेवजह न सताए
हमने कहा कि इस बार इंतज़ार नहीं उम्मीद करना
अब हम पर कोई बेवफ़ाई का इलजाम न लगाए
नाखुदा को दिल की बात भी कह देना "साद"
पहले वो किनारे पर कश्ती तो लगाए
ये ज़ालिम जमाना हमें जुदा कर देगा
हमारी मोहब्बत को फना कर देगा
दीवारो-दर में चुनवा दिए जाएंगे
यह किस्सा तो हर कूचा-गली बयां कर देगा
गरीब दीवाने की उलफत की आजमाइश क्यों लेते हो
वो कोई शंहशाह नहीं है जो मुझे ताजमहल कर देगा
इतनी कुरबतो का नतीजा ही तो दूरिया है "साद"
क्या पता था उसका यह फैसला इतना फासला कर देगा
अब इन जख्मों को देखकर सब्र नहीं आता
नसीहतें तो बहुत आती हैं पर कोई मरहम नहीं आता
एक आरज़ू हैं कि वो समेटे हमारे वज़ूद को
जिन लबों पर कभी हमारा नाम नहीं आता
ज़रूत ने ख़्वाहिशों से पता नहीं क्या ज़िरह की हैं
बहुत बुलाने पर भी अब वो ख़्वाब नहीं आता
कोई पूछता हैं तुम्हारे बारे में तो क्या ज़वाब दे
जब हमारे सवालों का ही कोई ज़वाब नहीं आता
इन लफ्ज़ो को जिताने के लिए खुद से हारना पड़ता हैं "साद"
क्या करे बिना लिखे तो आराम भी नहीं आता
उस मासूमियत की इन्तहा तो देखिये
डुबोने वाले से कहा हैं बचा ले मुझको
ऐसा नहीं हैं कि तेरे हो नहीं सकते
शर्त बस इतनी सी हैं इन गैरो की महफ़िल से लेजा मुझको
उसके हक़ में दुआ करो फ़िर उसका बुरा भी करो
इस ज़माने ने क्या अपने जैसा समझा हैं मुझको
उनके करीब रहकर इतनी मनमानी की हैं
अब दूर रहकर इतनी सज़ा ने दे मुझको
हमसे तो नहीं तोड़ा जाएगा वो दिल "साद "
इतने हिम्मत और हौसले तो कभी न दे ख़ुदा मुझको
हमने दिल के जख्म कभी दिखाए नहीं
तुम भी तो इतने करीब कभी आए नहीं
तुम भी तो इतने करीब कभी आए नहीं
बात नसीब की चल रही थी तो क्या कहते
कैसे कह देते कि तुम याद आये नहीं
कैसे कह देते कि तुम याद आये नहीं
दुनिया से जुदा कहकर खुद से जुदा कर दिया
अब सब सोचते हैं सनम को खुदा बनाए या नहीं
अब सब सोचते हैं सनम को खुदा बनाए या नहीं
ख़ाली-खाली सा हो गया हैं जिस्म मेरा
वो दिल भी नही रखे और लौटाए भी नही
वो दिल भी नही रखे और लौटाए भी नही
उसे किस तरह अपना बना सकते थे हम
जो आसमां के जी़नों पर बैठे रहे जमीं पर आए नही
जो आसमां के जी़नों पर बैठे रहे जमीं पर आए नही
कल सारी रात बरसता रहा यह पानी
गरजता रहा, तरसता रहा, सिसकता रहा यह पानी
दरख्तो ने चेताया, धरती ने भी समझाया
सबकी सुनी पर अपने मन की करता रहा यह पानी
कुछ लुट गया, टूट गया, छूट गया या कोई रूठ गया
मेरे ही सवालो से मुझे शरमसार करता रहा यह पानी
इस बार की बारिशो ने तो बीमार कर दिया है
अब जिस्म को और भी भिगोता रहा, गलाता रहा यह पानी
उसे याद न करें, भूल जाए हम
इन्ही कोशिशो को पानी पानी करता रहा यह पानी
आए थे तो कुछ देर ठहर गए होते
हम भी कुछ और दिन संभल गए होते
एक मुद्ददत के बाद मिला था कोई अपना सा
काश! यह बात तुम कभी समझ गए होते
बेहिसी, बेरुखी, बेदिली यह तो उनकी तबीयत है
पत्थर, पत्थर कैसे रहते अगर पिघल गए होते
उन्हें रोकने के काबिल तो हम कभी न थे
यू होता तो आसूं भी जंजीर बन गए होते
बच्चे सा तो दिल है तेरा 'साद'
बडे़-बडे़ लोग कैसे तेरा खयाल रख गए होते
दुनिया
ज़िन्दगी के उदास कोहरे को
हटाने के लिए सर्दी की धूप हो तुम
इस तन-मन को व्याधि से बचाने के लिए
एक स्वेटर एक पुलोवर हो तुम
जब अजीब सी कसक उठती है
दिल की धड़कन बेवक़्त ठिठुरती है
हरारत यादों की दे सकूँ
ख़ुद को बीते लम्हों से समेट सकूँ
इस तरह मेरा लिहाफ़ हो तुम
अनकहे अल्फाजों को
दोहराने का, मुस्कुराने का
फुरसत से जिसे थाम सको
वो तुलसी मिली गर्म चाय का प्याला हो तुम
ढलते सूरज की लाल सी लकीर
इस शीत ऋतु में प्रकृति के कलेवर को सुंदर बनाने का श्रृंगार हो तुम
किसी के लिए हो सकते हो तुम
उसका साथ, हर मौसम का एहसास
पर मेरे लिए तो पूरी दुनिया हो तुम
दुनिया हो तुम..........
