आजकल के बच्चे खाने पीने के मामले में सुस्त हों गए हैं उन्हें अच्छे से खाने की आदत डाले ताकि उनका शारीरिक त्तथा मानसिक विकास हो सके।
* छह माह तक के बच्चे को माँ का दूध पिलाए। उसके बाद बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाये तो उसे पोष्टिक आहार देना शुरू कर दे। जैसे केला, दाल, छोले का पानी आदि अगर माँ कामकाजी हैं तो पंप के ज़रिये भी अपना दूध कहीं स्टोर करकर जिसकी देखरेख में बच्चा पल रहा हैं उसे दे सकती हैं। ताकि आपके पीछे से वो दूध बच्चे को पिलाएं।
* अगर बच्चा साल का हो गया हैं तो बाहर का दूध पिलाने के साथ -साथ उसे थोड़ा बहुत अपना दूध भी पिलाएं ताकि वह स्वस्थ रहे माँ के दूध से बीमारियो से लड़ा जा सकता हैं ।
* बच्चों के कपड़े हमेशा पानी में डेटोल डालकर धोए ताकि वह कीटाणुओ से मुक्त रहें ।
* बच्चों के बड़े होने के साथ-साथ उनकी जिहवा को हर सब्ज़ी का स्वाद चखाएं ताकि वह बड़े होकर कोई खाने में आनाकानी न करे ।
* अगर बच्चा हरी सब्जियां देखकर मुँह बनाता हैं तो उसे सब्जी का परांठा बनाकर दे।
* बच्चों को फ़ास्ट फूड आदि मैदे से बनी चीज़े जैसे मैगी या पिज़्ज़ा देने की जगह सूजी या बेसन से बनी चीजे खिलाएं जैसे इडली, ढोकला, चीले बेसन के, उपमा, सूजी डोसा, हलवा बेसन के परांठे आदि।
* बच्चे को शुरू से ही पूर्ण मात्रा में पानी पिलाएं। ठंडा पेय गर्मियों मैं जैसे लस्सी, मैंगो शेक नारियल पानी सर्दियों में दूध वाली चाय, सूप आदि पिलाने की आदत डाले।
* बच्चों को जल्दी सोने और उठने की आदत डाले। हो सके तो उन्हें योग तथा रोज व्यायाम की आदत डाले।
* जैसे-जैसे बच्चे ( लड़का हों या लड़की) बड़ा होने लगे उन्हें नैतिक शिक्षा माता-पिता से ही मिले एक अच्छे किरदार की शुरुआत घर से हे होनी चाहिए ।
* बच्चों को अच्छी अच्छी किताबें पढ़ने को दीजिये उनकी पढ़ने की आदत में सुधार होगा तथा उनके दिमाग की खिड़किया खुलेगी ज्ञान प्राप्त होगा और मानसिक विकास होगा । ख़ासतौर पर स्कूली बच्चे मोबइल और टीवी कम से कम देखे ।
* बच्चों के शारीरिक विकास के लिए उसे बाहर खेलने भी भेजे यह बात सच हैं की आजकल समय भी ख़राब हैं बच्चों के साथ हादसे हो रहे हैं। इसीलिए स्वयं वक़्त निकालकर अपनी निगरानी में बच्चों को बाहर भी ले जाए।
* बच्चों के सामने कभी भी अपने बुजर्गो से ऊँची आवाज में बात न करें। इससे बच्चा भी गलत आचरण को सीखकर आदर सम्मान को भूल जाता है।
* बच्चों को खाने का सलीका समझाएं तथा उन्हें अनाज की की क़दर करना बताएं ताकि वह एक अच्छे इंसान सके। बच्चों के अंदर खाने का लालच नहीं होना चाहिए ।
* बच्चों को ईश्वर से जोड़े उन्हें धार्मिक बनाए न बनाए। मगर आस्तिक ज़रूर बनाए। ताकि मन में सकरात्मक विचार आये ।
* बच्चों को मौसम के अनुसार फल खिलाए। बारिशो में उनका खास ध्यान रखे। बाहर का तला-भुना खाना खिलाने से बचे।
