एक समय था जब बच्चे सुबह से लेकर शाम तक बिना किसी डर के घर से बाहर खेला करते थे, मेरा बचपन भी वैसा ही था! मगर आज के माँ बाप बच्चों से ज्यादा डरते हैं वजह शहरों मैं फ्लैट बनते जा रहे हैं अजनबी लोग, अजनबी आँखे! गलत सोच ने ऐसा वातावरण पैदा किया हैं कि आज मैं बच्चों की मनोस्थिति पर यह कविता लिखने को मजबूर हो गयी हूँ साथ ही साथ हमारी कानून व्यवस्था भी उनकी सुरक्षा कर पाने मैं सक्षम कम बल्कि केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने मैं लगी हुई है! तभी तो इंसाफ चाहे कोई भी मांगे उसे निराशा ही हाथ लगती हैं और वह भी पिंकी की तरह बेबस हो जाता हैं!
माँ मुझे चाँद पर लेकर चलो
सात -आठ साल की बिटिया बोली अपनी माँ से-
मुझे चाँद पर लेकर चलो
प्रशन थोड़ा अजीब था
बेटी का चेहरा गंभीर था
बोली माँ-क्या करेंगी चाँद पर ?
चाँद पर अजीब तरह से घूरने वाले चाचा नहीं होंगे
आशीर्वाद के बहाने हाथ लगाने वाले बाबा नहीं होंगे
फिर तुम भी तो बाहर खेलने नहीं भेजती हो
रोज कुछ पढ़ती हो, रोज थोड़ा डरती हो
क्या लिखा होता हैं अखबार मैं
उदास हूँ गयी हूँ मैं दो कमरो के संसार में
सुनकर उत्तर उस बेबस माँ की आँखों मैं आ गया पानी
कि अब तो चाँद पर भी पहुंच गया हैं आदमी
कैसे कहे आज के बचपन पर क्यों इतने पहरे हैं?
आसमान तो बहुत बड़ा हैं पर गिद्ध के घात उतने ही गहरे हैं
ज़िद्द अब भी वही थी
माँ खाने-पीने का सामान लेकर चलो
माँ मुझे चाँद पर लेकर चलो!
गुड़िया
पिंकी बिटिया बैठी थी उदास
उसकी गुड़िया को तोड़-फोड़ कर
नोच खोंस कर फैंक दिया था
किसी ने गटर के पांस
सभी लगे उसे बहलाने
क्या-क्या कहकर लगे समझाने
तभी न जाने उसे क्या सूझी
कि वह चल पड़ी थाने
पहुंची थाने बोली अंकल-
देखो मेरी गुड़िया की हालत
जिसने किया हैं ऐसा, उसे पकड़ कर लाऊँ
जैसे भी हो उसे फँसी पर लटकओं
पुलिस वाला जोर से हंसा और बोला-
तेरे जैसी हाड़-मांस की गुड़िया के साथ
रोज हो रहे हैं ऐसे हादसे
यह तो हो गयी अब आम सी बात
फिर प्लास्टिक की गुड़िया कि होती क्या है बिसात
कौन पकडे इनके आरोपी क्या फायदा है जान गवाने में
नेताजी के कुत्ते पकड़कर मज़ा हैं लाखों कमाने मैं
चल भाग यहाँ से-
अब न आइयों कभी थाने में
वह मासूम कहा जाएं
टूट गयी थी उसकी आखिरी आस
पिंकी बिटिया बैठी थी उदास
उसकी गुड़िया को तोड़-फोड़ कर,
नोच खोंस करफैंक दिया था
किसी ने गटर के पांस!