आज मैंने फिर ज़ज़्बात भेजे
तुमने फिर अल्फ़ाज़ ही समझे
आज मैंने फिर ख्वाब भेजे
तुमने फिर ख्याल ही समझे
आज मैंने फिर जवाब भेजे
तुमने फिर सवाल ही समझे
आज मैंने फिर लाल गुलाब भेजे
तुमने फिर पैगाम ही समझे
आज मैंने फिर हाल-ए-दिल बीमार भेजे
तुमने फिर बदलते हालात ही समझे
दिल की बताने में उसको अपना बनाने में
बहुत देर कर दी मैंने
उसके साथ रहते थे तो खुश रहते थे
अपनी नई दुनिया बसाने में बहुत देर कर दी मैंने
यूं होता तो यह सब न होता
किस्मत को आज़माने में बहुत देर कर दी मैंने
न बताकर गया, न रोकने पर रुका कभी
जाते हुए आवाज़ लगाने में बहुत देर कर दी मैंने
दरद का रिश्ता भी नहीं हमारे दरमियां
खुद का दिल दुखाने में बहुत देर कर दी मैंने
बाज़ दफा दिल ने कहा कि कोई हसरत नहीं है
कोई जुस्तजू नहीं है कोई आरजू़ नहीं है
दिल मेरा है तो मेरी ही सुनेगा
वरना झूठ बोलने की इसे आदत नहीं है
जो परिन्दे गैर थे वो भी लौटकर आ गए है
वो एक अपना मिला है जिसे मुझसे मोहब्बत नहीं है
ये कैसी मय थी मेरा गम भी न पी सकी
एक मुझे छोड़कर कोई भी होश में नही है
उसकी बाहों में महफूज रहते थे हम
कभी पता ही नहीं था कि दुनिया बुरी है या नहीं है
गजल
जरूरी भी नहीं था कि वो वफा निभा पाते
बस मयस्सयर ही रह लेते आते-जाते
किससे लडू़, परेशान करो, मजे-मजे की शरारते करो
जाते-जाते बस इतना तो बता जाते
गुजरते लम्हो के साथ मत गुजरो
लौट आते तो वक्त को इस बार तो हरा जाते
ये हवाएँ जिस्म से ज्यादा दिल को सरद करती है
कम से कम उम्मीद की कोई शमा तो जला जाते
बहुत दूर तक साथ चला मगर खामोश रहा
आज चांद मेरे साथ रहा फिर भी उदास रहा
जरूरी नहीं कि साथ रहे तो सितारों से दोस्ती भी कर लें
उसका हाल भी मेरे जैसा ही रहा
बादलों का बस चलता तो चांद को निगल ही जाते
वो तो हवा बनकर खुदा साथ रहा
सूखे बालों और काँपती उँगलियों पर तंज करते है लोग
बार-बार तेरे बारे में पूछते है लोग
जिन्हें प्रेम में डूबना भी नहीं आता
वही राधा के श्याम और कबीर के राम की बात करते है लोग
हमारी सादगी तो उन्हें कभी समझ नहीं आती
जरा सा श्रृंगार कर ले तो नजरें भर-भर देखते है लोग
घर से गुजरते है तो नजरें झुका लेते है
ख्वाब तोड़ने के लिए इधर भी है चार लोग, उधर भी चार लोग
तुम्हारा दिल क्यों नहीं लगता उस बज्म में "साद"
हम सबसे जुदा है और वहां सब एक जैसे है लोग
आज मौसम अपनी मनमानी कर गया
शायद तरसा हुआ था तभी बरबस बरस गया
मन भर आया तो यहाँ-वहाँ सुबक गया
गमज़दा बादल मुझे बेवजह उदास कर गया
काश! हम ले डूबते खुदको भी उसको भी
यह तो बारिश का पानी था जो हद से गुजर गया
बीमार न कर दे सरदियों की बारिश 'साद'
ख्याल रखने वाला तो तुम्हें सावन में छोड़ गया
दिल के जख्म आँसूओ से धो नहीं सकते
मुश्किल यह है कि उसके सामने खुलकर रो नहीं सकते
हम ऐसे बादल है जो आसमां में घिर तो आते है
पर यू बेवजह, बेहिसाब, बरबस बरस नहीं सकते
मशरूफ है, बड़े-बडे़ लोग है अमीरी के शज़र से घिरे लोग है
हम मुफिलसो के तो कभी वो हो नहीं सकते
सच तो यह कि मुझे किसी भी खुशी का इंतजार नहीं
लकीरों से उलझे भी जाए पर तकदीरों को बदल नहीं सकते
आज इतना गैरों की तरह मिला हमसे
सोच रहे है दूर तो हो गया है पर वो इतना जुदा हो नहीं सकते
आज कौन सा नया सदमा लेकर बैठ गए "साद"
टुकड़ों-टुकड़ों में लिखने वाले इतना सारा दरद उड़ेल नहीं सकते
कोई खास नहीं आम बात करो
आज मन उदास है कोई और बात करो
बिखरे हुए वजूद को समेटकर रोज़ घर से निकल पड़ते है
थोड़े मुश्किल है हालात कोई और बात करो
माँ कहती है हर दिन एक से नहीं रहते
माँ तो माँ है कोई और बात करो
हम लाख बुरे सही वो तो अफ़जल है
शायद तभी न हो मुलाकात कोई और बात करो
शाम को कैसे बताए बेचैनी अपनी
वो याद आए बेहिसाब कोई और बात करो
जूता मेरा पैर कट के बोला
नंगे पैर लबु अपने यार नू
यार नू सोणे दिलदार नू
ओ त्वाडे तो बड़ा दूर है
तुसी मजबूर हो तो ओ बड़ा मगरूर है
तुसी मुंदरा पाई फिरदे हो
यू मजनूँ बने फिरदे हो
मंदिर-मस्जिद, मजार पर मत्थे टेके
लगदा है ता ओ भी रब दा कोई नूर है
जाकर समझाओ अपने प्यार नू
जूता मेरा पैर कट के बोला
नंगे पैर लबु अपने यार नू
हमें अहदे-ए-वफा निभाने के लिए घर से निकलना था
फरवरी का महीना था जरा संभलकर बरसना था
ऐ बारिशों तुमसे कोई मलाल नहीं करना
मुझे घर में कभी कैद नहीं करना
ये बादल आज खाली हाथ नहीं आए हैं
ओलो को देखकर लगा कि धरती के लिए सफेद गुलाब लाए हैं
मुहब्बतों के पैगाम यह भी देना सीख गई है
थोड़ा-थोड़ा बरसकर ये भी जीना सीख गई है
ये बारिशे इतनी अज़ीज़ है तुम्हें "साद"