* आजकल गंदे पानी की वजह से बच्चों का पेट ख़राब हो जाता हैं इसीलिए जरा ध्यान रखे।
* बच्चों के दोस्त बनना अच्छी बात हैं परन्तु बच्चों की गलत हरकतों नज़रअंदाज़ न करें ।
* बच्चों को खुश रहना सिखाये ताकि वह चीज़ो की कीमत समझे न की धनवान बनने की प्रेरणा दीजिये पैसा ज़रूरत पूरी करता हैं। मन की ख़ुशी पैसे से नहीं मिलती है।
* बारिश के मौसम मैं बच्चे को ठीक के ढककर रखे क्योंकि यही मौसम सबसे ज्यादा बीमार करता हैं साडी जानलेवा बीमारियां भी इसी मौसम में होती हैं बच्चे को भी हर ,बीमारी के बारे में सचेत करे ।
* बीमार होने पर बच्चे का सही इलाज होना चाहिए उसे तुरन्त डॉक्टर के पास लेकर जाया जाए ताकि उसका इलाज़ हो सके ।
* बच्चों में संतोष की प्रवति लाए अर्थात उन्हें शांत और नरम स्वभाव का बनने की प्रेंरणा दे संतोषी बनने से वह हर छोटी से छोटी वस्तु का महत्व समझेगा।
* बच्चों की खेलकूद पर पाबन्दी न लगाए चाहे तो उनके साथ आप भी खेल में शामिल हो जाये इससे बच्चे का मानसिक विकास होता है।
* सर्दियों में बच्चों का विशेष ख्याल रखे ! तथा बच्चो को सर्दियों की विशेष सब्ज़ियां खिलाने से न चूके।पालक, सरसो, गोभी, गाजर, आमला, और भी मौसमी सब्ज़िया बच्चो के लिए फायदेमंद हैं ।
* बच्चॊ को सूप, तथा गोभी, गाजर के परांठे भी खिलाए ताकि स्वाद के साथ-साथ पौष्टिकता का भी आनंद ले सके ।
बच्चो को सर्दियों में नहलाने से भी परहेज़ न करे हां अधिक ठण्ड पड़ने पर अछि तरह से बच्चे का बदन गीले कपड़े से पूछ दे ताकि किसी तरह का इन्फेक्शन न हो पर कोशिश यही करनी चाहिए की बच्चे को नहलाया जाए! ताकि उसका आलस दूर हो सके।
* सर्दियों में खुश्की की समस्या भी अत्यधिक परेशान करती हैं । इसीलिए बच्चो के लिए बादाम और जैतून का तेल सर्वाधिक उपयोगी हैं।
* बच्चे को मक्के की रोटी तथा बाज़रे की एक रोटी रोज़ अवश्य खिलाए इससे सर्दी नहीं लगती और अगर बच्चा ज़ुकाम-खासी से परेशान हो तो वह भी ठीक हो जाता हैं ! बड़े भी खा सकते हैं ।
* बच्चे को गुड़ तथा बेसन से बनी चीज़े ज़रूर खिलाए ! बच्चे को कुछ भी खिलाने से अच्छा हैं कि उसे सूप तथा बेसन और गुड़ का सेवन कराये क्योंकि इससे सर्दी बिलकुल नहीं लगेगी तथा बच्चा बीमारियों से दूर रहेगा।
* बच्चे की आदतें सर्दियों मैं ख़राब हो जाती हैं इसीलिए बच्चे को आलसी न बनने दे । उसे चुस्त दुरुस्त बनाए ताकि बच्चा स्वस्थ और सुन्दर रहे ।
* इस समाज का एक वर्ग ऐसा भी हैं जो बच्चो को गलत आदतों का आदि बना देता हैं ! चाहे वो उनके सगे माता-पिता ही क्यों न हो ! इसीलए बच्चो को सही मार्ग पर चलने की प्रेंरणा दे ।