आजकल के बच्चों को बाहरी दुनिया अर्थात देश में क्या हूँ रहा हैं इससे कुछ लेना-देना नहीं हैं ! उनकी अपनी एक दुनिया बसी हुई हैं और इसमें वह खुश और सन्तुष्ट हैं! उनको व्यस्त रखने वाले खिलोने आज मोबाइल और हनी सिंह के गाने हैं! आज हनी सिंह सबको पसन्द हैं खासकर बच्चों को! तभी तो उनकी परिस्थिति पर एक कविता लिखी जा सकती हैं--
मोबाइल और हनीसिंह
आज के बच्चों के नयें-नयें शोक नए फसाने हैं
तरह-तरह के मोबाइल हाथ में और बजाते हनी सिंह के गाने हैं
देश में क्या हो रहा हैं इन् बातों से रहते अनजान
बाजार मैं आया कौन सा एंड्राइड
और यो-यो के गाने को अपलोड करने मैं हैं शान
यह इकीसवीं शताब्दी की ऐसी नस्ले हैं
फेसबुक और व्हट्सूप के लाइक और कमेंट ही इनकी ज़िंदगी के मसले हैं
क्लास और स्कूल में चाहे हो जाएँ लेट
कौन सी कंपनी का आया मोबाइल इन् बातों से रहते अपडेट
आज वोडका क्या हैं यह सबको पता हैं
हनी सिंह का हर गाना इन्हे इनके प्रशनो से ज्यादा रटा हैं
इंटरनेट की दुनिया भी बड़ी निराली हैं
सिमट गयी हैं एक मोबाइल में
हर बच्चा लगा हुआ हैं स्माइली और यो-यो की स्माइल में
कभी खो-खो, भागमभाग, विष-अमृत ऐसे खेल खेला करते थे
परिवारवाले तंग और गली मोहल्ले सब शोर झेलते थे
नाज़ुक उम्र थी नासमझी में भी एक समझ थी
बचपन ऐसे झलकता था कि धूप में भी चेहरा खिलता था
आज घर मैं ही गेम खेली जाती हैं और हनी की सीडी चलाई जाती हैं
महंगा मोबाइल इन् मासूमो की शान है
ऐप्प और रैप इनकी पहचान हैं
हर बच्चे एक यही राग यही गाना हैं
हनी और मोबाइल से चोली-दामन का साथ निभाना हैं!
सुन बच्चे !
सुन बच्चे ! बड़े होने की ज़िद न कर
भीग बेसब्र होकर बारिशों के पानी में
चला कागज़ की नाव बारिशों से भरे
सड़को पर उभर आये नालों के पानी में
अपने गैस वाले गुब्बारे चाँद तक पंहुचा
बुड्ढी के रंग-बिरंगे बाल खा
बर्फ के गोलों की चुस्कियां से
मुँह गन्दा कर माँ को अपने पीछे भगा
खेल धूप भरी दोपहरी में
या रात की चांदनी में
अपने दोस्तों को जी-जान से बुलाया कर
कभी खुद रूठ जाया कर
या उन्हें मनाया कर
छुपा कर हरे पेड़ो की ओट में
लाड से बैठा कर नानी-दादी की गोद में
एक अलग ही मज़ा है परियों की कहानी में
बचपन जी पैर रखने की जल्दी ना कर जवानी में
होली भी रंगो से सरोबार रहे
दिवाली पर पटाखों से ज्यादा फुलझड़ी से प्यार रहे
कोई रहे न रहे गुड्डे-गुड़िया हमेशा यार रहे
रेत के घर बना या
नकली बर्तनो से खाने पर बुला
यह बालमन फर्क नहीं करता
राजा और रानी में
बिना दहेज के नाच