ये धरती को भिगोती है तुम कागज को भिगोते हो
शहादत इसलिए नहीं हुई कि देशद्रोहियो के दिलों में पाकिस्तान था
शहादत हुई कि उनके दिलों में हिन्दुस्तान नहीं था
अगर इन देश के नेताओं के बेटे शहीद होने लगे
तब इन्हें पता चले कि राष्टीय शोक और माँ की कोख में क्या फर्क होता है
मेरे देश का कोई कुछ बुरा नहीं कर सकता
इस देश की मिट्टी को बारिश के पानी ने लहू से सींचा है
प्यार की हवाओं में लाल रंग नहीं मिलना चाहिए था
दिल अपना लहूलुहान हो जाता पर कोई सिन्दुर नहीं मिटना चाहिए था
आशिकों की मैयत हो या शहीदों का जनाजा़ 'साद'
सच्चा प्रेम कुरबानी मांँगता ही माँगता है
यूँ बेसबब सवाल न करना
किसी के गमों का हिसाब न करना
उन परिंदो का खूब ख्याल तो ठीक है
पर वो उड़ जाए तो उनका इंतजार मत करना
सरबराह न बन सको तहाफुज़ न दे सको
तो मुझसे कभी प्यार भी मत करना
बड़ी मुश्किल से बनाया है मैंने तुझे अपना
कम से कम तू तो जमाने की तरह बात मत करना
एक मैं हूँ जो भीगते हुए गुरुद्वारे पहुँच गई
एक तू है रब कि कभी अपने मेहर की बरसात न करना
कुछ और दिन लगाए रखो आइने में अपनी तस्वीर 'साद'
थोड़े दिन अपने लफ्जो से किसी को शरमसार मत करना
मुझे मेरे सब्र का सिला दे दें
मेरे गम को किसी दिल में जगह दे दें
मंदिर और मस्जिद तोड़ने वालों को बख्श दें
दिल ढाने वाले को सख्त से सख्त सजा दे दें
कभी तो अहसास करा लोगों को अपने होने का
जो खुदा बन बैठे है उन्हें खुदा-खुदा दें दे
एक परिंदा ऐसे उड़ा कि लौटकर नहीं आया
भटक गया तो उसे पता दे दें वरना मुझे अपनी रज़ा दे दें
जो तेरा है तुझे मिल ही जाएगा 'साद'
बस वक्त को थोड़ा और वक्त दे दें।।
मेरे साथ यह मुश्किल हो रही थी
मुझसे तेरी जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही थी
रोज़ दिल भर आता था मेरा
उस पर यह बेसबब बरसात हो रही थी
लोग लफ्जों को झरोखा समझ झाँकने लगे मेरे दिल में
जिंदगी तो बिल्कुल तमाशाई हो रही थी
सारे सितमगर बैठ गए थे अपनी बज्म में
मेरे सामने मेरे कत्ल की बात हो रही थी
हम हमेशा ही एहतियात रखे यह जरूरी तो नहीं
एक नादानी पर वो कहते है गलती करने की इंतहा हो रही थी
आजमाइशे, रंज-ओ-गम बा-मुश्किल हालात से गुज़रे
ये दिल ही जानता है कैसे-कैसे अजा़ब से गुजरे
अभी तो ज़ार-ज़ार रोकर दिल को सकूं दिया है
फिर बरसात आई तो फिर बरसात से गुजरे
सारी दुनिया को वो दिलासे दिए जा रहा था
मेरी रहगुज़र पर सोचे यहाँ से गुज़रे कि वहाँ से गुज़रे
उसके अल्फ़ाजो की तल्खियों ने दिल ही तोड़ दिया
कहने को हम इश्क़ के हर इंतिहा से गुज़रे
अपनी वफा पर इतना पशेमान न हो 'साद'
कभी तू मुकाम से गुज़रे कभी वो इस मुकाम से गुज़रे
मेरे अरमानों, मेरी लिखी ग़जलों को जला दिया
यह राख फिर भी राख है तेरा हाथ जला देंगी
क्यों उसकी बिगड़ी तबीयत पर अल्फाज़ ज़ाय़ा करो
मुत्मईन हूँ मेरी खामोशी भी उसका वजूद हिला देगी
कोई किनारा तो होगा जो सिर्फ अपना होगा
कोई उम्मीद की लहर तो कश्ती को पार पहुँचा देगी
अब तुझसे क्या करें करके गिला शिकवे या शिकायते
इश्क की एक चिंगारी है उसे भी बेसबब बरसात बुझा देगी
क्या हुआ जो उसने तुझे छोड़ दिया तेरी हाल पर 'साद'
ये अजमाईशे ही है जो तुझे जीना सिखा देगी
नज्म
मुझे मेरे ख्वाबों और ख्यालों की दुनिया मे रहने दो
मुझे अरश के सितारों के साथ बतियाने दो
कोई है जो मेरे रहते ताजमहल बना रहा है
अब ताजमहल बन चुका है
मुझे उसे चाँदनी रात में निहारने दो
गुल ही गुल बिखरे पड़े है मेरे चमन में
मुझे अब गुले-ए-गुलज़ार होने दो
दिल शाद है किसी की मजबूत पनाहों में
अब साथ मिला है तो खुलकर रोने दो
मत घसीटों हकीकतों के इम्तिहान में
नहीं लगता दिल अपने ही दयार में
जिंदगी में कुछ ऐसी ही आजमाइशे है
मौसम खराब है बादल है बरसाते है
शब अंधेरी है सहर का इंतजार नहीं होता
जो महबूब रफी़क से रकीब बन गया
उससे अब इश्क-ए-इजहार नहीं होता
इस खुदगरज दुनिया से दूरिया बनाने दो
मुझे मेरे ख्वाबों और ख्यालों की दुनिया मे रहने दो
नज़्म
आज मैंने तेरा दिया सामान देखा
एक बार नहीं बार-बार देखा
बार-बार हजार बार देखा
जिस तरह तूने मुझे
दुनिया की नजरों से बचाए रखा
यूँ मैंने तेरे सामान को सीने से लगाए रखा
छू-छूकर उन्हें अपने हाथों में समेटती रही
कितनी दफ़ा तेरा पता पूछती रही
पहरों अपने होंठों से लगाए रखा
कुछ याद कर बेइंतहा रोती रही
कभी कोई चूड़ी, झांझर भिगोती रही
तेरे दिए श्रृंगार से श्रृंगार किया मैंने
एक बार फिर आईने का दिल लगाए रखा
माज़ी को अब यू दर-किनार किया
तेरा दिया सामान तोड़ दिया
कल तूने मुझे छोड़ा था
आज मैंने तुझे छोड़ दिया.....