हमेशा कड़वी दवाई पीते रहे तो मुँह कड़वा हो जायेगा इसलिए मुँह का स्वाद सुधारने के लिए कुछ न कुछ ऐसा विशेष खाना पड़ता है ताकि जिह्वा को भी आनंद आए और मन को भी अच्छा लगे। एक लम्बे समय से ऐसी फिल्मे आ रही हैं जो समाज की कड़वी सच्चाई को उजागर करती या इतिहास के हृदय को टटोलती हैं। एक दौर था प्यार से भी प्यारी फिल्मे जैसे दिल तो पागल हो, चाँदनी, डी.डी.एल.जी. कुछ कुछ होता है, परदेस तेरे नाम, मोहब्बतें आदि ने बॉक्स ऑफिस पर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया था । बस इसी प्रेम और दीवानेपन को आज का दर्शक बहुत याद कर रहा था। ऐसे में कबीर सिंह जैसी फिल्म जिह्वा का स्वाद बदलने में कामयाब हुई है।
फ़िल्म की कहानी यूँ है कि कबीर (शाहिद कपूर) दिल्ली कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंस में पढ़ने वाला एक मेघावी छात्र है। जो मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है । जिसे गुस्सा बहुत आता है और एक सीनियर छात्र की तरह दबंग व्यक्तित्व वाला है । फुटबॉल मैच में हुए झगड़े के बाद कॉलेज उसे सस्पेंड कर देता है। पर वो अपने इसी गुस्साई ऐटिटूड के चलते ख़ुद ही कॉलेज से जाना चाहता हैं पर प्रीति सिक्का (कियारा अडवाणी ) को देखकर रुक जाता है । और अपने इसी प्यार के रहते क्लॉस में जाकर सभी को धमकी देता है कि उसे दूर रहे । वही प्रीती जो कबीर के पिता (सुरेश ओबेरॉय ) के दोस्त की बेटी है। पहले वो थोड़ा कबीर का गुस्सा देख डर जाती है, पर बाद में धीरे-धीरे दोनों को प्यार हो जाता है और दोनों अंतरंग भी हो जाते हैं । कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म होते ही कबीर आगे एम.एस. की पढ़ाई करने मूसरी चला जाता है। फिर तीन साल बाद लौटकर मुंबई आता है तो दोनों प्रीति के घर मिलते है । वहाँ दोनों को किस करते हुए प्रीति के पिता(अनुराग अरोड़ा) देख लेते है । फिर वही झगड़ा और पिता की ज़िद के चलते प्रीति की शादी कहीं और हो जाती है। ड्रग्स और शराब को गम की दवा बनाकर कबीर एक प्राइवेट हॉस्पिटल में सर्जन बन सर्जरी भी करता है । और एक दिन ऑपरेशन थिएटर में बेहोश होकर गिर जाने से उसकी अल्कोहल और ड्रग्स की आदत का पता चल जाता है।जिस वजह से उसका पाँच साल तक का मेडिकल लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है । दादी की मौत की ख़बर सुनकर वापिस घर आता है और अपने पिता से सुधरने का वादा करता है । और अंत में एक दिन उदास और गर्भवती प्रीति को पार्क में देख भावुक हो जाता है और फिर प्रीति से मिलने चल पड़ता है।
शाहिद कपूर एक मझे हुए कलाकार है यह उन्होंने कबीर सिंह फ़िल्म में साबित किया है । उनको देखकर ऐसा लगता है कि शायद वो प्यार के लिए वास्तविक ज़िंदगी में भी गंभीर रहते हैं । तभी तो इस क़िरदार के साथ न्याय कर पाए हैं । कियारा अडवाणी भी बहुत प्यारी लगी है । अनुराग अरोड़ा का यह रूप हिट फ़िल्म "जब वी मेट" की याद दिलाता है । एक कामयाब सर्जन का रिश्ता ठुकराना गले नहीं उतरता है। दादी कामिनी कौशल अपने किरदार में जची है। अपनी ही तमिल फिल्म अर्जुन रेड्डी का रीमेक कबीर