बन्दर, भालू या गुड़िया की शादी में
पैसे की खनक को गुलक में जोड़ने की सनक रख
कागज़ के नोटों की फ़िक्र न कर
सुन बच्चे! बड़े होने की ज़िद न कर
मैगी
मैगी मेरी प्यारी मैगी
पांच से खाया तुझे
बारह रुपए तक कर दी गयी महंगी
मैगी मेरी प्यारी मैगी
एक ही भोजन था जो पकाना आता था
हमारी पाक-कला में सर्वोच्च नाम तुम्हारा था
कामकाजी माओ का एक तू ही सहारा था
यह तूने कैसी बेवफाई हैं दिखाई
कि लोगो की जान पर बन आई
टिन और लीड में क्यों जा मिली
अब सेहत की कौन करेगा भरपाई
तू तो सचमुच हम पर पड़ गई महंगी
मैगी मेरी प्यारी मैगी
गुब्बारे
रंग -बिरंगे प्यारे प्यारे
एक दो नहीं ढेर सरे
बच्चों की ऊँगली थाम
खिलखिलाते, चहचहाते गुब्बारे
गुब्बारे वाले कम हों गए हैं
बच्चे अब वीडियो गेम में मगन हों गए हैं
फिर भी जब कोई गुब्बारे वाला आता हैं
कोई नन्हा मासूम दौड़ भागकर आता हैं
आसमान में पतंग उड़ रही हैं
गुब्बारा भी उड़ सकता हैं
पर उड़ जाने पर छूता रहता हैं
क्षितिज के छोर सारे के सारे
उड़ते घूमते, चहचहाते गुब्बारे
रोटी
रोटी हूँ मैं गोल रोटी
कभी-कभी तुमसे बनती छोटी
कभी-कभी पतली या फूली
तो कभी जली रोटी
तुम्हे अपनी कहानी सुनाती हूँ
रोटी बनने से पहले
मैं गेहू बन खेतों में उगाई जाती हूँ
सारा अनाज चक्की में पिसता हैं
और इसी से तो आटा बनता हैं
फिर तुम्हारे पापा मुझे घर ले आते हैं
मम्मी तुम्हारी पकाकर खिलाती हैं
फिर आटे से रोटी बन जाती हैं
मेरे भी अनेक नाम
रुमाली, तंदूरी और नान
तुम पिज़्ज़ा , बर्गर के शौक़ीन हों
मुझे खाने के नखरे दिखाते हों
पर तुम्हे पता हैं मुझे खाने से ताकतआएँगी
मोटी-मोटी किताबें झट से पढ़ी जाएँगी
एक -दो चार छोटी या गोल गोल खाओ रोटी
बहुत ज़रूरी हैं मत छोड़ना फ़ास्ट फ़ूड के चक्कर में रोटी
परीक्षा
जब बच्चो की परीक्षा आ जाती हैं
मंदिरो, गुरुद्वारों और गिरजाघरों में भीड़ बढ़ जाती हैं!
शायद नमाज़ भी पांच वक़्त से ज्यादा पढ़ी जाती हैं !
माथे पर जितना लंबा तिलक लगा होगा
वही बालक ईश्वर की कृपा के समीप होंगा
भ्रष्टाचार में ये बच्चे भी लिप्त हैं
तभी तो प्रसाद की चढ़ती पहली किश्त हैं
इन्हें कर्म की नहीं फल की इच्छा हैं
सुन ले ! प्रभु आज से चालू मेरी परीक्षा हैं
अगर पास हुए तो मेहनत हमारी होंगी
फ़ेल होने पर ईश्वर की ज़िम्मेदारी होंगी !
यह दौर सभी के जीवन में आता हैं
जब खुदा को मुसीबत में सबसे करीब पाता हैं !
ख़ैर ! दम लगा के हईशा सबको गाना होगा
मेरे प्यारे बच्चो अच्छे नम्बरो से पास होना हैं
तो क़िताबो से दिल लगाना होंगा !