.मेरी बेबसी पर मुस्कुराए तन्हाई पर तरस खाए
ज़माना बना है तो ज़माना नज़र तो आए
हम थक चुके है तुझसे वफ़ा करते-करते
यह हर महीने की बारिश हमें न समझाए
जुदा हुआ है तो ठीक से जुदा हो जा
यूँ न हो कि हर मुलाक़ात पर तू पिघल जाए
शमा का क्या है उसे तो जलना ही है
फिर परवाना चाहे आए या न आए
वक्त गुज़रता भी नहीं है और गुज़रता भी जाता है 'साद'
हर लम्हा पकड़ भी न सकें और छोड़ा भी न जाए
क्यों अपना दिल मैला करो
गुरुद्वारे से क्यों मंदिर की तुलना करो
यहीं वो मंदिर है जिसके कपाट विट्ठल ने मोड़ दिए
इसी भक्त नामदेव के बारे में गुरुबाणी में पढ़ो
राधा का अर्थ 'आत्मा' और आत्मा का स्वामी परमात्मा
अब चाहे श्याम से प्रेम करो, नानक के राम से प्रेम करो
मुझे व्रत, पूजा या नियमों की भक्ति से क्या लेना-देना
मन वचन कर्म से किसी का दिल न दुखे कोई ऐसा व्रत धरो
मारने वाला प्रहलाद को मारे भाई मतिदास को चीरे
माँगने वाला कुरबानी माँगे तो सबसे पहले अपना शीश धरो
हमने उससे लड़ना छोड़ दिया
शायद इश्क करना छोड़ दिया
अना की जंग में जुदाई जीत गई
उसने तरसना छोड़ दिया हमने बरसना छोड़ दिया
जिन फूलों की तकदीरों में झुलसना था, झुलस गए
फिर क्यों बागबां से लोगों ने बोलना छोड़ दिया
अपनी मुश्किलों का एक हल ऐसे भी निकाला
भूलना मुमकिन न था तो उसे याद करना छोड़ दिया
अमावस तो चाँद की नियति है 'साद'
तुमने क्यों देखने का होंसला छोड़ दिया
इतनी बंदिशे दिल पर लगाने के बाद
सुना है वो भी टूट गया है मेरे जाने के बाद
तुम मुझे फिर कोई नया जख्म दोंगे
मैं मुतमइन हूँ तुझसे बिछड़ जाने के बाद
फलक पर चाहे कितने ही सितारें हो
रात को रोशनी की कमी लगी चाँद के जाने के बाद
बज्म भी गैर थी उसकी तबीयत भी गैर थी
इंतजार नहीं रहता इतने एतराज के बाद
आज भी उसकी बहुत फिक्र है 'साद'
तुम उदास हो जाते हो शाम ढल जाने के बाद
अजीब सी हो गई हाल-बेहाल मेरे यार की सूरत
रंज-ओ-गम से परेशां जुदाई में मुहाल मेरे यार की सूरत
दिल आज उसका भी हुआ मुंतजिर
वो इंतजार बेताब महिवाल की सूरत
खता उसकी थी हम खफ़ा हो गए
मनाने की जद्दोजहद में कोशिशें बेकार-सी-सूरत
उसका बरसने का मन था पर बरस न सका
गर्मी में भटकते आसमां के तरसते बादल सी सूरत
शायद वफा के फूल अब मुरझा से गए है
आती हुई पतझड़ और जाती हुई बहार सी सूरत
धरती से ठीक से मुलाकात नहीं हुई
बादल तो आएंँ पर बरसात नहीं हुई
हमें किसी अपने जैसे से ही इश्क था
इस शहंशाह से तो कोई बात नहीं हुई
तेरे जिकर पर चेहरे का बर्ताव नहीं बदला
शुक्र है खुदा का इस बार रुसवाई नहीं हुई
रास्तों का लुत्फ है या मंजिल पाने की तड़प
इन दोनों से एकसाथ कभी हमनवाई नहीं हुई
तुम अभी अपने माजी को याद करते हो 'साद'
जाने क्यों तुम्हारी उससे जुदाई नहीं हुई
जिन अखियाँ इंतजार होवै
उना नू नींद किथौ आणी है
अगर दोनों रुस बैठे
जिद ता पता नहीं
पर साडी जिंद मुक जाणी हैं
दिल जोऱ दा धड़कदा है
जदौ तेरी याद आणी है
कि सोचणा की होणा है
इश्क़ दा रब ही राखा है
दोनों रुहा कमली हो जाणी है
ओ हँसदे-हँसदे रोंदा हैं
उस मोई ने रोंदे-रोंदे
बरसात लाणी है
जिन अखियाँ इंतजार होवै
उना नू नींद किथौ आणी है
बाकी सब तो ठीक है
तेरे जाने के बाद, नींद नहीं आती
बाकी सब तो ठीक है
लोग नाम लेकर तेरा तंज करते हैं दिल से आह निकल आती
बाकी सब तो ठीक है
बरसात आए न आए बादल देखकर आँख भर आती
बाकी सब तो ठीक है
बात हो कोई तो बात आती है बस तेरी याद आती है
बाकी सब तो ठीक है
शायद मैं ठीक नहीं हूँ
बाकी सब तो ठीक है
तेरा यूँ वायदे से मुकर जाना
लगे जाते जाते जान से चले जाना
क्या बात हुई कि बादल नहीं बरसे
मोहब्बत में लाज़िमी है बात बात पर रूठ जाना
दुनिया को अपने सवालों पर शर्मिंदगी है
अच्छा है इन गमों का तमाशा बन जाना
बुरा उसके जाने का नहीं लगा
बुरा लगा उसका ठहकर चले जाना
जब-जब बारिश तुम्हें भिगोती होगी
तुम्हें मेरी याद तो आती होगी
बादल आज भी यूँ गरज़ा है
मेरा दिल ज़ोर से धड़का है
डरकर किसी दरख़्त से लिपट जाती होगी
तब तुम्हें मेरी याद तो आती होगी
बारिश की बूँदे मासूम से
चेहरे पर बिखर जाएँगी
तुम्हारी जुल्फ़े मेरी उंगलियों सी बन
चाँद को घटाओं से बाहर लाएँगी
मनचली हवा दुपट्टटे को बदन से सरका देंगी
इसी बहाने से मेरी याद दिला देंगी
आँख तो भर आती होगी
रो-रो कर बरसते बादल को कहती होगी
हाँ याद तो आती है
बहुत आती है
आती है याद...
कोई राह तो है जो उस तक जाती है
कोई धुर सुनाई देती है कोई सदा बुलाती है
एक ख्वाब है जो सोने नहीं देता है
नींद कभी आ भी जाए तो आँख भर आती है
वो पूछता रहता है लोगों से मेरे बारे में
पानी जब भी बरसता है उसे याद मेरी आती है
चाँद पर गड्ढे देखने तो हम पहुँच गए है
जम़ी पर आई बाढ़ क्या किसी को नजर आती है
तुम जिद पर आओंगे तो उसे पा लोंगे 'साद'
जब मंजिल नज़र आ गई तो बात समझ में आती है
अपनी बाँहो की गिरफ्त में सुला ले हमें
धड़कनों भी दफ़न हो जाए इस कदर गले लगा लें हमें
इस मासूम से दिल को है कितनी खवाहिशों की हविस
दो चार किसी पीर-फकीरी की बातें सुना दे हमें
तकदीर का फैसला बाद में सुन लेंगे
पहले अपने हाथों की लकीरों से मिटा दें हमें
वक्त बड़ा शरमिंदा हुआ अपने इलाज पर
तू छूकर देख इस जख्म को या कोई मरहम बता दे हमें
आज फिऱ तुम भीग गए हो 'साद'
तभी सावन से कहते हो जला दें हमें
माना कि दिन कड़े हो गए
किस्मत के फैसले समझ से परे हो गए
एक ख्वाब दूर से तमाशा देखता रहता है
कह क्यों नहीं देता कि हम तेरे हो गए
अपनी हालत भी बेबस शहंशाह की तरह है
जिसके ताज़ पर इतने पहरे हो गए
अब हम वो नहीं रहे जैसा तू छोड़कर गया था
गौर से देख चाँद पर गड्ढे गहरे हो गए
गुज़रकर भी नहीं गुज़रते ये लम्हें 'साद'
तभी तो खुशियो से किनारे हो गए
रात काटे नहीं कटती है तेरे शहर में
नींद उजड़ी है उखड़ी है तेरे शहर में
मुझसे मेरी वफ़ाओं के हिसाब मत माँग
रंजिशे है साज़िशे है, गरदिशे है तेरे शहर में
मुसाफ़िर को मुलाक़ात की भी आरज़ू है
फिर क्यों दूरी है मजबूरी है मेरे शहर में
पत्थर दिल लोगों का हजूम है यहाँ
न बूँद है, न फुहार है न बारिश है तेरे शहर में
तुम्हारा खून मीठा है तभी मच्छर ज़्यादा काटते है
वरना तो जहरीली़ हवा है तेरे शहर में
हम अपने ही ख्वाब-ए-ख्याल से डर जाते है
ख़्वाब की ताबीर-ए-अहसास से डर जाते है
वो परिंदें जब भी लौटकर आना चाहते है
तो मोहब्बत के अंजाम से डर जाते है
दिन का खौफ़ नहीं पर दिन ढले तो तू याद आए
अब जब शाम आती है तो शाम से डर जाते है
जिन्हें कभी हमारी हसरतों का शोर सुनाई देता था
आज वे हमारे दिल-ए-शमशान से डर जाते है
भूल जाना भी ज़रूरी होता है 'साद'
वरना हम ज़ख्मी हालात से डर जाते है
आज मैंने तेरा दिया सामान देखा
एक बार नहीं बार-बार देखा
बार-बार हजार बार देखा
जिस तरह तूने मुझे
दुनिया की नजरों से बचाए रखा
यूँ मैंने तेरे सामान को सीने से लगाए रखा
छू-छूकर उन्हें अपने हाथों में समेटती रही
कितनी दफ़ा तेरा पता पूछती रही
पहरों अपने होंठों से लगाए रखा
कुछ याद कर बेइंतहा रोती रही
कभी कोई चूड़ी, झांझर भिगोती रही
तेरे दिए श्रृंगार से श्रृंगार किया मैंने
एक बार फिर आईने का दिल लगाए रखा
माज़ी को अब यू दर-किनार किया
तेरा दिया सामान तोड़ दिया
कल तूने मुझे छोड़ा था
आज मैंने तुझे छोड़ दिया.....