सिंह का निर्देशन संदीप वंगा ने अच्छा किया है। पूरी फिल्म कहीं भी गति छोड़ती नहीं दिखती । दर्शक अंत तक सोचते रहते है कि इसका अंत कैसा होगा पूरी फिल्म कहीं भी गति छोड़ती नहीं दिखती दोस्त शिवा (सोहम मजूमदार) ने बुरे वक़्त में साथ देकर सही मायने में फ्रेंडशिप डे सेलिब्रेट करवाया है । लड़कियों को वो लड़के ज़्यादा अच्छे लगते है जिनकी तानाशाही में परवाह और प्यार दोनों हो । यह बात निर्देशक ने समझ ली है और इसका सही चित्रण किया है। लड़की छोड़कर चली गई तो शराब और ड्रग्स की लत से स्वयं को बर्बाद कर देने में कोई समझदारी नहीं है। एक मॉडर्न देवदास का चित्रण है जो काम भी कर रहा है और नशा करके अपना ग़म भी भुला रहा है। एक कुत्ते को अपनी गर्लफ्रेंड का नाम, मछलियों को अलग़ करना, नौकरानी के पीछे भागना जैसे कुछ दृश्यों को देखकर हमें हसी आती है और थोड़ा कबीर सिंह के ऊपर तरस भी आता है । किसी और के साथ समय बिताकर अपने प्यार को भुलाना भी एक सुझाव की तरह दिखाया है। अदाकारा निकिता दत्ता (जिया शर्मा) ने अपना क़िरदार बखूबी निभाया है । एक बात हजम नहीं होती कि अंत में प्रीति का कबीर को कहना कि "मैं तुम्हारे पास आना चाहती थी पर आ नहीं पायी कि किस मुँह से आती ।" शादी के बाद अपने पति का घर छोड़कर अपने प्रेमी के पास न जाना जो पागलों की हद तक प्रेम करता है और उसके लिए जान देने को भी तैयार है अज़ीब लग रहा है । खैर प्रेम में पीर तो होनी ही चाहिए वरना प्रेम की परकाष्ठा कैसी होगी । अमीर खुसरो के दोहे ने यह बात शुरुवात में ही बता दी है । फ़िल्म का गीत-संगीत अच्छा है। अरजीत सिंह की आवाज़ में गाया गीत "बेख्याली " लोगों को बहुत पसंद आ रहा है । सभी कलाकारों ने बेहतरीन काम किया है । मसूरी के दृश्य कम है पर कहानी के हिसाब से सही लगते है । पिछले दिनों कोई और ख़ास फिल्म न रिलीज़ होने का फ़ायदा भी कबीर सिंह को मिला। कुल मिलाकर जून की गर्मी में यह एक बारिश की फुहार जैसी है ।
लव रंजन द्वारा निर्देशित "दे दे प्यार दे " को देख हसी भी आएंगी तो हैरानी भी होगी पर कहीं न कहीं दर्शक इस बात को नकार नहीं सकते कि जो पहले के समय में अज़ीब या जो कभी ग़लत लगता था वही अब हैरान भी करता है और मन में एक गुदगुदी भी पैदा करता है । आजकल कम-ज़्यादा आयु वाले लोग विवाह कर रहे है तो ऐसे में दे दे प्यार जैसी फ़िल्म का आना पचता भी है और एक जिज्ञासा सी पैदा करता है कि फ़िल्म में है क्या।