आसमान में जितने सितारे
ऐसे ही चमकते रहे ये बच्चे सारे
ये तो होली के गुलाल जैसे है
मन से निकाल देते भेदभाव सारे
जितना दिवाली के दीपक ने उजाला किया
उतना इन्होंने माँ-बाप का नाम रोशन किया
हम इन्हें बिगड़ी पीढ़ी कहकर दुत्कार लगाते है
सोचते है ये नए दरख्त कहाँ छाया दे पाते है
मगर सच तो यह है
कि इनकी यह ज़िद भी अच्छी है
सपने बड़े है और उम्र थोड़ी कच्ची है
चाहे कितनी भी ऊचाइयों छूते रहे
बड़े हो जाए और बड़प्पन जीते रहे
पर हमेशा यह बात रखना
दिल में हमेशा एक बच्चे को आबाद रखना। ।
माँ मुझे चाँद पर लेकर चलो
सात -आठ साल की बिटिया बोली अपनी माँ से-
मुझे चाँद पर लेकर चलो
प्रशन थोड़ा अजीब था
बेटी का चेहरा गंभीर था
बोली माँ-क्या करेंगी चाँद पर ?
चाँद पर अजीब तरह से घूरने वाले चाचा नहीं होंगे
आशीर्वाद के बहाने हाथ लगाने वाले बाबा नहीं होंगे
फिर तुम भी तो बाहर खेलने नहीं भेजती हो
रोज कुछ पढ़ती हो, रोज थोड़ा डरती हो
क्या लिखा होता हैं अखबार मैं
उदास हूँ गयी हूँ मैं दो कमरो के संसार में
सुनकर उत्तर उस बेबस माँ की आँखों मैं आ गया पानी
कि अब तो चाँद पर भी पहुंच गया हैं आदमी
कैसे कहे आज के बचपन पर क्यों इतने पहरे हैं?
आसमान तो बहुत बड़ा हैं पर गिद्ध के घात उतने ही गहरे हैं
ज़िद्द अब भी वही थी
माँ खाने-पीने का सामान लेकर चलो
माँ मुझे चाँद पर लेकर चलो!
गुड़िया
पिंकी बिटिया बैठी थी उदास
उसकी गुड़िया को तोड़-फोड़ कर
नोच खोंस कर फैंक दिया था
किसी ने गटर के पांस
सभी लगे उसे बहलाने
क्या-क्या कहकर लगे समझाने
तभी न जाने उसे क्या सूझी
कि वह चल पड़ी थाने
पहुंची थाने बोली अंकल-
देखो मेरी गुड़िया की हालत
जिसने किया हैं ऐसा, उसे पकड़ कर लाऊँ
जैसे भी हो उसे फँसी पर लटकओं
पुलिस वाला जोर से हंसा और बोला-
तेरे जैसी हाड़-मांस की गुड़िया के साथ
रोज हो रहे हैं ऐसे हादसे
यह तो हो गयी अब आम सी बात
फिर प्लास्टिक की गुड़िया कि होती क्या है बिसात
कौन पकडे इनके आरोपी क्या फायदा है जान गवाने में
नेताजी के कुत्ते पकड़कर मज़ा हैं लाखों कमाने मैं
चल भाग यहाँ से-
अब न आइयों कभी थाने में
वह मासूम कहा जाएं
टूट गयी थी उसकी आखिरी आस
पिंकी बिटिया बैठी थी उदास
उसकी गुड़िया को तोड़-फोड़ कर,
नोच खोंस करफैंक दिया था
किसी ने गटर के पांस!