.मेरी बेबसी पर मुस्कुराए तन्हाई पर तरस खाए
ज़माना बना है तो ज़माना नज़र तो आए
हम थक चुके है तुझसे वफ़ा करते-करते
यह हर महीने की बारिश हमें न समझाए
जुदा हुआ है तो ठीक से जुदा हो जा
यूँ न हो कि हर मुलाक़ात पर तू पिघल जाए
शमा का क्या है उसे तो जलना ही है
फिर परवाना चाहे आए या न आए
वक्त गुज़रता भी नहीं है और गुज़रता भी जाता है 'साद'
हर लम्हा पकड़ भी न सकें और छोड़ा भी न जाए
क्यों अपना दिल मैला करो
गुरुद्वारे से क्यों मंदिर की तुलना करो
यहीं वो मंदिर है जिसके कपाट विट्ठल ने मोड़ दिए
इसी भक्त नामदेव के बारे में गुरुबाणी में पढ़ो
राधा का अर्थ 'आत्मा' और आत्मा का स्वामी परमात्मा
अब चाहे श्याम से प्रेम करो, नानक के राम से प्रेम करो
मुझे व्रत, पूजा या नियमों की भक्ति से क्या लेना-देना
मन वचन कर्म से किसी का दिल न दुखे कोई ऐसा व्रत धरो
मारने वाला प्रहलाद को मारे भाई मतिदास को चीरे
माँगने वाला कुरबानी माँगे तो सबसे पहले अपना शीश धरो
हमने उससे लड़ना छोड़ दिया
शायद इश्क करना छोड़ दिया
अना की जंग में जुदाई जीत गई
उसने तरसना छोड़ दिया हमने बरसना छोड़ दिया
जिन फूलों की तकदीरों में झुलसना था, झुलस गए
फिर क्यों बागबां से लोगों ने बोलना छोड़ दिया
अपनी मुश्किलों का एक हल ऐसे भी निकाला
भूलना मुमकिन न था तो उसे याद करना छोड़ दिया
अमावस तो चाँद की नियति है 'साद'
तुमने क्यों देखने का होंसला छोड़ दिया
इतनी बंदिशे दिल पर लगाने के बाद
सुना है वो भी टूट गया है मेरे जाने के बाद
तुम मुझे फिर कोई नया जख्म दोंगे
मैं मुतमइन हूँ तुझसे बिछड़ जाने के बाद
फलक पर चाहे कितने ही सितारें हो
रात को रोशनी की कमी लगी चाँद के जाने के बाद
बज्म भी गैर थी उसकी तबीयत भी गैर थी
इंतजार नहीं रहता इतने एतराज के बाद
आज भी उसकी बहुत फिक्र है 'साद'
तुम उदास हो जाते हो शाम ढल जाने के बाद
अजीब सी हो गई हाल-बेहाल मेरे यार की सूरत
रंज-ओ-गम से परेशां जुदाई में मुहाल मेरे यार की सूरत
दिल आज उसका भी हुआ मुंतजिर
वो इंतजार बेताब महिवाल की सूरत
खता उसकी थी हम खफ़ा हो गए
मनाने की जद्दोजहद में कोशिशें बेकार-सी-सूरत
उसका बरसने का मन था पर बरस न सका
गर्मी में भटकते आसमां के तरसते बादल सी सूरत
शायद वफा के फूल अब मुरझा से गए है
आती हुई पतझड़ और जाती हुई बहार सी सूरत
धरती से ठीक से मुलाकात नहीं हुई
बादल तो आएंँ पर बरसात नहीं हुई
हमें किसी अपने जैसे से ही इश्क था
इस शहंशाह से तो कोई बात नहीं हुई
तेरे जिकर पर चेहरे का बर्ताव नहीं बदला
शुक्र है खुदा का इस बार रुसवाई नहीं हुई
रास्तों का लुत्फ है या मंजिल पाने की तड़प
इन दोनों से एकसाथ कभी हमनवाई नहीं हुई
तुम अभी अपने माजी को याद करते हो 'साद'
जाने क्यों तुम्हारी उससे जुदाई नहीं हुई
जिन अखियाँ इंतजार होवै
उना नू नींद किथौ आणी है
अगर दोनों रुस बैठे
जिद ता पता नहीं
पर साडी जिंद मुक जाणी हैं
दिल जोऱ दा धड़कदा है
जदौ तेरी याद आणी है
कि सोचणा की होणा है
इश्क़ दा रब ही राखा है
दोनों रुहा कमली हो जाणी है
ओ हँसदे-हँसदे रोंदा हैं
उस मोई ने रोंदे-रोंदे
बरसात लाणी है
जिन अखियाँ इंतजार होवै
उना नू नींद किथौ आणी है
बाकी सब तो ठीक है
तेरे जाने के बाद, नींद नहीं आती
बाकी सब तो ठीक है
लोग नाम लेकर तेरा तंज करते हैं दिल से आह निकल आती
बाकी सब तो ठीक है
बरसात आए न आए बादल देखकर आँख भर आती
बाकी सब तो ठीक है
बात हो कोई तो बात आती है बस तेरी याद आती है
बाकी सब तो ठीक है
शायद मैं ठीक नहीं हूँ
बाकी सब तो ठीक है
तेरा यूँ वायदे से मुकर जाना
लगे जाते जाते जान से चले जाना
क्या बात हुई कि बादल नहीं बरसे
मोहब्बत में लाज़िमी है बात बात पर रूठ जाना
दुनिया को अपने सवालों पर शर्मिंदगी है
अच्छा है इन गमों का तमाशा बन जाना
बुरा उसके जाने का नहीं लगा
बुरा लगा उसका ठहकर चले जाना
जब-जब बारिश तुम्हें भिगोती होगी
तुम्हें मेरी याद तो आती होगी
बादल आज भी यूँ गरज़ा है
मेरा दिल ज़ोर से धड़का है
डरकर किसी दरख़्त से लिपट जाती होगी
तब तुम्हें मेरी याद तो आती होगी
बारिश की बूँदे मासूम से
चेहरे पर बिखर जाएँगी
तुम्हारी जुल्फ़े मेरी उंगलियों सी बन
चाँद को घटाओं से बाहर लाएँगी
मनचली हवा दुपट्टटे को बदन से सरका देंगी
इसी बहाने से मेरी याद दिला देंगी
आँख तो भर आती होगी
रो-रो कर बरसते बादल को कहती होगी
हाँ याद तो आती है
बहुत आती है
आती है याद...