पचास साल का आशीष मेहरा (अजय देवगन ) जो कि लंदन का सफल बिज़नेस मेन है । छबीस साल की आइशा खुराना (रकुल प्रीत सिंह ) से एक दोस्त की बैचलर पार्टी में स्ट्रिपर के रूप में मिलता है । दोनों के बीच प्यारी नौक़-झोंक होती रहती है । फिर उसी दोस्त की शादी में दोनों दोबारा मिलते है और वह आशीष को यह संकेत तो देती है कि वह उसे बुरा नहीं लगता । असल में आयशा लंदन में पढ़ती और फिर वही नौकरी करती है । वह अपने बॉयफ्रेंड समीर (आकाश) से पीछा छुड़ाने और जगह बदलने के लिए आशीष के संग रहने को तैयार हो जाती है । दोनों लिव-इन में रहते हैं । और ऐसे ही हसते खेलते दोनों में प्यार हो जाता है । जब आशीष का दोस्त जो पेशे से दिमाग का डॉक्टर भी है शादी के लिए पूछता है तो वह जवाब टाल देता है । और आयशा के शादी के बारे में पूछने पर मना कर देता है । दोनों अलग हो जाते है । पर बाद में उन्हें पता चलता हैं कि वो एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते । शादी करने से पहले अपने माता-पिता और परिवार से मिलाने इंडिया में अपने मनाली के घर लेकर जाता है । इंडिया में आशीष की बेटी इशिका (इनायत सूद ) को देखने लड़के वाले आने वाले है। बीवी मंजू {तब्बू} आशीष को वहाँ उनके फार्महाउस के किरायेदार वी.के.(ज़िम्मी शेरगिल ) से मिलवाती है जो मंजू मे के पीछे पड़ा हैं । लड़के वालो से आशीष को मंजू का भाई कहलवाकर मिलवाया जाता है क्योंकि इशिका अपने पिता को पसंद नहीं करती और अपने बॉयफ्रेंड अतुल (कुमुद मिश्रा ) से कह चुकी है कि उसके पिता मर चुके है। और आयशा को आशीष की सेक्रेटरी बना दिया जाता है। आयशा को मंजू की आशीष के साथ नज़दीकिया अच्छी नहीं लगती । इस बात से ख़फ़ा आयशा को मनाते हुए आशीष उसे किस कर रहा होता है जिसे इशिका देख लेती है और हंगामा खड़ा करती है। लड़के वालो को पता चल जाता है कि आशीष भाई नहीं मंजू का पति है रिश्ता टूट जाता है वही इशिका को भी पता चल जाता है कि मंजू और आशीष का तलाक नहीं हुआ है, नाराज़ होकर वापिस लंदन चली जाती है । वही उदास बेटी की ख़ुशी के लिए आशीष अतुल को मना लाता है । वही तब्बू भी आशीष की उदासी को समझ आयशा को मनाने लंदन पहुंच जाती है ।
फिल्म शानदार है यह तो पूरी तऱह नहीं कहा जा सकता पर फिल्म अच्छी कमाई कर चुकी है यह सत्य है । लव रंजन के सितारे बुलंदी पर है । उनकी फिल्मे अच्छी कमाई भी कर रही है और दर्शको को पसंद भी आ रही है । अजय देवगन का काम अच्छा है । ५० साल का आदमी कैसे प्यार में पड़ता है। और अंत तक यही फ़ैसला नहीं कर पाता कि जिस लड़की से शादी करनी है उससे शादी करनी भी है या नहीं । रकुल प्रीत भी दिग्जज़ों के सामने सही टिकी है । तब्बू और अजय देवगन की रियल लाइफ की दोस्ती की झलक रील लाइफ में भी देखने को मिलती हैं । जोकि सटीक लगता है। एक दोस्ती ऐसा रिश्ता है जो सभी रिश्तो की नींव है । फिल्म इंटरवल के बाद गति पकड़ती है। मंजू और आयशा का दूसरे को नीचा दिखाना मनोरंजन से भरपूर है। वही आशीष के बेटे ईशान (भविन भानुशाली )का आयशा की तरफ आकर्षण हॅसी भी दिलाता है और स्वाभाविक भी लगता है । मंजू का अपने पति को राखी बाँधना अटपटा लगा । शायद निर्देशक यह दिखाना चाहते है कि अलग होने पर भावनाएं ऐसे मर जाती है कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाला आपका पति रह चुका हो । पूरे परिवार के सामने आशीष का साथ देना और तब्बू का यह कहना "पहले भी तो लड़किया शादी करती थी फर्क सिर्फ इतना है कि मजबूरी प्यार में बदल चुकी है ।" सोचने पर विवश करता है ।