आजकल के बच्चों को बाहरी दुनिया अर्थात देश में क्या हूँ रहा हैं इससे कुछ लेना-देना नहीं हैं ! उनकी अपनी एक दुनिया बसी हुई हैं और इसमें वह खुश और सन्तुष्ट हैं! उनको व्यस्त रखने वाले खिलोने आज मोबाइल और हनी सिंह के गाने हैं! आज हनी सिंह सबको पसन्द हैं खासकर बच्चों को! तभी तो उनकी परिस्थिति पर एक कविता लिखी जा सकती हैं--
मोबाइल और हनीसिंह
आज के बच्चों के नयें-नयें शोक नए फसाने हैं
तरह-तरह के मोबाइल हाथ में और बजाते हनी सिंह के गाने हैं
देश में क्या हो रहा हैं इन् बातों से रहते अनजान
बाजार मैं आया कौन सा एंड्राइड
और यो-यो के गाने को अपलोड करने मैं हैं शान
यह इकीसवीं शताब्दी की ऐसी नस्ले हैं
फेसबुक और व्हट्सूप के लाइक और कमेंट ही इनकी ज़िंदगी के मसले हैं
क्लास और स्कूल में चाहे हो जाएँ लेट
कौन सी कंपनी का आया मोबाइल इन् बातों से रहते अपडेट
आज वोडका क्या हैं यह सबको पता हैं
हनी सिंह का हर गाना इन्हे इनके प्रशनो से ज्यादा रटा हैं
इंटरनेट की दुनिया भी बड़ी निराली हैं
सिमट गयी हैं एक मोबाइल में
हर बच्चा लगा हुआ हैं स्माइली और यो-यो की स्माइल में
कभी खो-खो, भागमभाग, विष-अमृत ऐसे खेल खेला करते थे
परिवारवाले तंग और गली मोहल्ले सब शोर झेलते थे
नाज़ुक उम्र थी नासमझी में भी एक समझ थी
बचपन ऐसे झलकता था कि धूप में भी चेहरा खिलता था
आज घर मैं ही गेम खेली जाती हैं और हनी की सीडी चलाई जाती हैं
महंगा मोबाइल इन् मासूमो की शान है
ऐप्प और रैप इनकी पहचान हैं
हर बच्चे एक यही राग यही गाना हैं
हनी और मोबाइल से चोली-दामन का साथ निभाना हैं!
सुन बच्चे !
सुन बच्चे ! बड़े होने की ज़िद न कर
भीग बेसब्र होकर बारिशों के पानी में
चला कागज़ की नाव बारिशों से भरे
सड़को पर उभर आये नालों के पानी में
अपने गैस वाले गुब्बारे चाँद तक पंहुचा
बुड्ढी के रंग-बिरंगे बाल खा
बर्फ के गोलों की चुस्कियां से
मुँह गन्दा कर माँ को अपने पीछे भगा
खेल धूप भरी दोपहरी में
या रात की चांदनी में
अपने दोस्तों को जी-जान से बुलाया कर
कभी खुद रूठ जाया कर
या उन्हें मनाया कर
छुपा कर हरे पेड़ो की ओट में
लाड से बैठा कर नानी-दादी की गोद में
एक अलग ही मज़ा है परियों की कहानी में
बचपन जी पैर रखने की जल्दी ना कर जवानी में
होली भी रंगो से सरोबार रहे
दिवाली पर पटाखों से ज्यादा फुलझड़ी से प्यार रहे
कोई रहे न रहे गुड्डे-गुड़िया हमेशा यार रहे
रेत के घर बना या
नकली बर्तनो से खाने पर बुला
यह बालमन फर्क नहीं करता
राजा और रानी में
बिना दहेज के नाच
बन्दर, भालू या गुड़िया की शादी में
पैसे की खनक को गुलक में जोड़ने की सनक रख
कागज़ के नोटों की फ़िक्र न कर
सुन बच्चे! बड़े होने की ज़िद न कर
मैगी
मैगी मेरी प्यारी मैगी
पांच से खाया तुझे
बारह रुपए तक कर दी गयी महंगी
मैगी मेरी प्यारी मैगी
एक ही भोजन था जो पकाना आता था