कोई राह तो है जो उस तक जाती है
कोई धुर सुनाई देती है कोई सदा बुलाती है
एक ख्वाब है जो सोने नहीं देता है
नींद कभी आ भी जाए तो आँख भर आती है
वो पूछता रहता है लोगों से मेरे बारे में
पानी जब भी बरसता है उसे याद मेरी आती है
चाँद पर गड्ढे देखने तो हम पहुँच गए है
जम़ी पर आई बाढ़ क्या किसी को नजर आती है
तुम जिद पर आओंगे तो उसे पा लोंगे 'साद'
जब मंजिल नज़र आ गई तो बात समझ में आती है
अपनी बाँहो की गिरफ्त में सुला ले हमें
धड़कनों भी दफ़न हो जाए इस कदर गले लगा लें हमें
इस मासूम से दिल को है कितनी खवाहिशों की हविस
दो चार किसी पीर-फकीरी की बातें सुना दे हमें
तकदीर का फैसला बाद में सुन लेंगे
पहले अपने हाथों की लकीरों से मिटा दें हमें
वक्त बड़ा शरमिंदा हुआ अपने इलाज पर
तू छूकर देख इस जख्म को या कोई मरहम बता दे हमें
आज फिऱ तुम भीग गए हो 'साद'
तभी सावन से कहते हो जला दें हमें
माना कि दिन कड़े हो गए
किस्मत के फैसले समझ से परे हो गए
एक ख्वाब दूर से तमाशा देखता रहता है
कह क्यों नहीं देता कि हम तेरे हो गए
अपनी हालत भी बेबस शहंशाह की तरह है
जिसके ताज़ पर इतने पहरे हो गए
अब हम वो नहीं रहे जैसा तू छोड़कर गया था
गौर से देख चाँद पर गड्ढे गहरे हो गए
गुज़रकर भी नहीं गुज़रते ये लम्हें 'साद'
तभी तो खुशियो से किनारे हो गए
रात काटे नहीं कटती है तेरे शहर में
नींद उजड़ी है उखड़ी है तेरे शहर में
मुझसे मेरी वफ़ाओं के हिसाब मत माँग
रंजिशे है साज़िशे है, गरदिशे है तेरे शहर में
मुसाफ़िर को मुलाक़ात की भी आरज़ू है
फिर क्यों दूरी है मजबूरी है मेरे शहर में
पत्थर दिल लोगों का हजूम है यहाँ
न बूँद है, न फुहार है न बारिश है तेरे शहर में
तुम्हारा खून मीठा है तभी मच्छर ज़्यादा काटते है
वरना तो जहरीली़ हवा है तेरे शहर में
हम अपने ही ख्वाब-ए-ख्याल से डर जाते है
ख़्वाब की ताबीर-ए-अहसास से डर जाते है
वो परिंदें जब भी लौटकर आना चाहते है
तो मोहब्बत के अंजाम से डर जाते है
दिन का खौफ़ नहीं पर दिन ढले तो तू याद आए
अब जब शाम आती है तो शाम से डर जाते है
जिन्हें कभी हमारी हसरतों का शोर सुनाई देता था
आज वे हमारे दिल-ए-शमशान से डर जाते है
भूल जाना भी ज़रूरी होता है 'साद'
वरना हम ज़ख्मी हालात से डर जाते है
यह मुमकिन है तो मुमकिन ही रहें
जिंदगी में तर्क-ए-आरजू ही रहे
अब किसी मोज़ो पर माज़रत न करो
हमें पाने की हकीकत हसरत ही रहें
जिंदगी में तर्क-ए-आरजू ही रहे
अब किसी मोज़ो पर माज़रत न करो
हमें पाने की हकीकत हसरत ही रहें
हमें क्या मालूम कि कब सहर होगी
अपनी रात में तो जुगनू भर रोशनी ही रहे
अपनी रात में तो जुगनू भर रोशनी ही रहे
सारे लफ्ज तो तेरी खामोशी ने बिखेर दिए
अब कैसे गज़लों में मौसीकी ही रहे
किस बात से परेशान हो आज 'साद'अब कैसे गज़लों में मौसीकी ही रहे
खुलकर बताओ ताकि वो भी पशेमा़ ही रहे
तुम हमें क्या मिल गए
लोग हमसे दुआ करवाने आ गए
सियासी पत्थर बुनियाद न हिला सके
तो दर-ओ-दीवार हिलाने आ गए
जिनके लिए हमने पूरी ग़ज़ल लिख दी
वो सिर्फ दो लफ्ज़ लिखवाने आ गए
तुम्हारी बज़्म तुम्हें ही मुबारक हो
हम तो यूँ ही दिल बहलाने आ गए
गुज़रा साल कैसे गुज़रेगा 'साद'
फिर पुराने ख्वाब जगाने आ गए
उसके शाना पर सिर रखकर सोने दें
हमारा एक ख़्वाब तो मुकम्मल होने दें
आज अपने मन की करने दे ऐ-ज़िन्दगी
कल नहीं कहेंगे जो हो रहा है वो न होने दें
बारिशों को मत कहो कि अपनी हद में रहे
वो गमज़दा बादल है जितना चाहे रोने दें
बेटी को लूटकर मारा तब नहीं सोचा़
अब उन ज़ालिमो को भी फ़ाँसी होने दें
तुम तो अल्फा़जो़ में जज्बातों को बिखेरते हो 'साद'
कभी उसे भी दर्द की स्याही में कलम भिगोने दें
दिल के टुकडे़ जोड़कर देख लिया
यह तमाशा करके देख लिया
क्यों दीवानों की तरह पीछे पड़ा है
हमने किसी का होकर देख लिया
जो अब खुदा खुदा कर रहा है
उसने लोगों से माँगकर देख लिया
दिलों से नफरतें कभी कम नहीं होती
जिन्होंने तिरंगा लहराकर देख लिया
आज बादल नहीं धूप ही धूप रहेगी 'साद'
और तुमने तो उदास रहकर भी देख लिया
कैद में हूँ
अपनी तामसिकताओं को समेटे हुए
अधूरी-अनचाही ख्वाहिशों से उलझे हुए
म़ाजी की बेड़ियों में जकड़े
टूटे हुए ख्वाबों से लहूलुहान ये जज़्बात