ज़ावेद जाफ़री एक कॉमेडी दोस्त के रूप में सही लगे है । जिम्मी शेरगिल एक अच्छे कलाकार है पर उनकी अदाकारी का ज्यादा उपयोग नहीं किया गया शायद कहानी की यही ज़रूरत थी । मी टू विवाद में फॅसे आलोकनाथ अपने क़िरदार को निभाते जचे है लव रंजन ने उनकी बाबूजी वाली छवि बदल दी या सही सामने लाकर रख दी कहना मुश्किल है । मधुमालती ने माँ के क़िरदार में आलोकनाथ का खूब साथ निभाया है । फिल्म का संगीत औसत हैं पुराना पंजाबी गाना "मुखड़ा देख के" फिर पसंद किया जा रहा हैं कुल मिलाकर यह फ़िल्म एक एक बार देखी जा सकती है। यह फिल्म उन लोगों के लिए ज़वाब है जिन्हे अपनी पसंद का बेमेल विवाह ग़लत लगता है ।
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* छह माह तक के बच्चे को माँ का दूध पिलाए। उसके बाद बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाये तो उसे पोष्टिक आहार देना शुरू कर दे। जैसे केला, दाल, छोले का पानी आदि अगर माँ कामकाजी हैं तो पंप के ज़रिये भी अपना दूध कहीं स्टोर करकर जिसकी देखरेख में बच्चा पल रहा हैं उसे दे सकती हैं। ताकि आपके पीछे से वो दूध बच्चे को पिलाएं।
* अगर बच्चा साल का हो गया हैं तो बाहर का दूध पिलाने के साथ -साथ उसे थोड़ा बहुत अपना दूध भी पिलाएं ताकि वह स्वस्थ रहे माँ के दूध से बीमारियो से लड़ा जा सकता हैं ।
* बच्चों के कपड़े हमेशा पानी में डेटोल डालकर धोए ताकि वह कीटाणुओ से मुक्त रहें ।
* बच्चों के बड़े होने के साथ-साथ उनकी जिहवा को हर सब्ज़ी का स्वाद चखाएं ताकि वह बड़े होकर कोई खाने में आनाकानी न करे ।
* अगर बच्चा हरी सब्जियां देखकर मुँह बनाता हैं तो उसे सब्जी का परांठा बनाकर दे।
* बच्चों को फ़ास्ट फूड आदि मैदे से बनी चीज़े जैसे मैगी या पिज़्ज़ा देने की जगह सूजी या बेसन से बनी चीजे खिलाएं जैसे इडली, ढोकला, चीले बेसन के, उपमा, सूजी डोसा, हलवा बेसन के परांठे आदि।
* बच्चे को शुरू से ही पूर्ण मात्रा में पानी पिलाएं। ठंडा पेय गर्मियों मैं जैसे लस्सी, मैंगो शेक नारियल पानी सर्दियों में दूध वाली चाय, सूप आदि पिलाने की आदत डाले।
* बच्चों को जल्दी सोने और उठने की आदत डाले। हो सके तो उन्हें योग तथा रोज व्यायाम की आदत डाले।
* जैसे-जैसे बच्चे ( लड़का हों या लड़की) बड़ा होने लगे उन्हें नैतिक शिक्षा माता-पिता से ही मिले एक अच्छे किरदार की शुरुआत घर से हे होनी चाहिए ।
* बच्चों को अच्छी अच्छी किताबें पढ़ने को दीजिये उनकी पढ़ने की आदत में सुधार होगा तथा उनके दिमाग की खिड़किया खुलेगी ज्ञान प्राप्त होगा और मानसिक विकास होगा । ख़ासतौर पर स्कूली बच्चे मोबइल और टीवी कम से कम देखे ।