हमारी पाक-कला में सर्वोच्च नाम तुम्हारा था
कामकाजी माओ का एक तू ही सहारा था
यह तूने कैसी बेवफाई हैं दिखाई
कि लोगो की जान पर बन आई
टिन और लीड में क्यों जा मिली
अब सेहत की कौन करेगा भरपाई
तू तो सचमुच हम पर पड़ गई महंगी
मैगी मेरी प्यारी मैगी
गुब्बारे
रंग -बिरंगे प्यारे प्यारे
एक दो नहीं ढेर सरे
बच्चों की ऊँगली थाम
खिलखिलाते, चहचहाते गुब्बारे
गुब्बारे वाले कम हों गए हैं
बच्चे अब वीडियो गेम में मगन हों गए हैं
फिर भी जब कोई गुब्बारे वाला आता हैं
कोई नन्हा मासूम दौड़ भागकर आता हैं
फिर बिक जाते हैं ढेर गुब्बारे
आसमान में पतंग उड़ रही हैं
गुब्बारा भी उड़ सकता हैं
पर उड़ जाने पर छूता रहता हैं
क्षितिज के छोर सारे के सारे
उड़ते घूमते, चहचहाते गुब्बारे
रोटी
रोटी हूँ मैं गोल रोटी
कभी-कभी तुमसे बनती छोटी
कभी-कभी पतली या फूली
तो कभी जली रोटी
तुम्हे अपनी कहानी सुनाती हूँ
रोटी बनने से पहले
मैं गेहू बन खेतों में उगाई जाती हूँ
सारा अनाज चक्की में पिसता हैं
और इसी से तो आटा बनता हैं
फिर तुम्हारे पापा मुझे घर ले आते हैं
मम्मी तुम्हारी पकाकर खिलाती हैं
फिर आटे से रोटी बन जाती हैं
मेरे भी अनेक नाम
रुमाली, तंदूरी और नान
तुम पिज़्ज़ा , बर्गर के शौक़ीन हों
मुझे खाने के नखरे दिखाते हों
पर तुम्हे पता हैं मुझे खाने से ताकतआएँगी
मोटी-मोटी किताबें झट से पढ़ी जाएँगी
एक -दो चार छोटी या गोल गोल खाओ रोटी
बहुत ज़रूरी हैं मत छोड़ना फ़ास्ट फ़ूड के चक्कर में रोटी
परीक्षा
जब बच्चो की परीक्षा आ जाती हैं
मंदिरो, गुरुद्वारों और गिरजाघरों में भीड़ बढ़ जाती हैं!
शायद नमाज़ भी पांच वक़्त से ज्यादा पढ़ी जाती हैं !
माथे पर जितना लंबा तिलक लगा होगा
वही बालक ईश्वर की कृपा के समीप होंगा
भ्रष्टाचार में ये बच्चे भी लिप्त हैं
तभी तो प्रसाद की चढ़ती पहली किश्त हैं
इन्हें कर्म की नहीं फल की इच्छा हैं
सुन ले ! प्रभु आज से चालू मेरी परीक्षा हैं
अगर पास हुए तो मेहनत हमारी होंगी
फ़ेल होने पर ईश्वर की ज़िम्मेदारी होंगी !
यह दौर सभी के जीवन में आता हैं
जब खुदा को मुसीबत में सबसे करीब पाता हैं !
ख़ैर ! दम लगा के हईशा सबको गाना होगा
मेरे प्यारे बच्चो अच्छे नम्बरो से पास होना हैं
तो क़िताबो से दिल लगाना होंगा !
आसमान में जितने सितारे
ऐसे ही चमकते रहे ये बच्चे सारे
ये तो होली के गुलाल जैसे है
मन से निकाल देते भेदभाव सारे
जितना दिवाली के दीपक ने उजाला किया
उतना इन्होंने माँ-बाप का नाम रोशन किया
हम इन्हें बिगड़ी पीढ़ी कहकर दुत्कार लगाते है
सोचते है ये नए दरख्त कहाँ छाया दे पाते है
मगर सच तो यह है
कि इनकी यह ज़िद भी अच्छी है
सपने बड़े है और उम्र थोड़ी कच्ची है
चाहे कितनी भी ऊचाइयों छूते रहे
बड़े हो जाए और बड़प्पन जीते रहे
पर हमेशा यह बात रखना
दिल में हमेशा एक बच्चे को आबाद रखना। ।
No comments:
Post a Comment