चेहरे पर बिखरी हुई आँसूओं की बरसात
एक अनचाहे हालात के साथ
मैं कैद में हूँ।।।।
दरीचे से चाँद नज़र आता नहीं
रह-रहकर ताज़महल याद आता है
ढलते सूरज के साथ
दिल भी डूब जाता है
कभी आशियां था साहिल के पास
सहरा में कहाँ से बुझेगी प्यास़
यूँ मशक्कत जिंदगी के साथ
कैद में हर लम्हा, हालात
और
मैं भी कैद में हूँ।।।।।
तुम हमें क्या मिल गए
लोग हमसे दुआ करवाने आ गए
सियासी पत्थर बुनियाद न हिला सके
तो दर-ओ-दीवार हिलाने आ गए
जिनके लिए हमने पूरी ग़ज़ल लिख दी
वो सिर्फ दो लफ्ज़ लिखवाने आ गए
तुम्हारी बज़्म तुम्हें ही मुबारक हो
हम तो यूँ ही दिल बहलाने आ गए
गुज़रा साल कैसे गुज़रेगा 'साद'
फिर पुराने ख्वाब जगाने आ गए
उसके शाना पर सिर रखकर सोने दें
हमारा एक ख़्वाब तो मुकम्मल होने दें
आज अपने मन की करने दे ऐ-ज़िन्दगी
कल नहीं कहेंगे जो हो रहा है वो न होने दें
बारिशों को मत कहो कि अपनी हद में रहे
वो गमज़दा बादल है जितना चाहे रोने दें
बेटी को लूटकर मारा तब नहीं सोचा़
अब उन ज़ालिमो को भी फ़ाँसी होने दें
तुम तो अल्फा़जो़ में जज्बातों को बिखेरते हो 'साद'
कभी उसे भी दर्द की स्याही में कलम भिगोने दें
दिल के टुकडे़ जोड़कर देख लिया
यह तमाशा करके देख लिया
क्यों दीवानों की तरह पीछे पड़ा है
हमने किसी का होकर देख लिया
जो अब खुदा खुदा कर रहा है
उसने लोगों से माँगकर देख लिया
दिलों से नफरतें कभी कम नहीं होती
जिन्होंने तिरंगा लहराकर देख लिया
आज बादल नहीं धूप ही धूप रहेगी 'साद'
और तुमने तो उदास रहकर भी देख लिया
कैद में हूँ
अपनी तामसिकताओं को समेटे हुए
अधूरी-अनचाही ख्वाहिशों से उलझे हुए
म़ाजी की बेड़ियों में जकड़े
टूटे हुए ख्वाबों से लहूलुहान ये जज़्बात
चेहरे पर बिखरी हुई आँसूओं की बरसात
एक अनचाहे हालात के साथ
मैं कैद में हूँ।।।।
दरीचे से चाँद नज़र आता नहीं
रह-रहकर ताज़महल याद आता है
ढलते सूरज के साथ
दिल भी डूब जाता है
कभी आशियां था साहिल के पास
सहरा में कहाँ से बुझेगी प्यास़
यूँ मशक्कत जिंदगी के साथ
कैद में हर लम्हा, हालात
और
मैं भी कैद में हूँ।।।।।
वो गुज़रा हुआ जम़ाना याद आता है
एक पागल दिवाना याद़ आता है
एक पागल दिवाना याद़ आता है
खंजर रखने वाले अकसर बच जाते है
नज़रों से कत्ल करने वालों पर इल्ज़ाम आता है
नज़रों से कत्ल करने वालों पर इल्ज़ाम आता है
हम हर ख़त में उन्हें जवाब भेजते है
उनके हर जवाब में एक सवाल आता है
उनके हर जवाब में एक सवाल आता है
उसके शहर में भी बरसात होती रहती है
अब वो जब भी आता है बीमार आता है
अब वो जब भी आता है बीमार आता है
दुआ करो कि कश्ती डूबने से बच जाए 'साद'
इन हवाओं से खुशबू नहीं खौफ़ आता है
कब खत्म होगा ये बुरी ख़बरों का दौर
मुश्किल, बेहिसी, बेबसी, बेदिली का दौर
कब तक चाँद को खिड़की से निहारते रहे
मजबूरियाँ, दूरियाँ, फैसले, फ़ासलों का दौर
शहर के शहर शमशान बनते जा रहे हैं
गमज़दा, खौफ़जदा, मायूसी उदासी का दौर
कोई सदा होगी जो उस खुदा तक जाती होगी 'साद'
मुफ़लिसी , नाउम्मीदी, बेअसर दुआओं का दौर
मान लिया जान-पहचान नहीं है
उससे मयस्सर कुछ बात नहीं है
बेवज़ह बारिशों को हमने बुलाया है
कह मत देना की कोई इलज़ाम नहीं है
कसूर ये था तुम्हें याद कर रहे थें
सज़ा यह है अब कुछ याद नहीं है
मौत आएँगी तो साथ लेकर ही जाएँगी
जिंदगी की तरह बेवफ़ा बदनाम नहीं है
खुद-ब-खुद कश्तियाँ डूब गई है 'साद'
लहरें मासूम है सागर में कोई तूफ़ान नहीं है
इश्क़-ए-मंजर को समेट ले तो चलते है
आपको जी भर देख ले तो तो चलते है
बहुत नुकसान पहुँचाती है सादगी हमारी
थोड़ी चालाकी सीख ले तो चलते है
गरीब कवि हूँ लफ्जों का लिखा खाता हूँ
कोई मेरी शायरी खरीद लें तो चलते है
ज़िन्दगी के सफ़र में सभी मुसाफ़िर है
फिऱ भी पीछे मुड़कर देख लें तो चलते है
अमल़ की किताबें तो रोज़ पढ़ रहे है
पर उसे माफ़ करना सीख लें तो चलते है
बिछड़ते वक्त तुम्हारी आँखे नम है 'साद'
उनके आँसू भी पोंछ ले तो चलते है
इन हवाओं से खुशबू नहीं खौफ़ आता है
कब खत्म होगा ये बुरी ख़बरों का दौर
मुश्किल, बेहिसी, बेबसी, बेदिली का दौर
कब तक चाँद को खिड़की से निहारते रहे
मजबूरियाँ, दूरियाँ, फैसले, फ़ासलों का दौर
शहर के शहर शमशान बनते जा रहे हैं
गमज़दा, खौफ़जदा, मायूसी उदासी का दौर