* बच्चों के शारीरिक विकास के लिए उसे बाहर खेलने भी भेजे यह बात सच हैं की आजकल समय भी ख़राब हैं बच्चों के साथ हादसे हो रहे हैं। इसीलिए स्वयं वक़्त निकालकर अपनी निगरानी में बच्चों को बाहर भी ले जाए।
* बच्चों के सामने कभी भी अपने बुजर्गो से ऊँची आवाज में बात न करें। इससे बच्चा भी गलत आचरण को सीखकर आदर सम्मान को भूल जाता है।
* बच्चों को खाने का सलीका समझाएं तथा उन्हें अनाज की की क़दर करना बताएं ताकि वह एक अच्छे इंसान सके। बच्चों के अंदर खाने का लालच नहीं होना चाहिए ।
* बच्चों को ईश्वर से जोड़े उन्हें धार्मिक बनाए न बनाए। मगर आस्तिक ज़रूर बनाए। ताकि मन में सकरात्मक विचार आये ।
* बच्चों को मौसम के अनुसार फल खिलाए। बारिशो में उनका खास ध्यान रखे। बाहर का तला-भुना खाना खिलाने से बचे।
* आजकल गंदे पानी की वजह से बच्चों का पेट ख़राब हो जाता हैं इसीलिए जरा ध्यान रखे।
* बच्चों के दोस्त बनना अच्छी बात हैं परन्तु बच्चों की गलत हरकतों नज़रअंदाज़ न करें ।
* बच्चों को खुश रहना सिखाये ताकि वह चीज़ो की कीमत समझे न की धनवान बनने की प्रेरणा दीजिये पैसा ज़रूरत पूरी करता हैं। मन की ख़ुशी पैसे से नहीं मिलती है।
* बारिश के मौसम मैं बच्चे को ठीक के ढककर रखे क्योंकि यही मौसम सबसे ज्यादा बीमार करता हैं साडी जानलेवा बीमारियां भी इसी मौसम में होती हैं बच्चे को भी हर ,बीमारी के बारे में सचेत करे ।
* बीमार होने पर बच्चे का सही इलाज होना चाहिए उसे तुरन्त डॉक्टर के पास लेकर जाया जाए ताकि उसका इलाज़ हो सके ।
* बच्चों में संतोष की प्रवति लाए अर्थात उन्हें शांत और नरम स्वभाव का बनने की प्रेंरणा दे संतोषी बनने से वह हर छोटी से छोटी वस्तु का महत्व समझेगा।
* बच्चों की खेलकूद पर पाबन्दी न लगाए चाहे तो उनके साथ आप भी खेल में शामिल हो जाये इससे बच्चे का मानसिक विकास होता है।
* सर्दियों में बच्चों का विशेष ख्याल रखे ! तथा बच्चो को सर्दियों की विशेष सब्ज़ियां खिलाने से न चूके।पालक, सरसो, गोभी, गाजर, आमला, और भी मौसमी सब्ज़िया बच्चो के लिए फायदेमंद हैं ।
* बच्चॊ को सूप, तथा गोभी, गाजर के परांठे भी खिलाए ताकि स्वाद के साथ-साथ पौष्टिकता का भी आनंद ले सके ।
बच्चो को सर्दियों में नहलाने से भी परहेज़ न करे हां अधिक ठण्ड पड़ने पर अछि तरह से बच्चे का बदन गीले कपड़े से पूछ दे ताकि किसी तरह का इन्फेक्शन न हो पर कोशिश यही करनी चाहिए की बच्चे को नहलाया जाए! ताकि उसका आलस दूर हो सके।
* सर्दियों में खुश्की की समस्या भी अत्यधिक परेशान करती हैं । इसीलिए बच्चो के लिए बादाम और जैतून का तेल सर्वाधिक उपयोगी हैं।
* बच्चे को मक्के की रोटी तथा बाज़रे की एक रोटी रोज़ अवश्य खिलाए इससे सर्दी नहीं लगती और अगर बच्चा ज़ुकाम-खासी से परेशान हो तो वह भी ठीक हो जाता हैं ! बड़े भी खा सकते हैं ।