कोई सदा होगी जो उस खुदा तक जाती होगी 'साद'
मुफ़लिसी , नाउम्मीदी, बेअसर दुआओं का दौर
मान लिया जान-पहचान नहीं है
उससे मयस्सर कुछ बात नहीं है
बेवज़ह बारिशों को हमने बुलाया है
कह मत देना की कोई इलज़ाम नहीं है
कसूर ये था तुम्हें याद कर रहे थें
सज़ा यह है अब कुछ याद नहीं है
मौत आएँगी तो साथ लेकर ही जाएँगी
जिंदगी की तरह बेवफ़ा बदनाम नहीं है
खुद-ब-खुद कश्तियाँ डूब गई है 'साद'
लहरें मासूम है सागर में कोई तूफ़ान नहीं है
इश्क़-ए-मंजर को समेट ले तो चलते है
आपको जी भर देख ले तो तो चलते है
बहुत नुकसान पहुँचाती है सादगी हमारी
थोड़ी चालाकी सीख ले तो चलते है
गरीब कवि हूँ लफ्जों का लिखा खाता हूँ
कोई मेरी शायरी खरीद लें तो चलते है
ज़िन्दगी के सफ़र में सभी मुसाफ़िर है
फिऱ भी पीछे मुड़कर देख लें तो चलते है
अमल़ की किताबें तो रोज़ पढ़ रहे है
पर उसे माफ़ करना सीख लें तो चलते है
बिछड़ते वक्त तुम्हारी आँखे नम है 'साद'
उनके आँसू भी पोंछ ले तो चलते है
मैं
क्यों लिखती हूँ
बारिशों
की बूँदे मुझे छूती है
कानों
में कुछ कह जाती है
प्रकृति
अंतर्मन को भिगोती है
जब
अपनी ही आँख के पानी से रिसती हूँ
तब
कलम पकड़ती हूँ।
किसी
ख्वाब को ले संजीदा होती हूँ
टूटने
पर खुद से शरमिंदा होती हूँ
शब्दभेदी
बाण हृदय को आहत करते हैं
फिऱ
अपने मर्म की
चोट से
उभरे लहू को
कागज़ पर उड़ेलती हूँ
तब ऐसे दिल के ज़ख्मों पर मरहम करती हूँ।
माज़ी
को वर्तमान से जोड़ते है
मुस्तबिल
के बारे में हद से ज़्यादा सोचते हैं
ऐसा
क्यों हुआ ?
इन
सवालों से परेशां होती
हूँ
बैचेनी
में चैन
खोजती हूँ
जीवन-रूपी
वर्ग पहेली को
तब
अपने ही लिखे काव्य से सुलझाती हूँ
सच
तो यह है
अपनी
ही ख़ामोशी में कैद है
लफ्ज़ से परिंदे
को
हालातों
के पिंजरे से
आज़ाद
करना चाहती हूँ
निराशा की रात
से जागकर
नई
उम्मीद की उषा करना चाहती हूँ
तब लिखती हूँ
हाँ
! तब लिखती हूँ!!!!!!!!
नज्म़
वो हमारी महफिल में आ गए है
नज़रे उनसे बचती फिऱ रही है
कभी वो चाँद की बात करते
कभी जुल्फ़ की बदली पर अटकते
लोगों के तो जाम टकरा रहे हैं
पर उनकी मय नजरों से झलक रही है
नज़रों-नजरों से वो पूछ रहे हैं
क्या! कोई इश्क की शमा जल रही है
इस सवाल के ज़वाब में
हाँ! में हमारी नज़रे झुक रही है
वो हमारी महफिल में आ गए है
नज़रे उनसे बचती फिऱ रही है
उठ जा! मांझी छोड़ सुस्ती रे!!!
उठ ! तेरी है काग़ज की कश्ती रे।!
दूर किनारा, पपीहा कह उठा,
लो,आ गई! काली घटा गरज़ती रे!!
उठ जा! मांझी छोड़ सुस्ती रे!!!
बेसब़ब तूफ़ानों से टकराना है
क़ागज़ के सहारे पार पाना है
बड़े-बड़े जहाज़ों को तेरी
कागज़ की नाव खटकती रे!
उठ जा! मांझी छोड़ सुस्ती रे!!!
कोई है, जो तुझे बुलाता है
दूर छोर से आवाज़ लगाता है
फिऱ क्यों तू लहरों से दिल बहलाता है?
प्यास़ी अखि़याँ तेरे मिलने को तरसती रे!!
उठ जा! मांझी छोड़ सुस्ती रे!!!
तेरी है काग़ज की कश्ती रे।!
नज्म़
हम नहीं समझे तो तुम समझा देतै
सावन में नहीं भादों में भिगो देते
अभी भी बरस रहा है
तेरे मिलने को तरस रहा है
रस्मे वफ़ा निभाने के लिए
आँख से कोई आँसू गिरा देते
बारिशों ने तुम्हें घर में कैद किया
तुम गर चाहते तो
बरबस बरसती बदली को
हमारे दरमियां से हटा देते
पर अब भी बूँदा-बाँदी ज़ारी है....
इंतज़ार का हर लम्हा भारी है....
हर लम्हा... हर लम्हा
पनघट पर जाते हुएँ काँटा चुभ गया
कन्हैया धीरे-धीरे हँसता गया
फिऱ पूँछ ही बैठा::
क्यों आती हूँ पानी भरने?
यहाँ इस राह पर बहुत काँटे है
यह प्रेम की राह है कान्हा
ये तो तेरे उपहार है जो तूने बाँटे है
अखियाँ तेरे दर्शन को प्यासी है
प्रेम की पीड़ की हृदय को चाह सी है
कान्हा मुस्कुराए बोले-
यहीं में हार जाता हूँ
प्रेम से कोई बुलाता है
तो उसका हो जाता हूँ
उसका हो जाता हूँ....
गीत
मोहे रास न आए तेरे गीत
कान्हा कहै, राधै रूठ गई है
उसे झूठी लागै मोरी प्रीत
जग बैरी होतो होत हमारा
तू काहै बन न सकै मेरा मीत
मोहे रास न आए तेरे गीत
कान्हा सोचै, राधै क्यों न बुलाती
न कोई संदेस न कागज़ न पत्री
वंशी सुनै कै भी याद न आती
देह से दुरौ रहे, मन तो तेरै पास
काहै छूट गई मेरे सै आस
लगै टूट गई परतीत, तभी बोलै राधै
मोहे रास न आए तेरे गीत
.
No comments:
Post a Comment