* बच्चे को गुड़ तथा बेसन से बनी चीज़े ज़रूर खिलाए ! बच्चे को कुछ भी खिलाने से अच्छा हैं कि उसे सूप तथा बेसन और गुड़ का सेवन कराये क्योंकि इससे सर्दी बिलकुल नहीं लगेगी तथा बच्चा बीमारियों से दूर रहेगा।
* बच्चे की आदतें सर्दियों मैं ख़राब हो जाती हैं इसीलिए बच्चे को आलसी न बनने दे । उसे चुस्त दुरुस्त बनाए ताकि बच्चा स्वस्थ और सुन्दर रहे ।
* इस समाज का एक वर्ग ऐसा भी हैं जो बच्चो को गलत आदतों का आदि बना देता हैं ! चाहे वो उनके सगे माता-पिता ही क्यों न हो ! इसीलए बच्चो को सही मार्ग पर चलने की प्रेंरणा दे ।
समीक्षा
फिल्म कबीर सिंह
हमेशा कड़वी दवाई पीते रहे तो मुँह कड़वा हो जायेगा इसलिए मुँह का स्वाद सुधारने के लिए कुछ न कुछ ऐसा विशेष खाना पड़ता है ताकि जिह्वा को भी आनंद आए और मन को भी अच्छा लगे। एक लम्बे समय से ऐसी फिल्मे आ रही हैं जो समाज की कड़वी सच्चाई को उजागर करती या इतिहास के हृदय को टटोलती हैं। एक दौर था प्यार से भी प्यारी फिल्मे जैसे दिल तो पागल हो, चाँदनी, डी.डी.एल.जी. कुछ कुछ होता है, परदेस तेरे नाम, मोहब्बतें आदि ने बॉक्स ऑफिस पर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया था । बस इसी प्रेम और दीवानेपन को आज का दर्शक बहुत याद कर रहा था। ऐसे में कबीर सिंह जैसी फिल्म जिह्वा का स्वाद बदलने में कामयाब हुई है।
फ़िल्म की कहानी यूँ है कि कबीर (शाहिद कपूर) दिल्ली कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंस में पढ़ने वाला एक मेघावी छात्र है। जो मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है । जिसे गुस्सा बहुत आता है और एक सीनियर छात्र की तरह दबंग व्यक्तित्व वाला है । फुटबॉल मैच में हुए झगड़े के बाद कॉलेज उसे सस्पेंड कर देता है। पर वो अपने इसी गुस्साई ऐटिटूड के चलते ख़ुद ही कॉलेज से जाना चाहता हैं पर प्रीति सिक्का (कियारा अडवाणी ) को देखकर रुक जाता है । और अपने इसी प्यार के रहते क्लॉस में जाकर सभी को धमकी देता है कि उसे दूर रहे । वही प्रीती जो कबीर के पिता (सुरेश ओबेरॉय ) के दोस्त की बेटी है। पहले वो थोड़ा कबीर का गुस्सा देख डर जाती है, पर बाद में धीरे-धीरे दोनों को प्यार हो जाता है और दोनों अंतरंग भी हो जाते हैं । कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म होते ही कबीर आगे एम.एस. की पढ़ाई करने मूसरी चला जाता है। फिर तीन साल बाद लौटकर मुंबई आता है तो दोनों प्रीति के घर मिलते है । वहाँ दोनों को किस करते हुए प्रीति के पिता(अनुराग अरोड़ा) देख लेते है । फिर वही झगड़ा और पिता की ज़िद के चलते प्रीति की शादी कहीं और हो जाती है। ड्रग्स और शराब को गम की दवा बनाकर कबीर एक प्राइवेट हॉस्पिटल में सर्जन बन सर्जरी भी करता है । और एक दिन ऑपरेशन थिएटर में बेहोश होकर गिर जाने से उसकी अल्कोहल और ड्रग्स की आदत का पता चल जाता है।जिस वजह से उसका पाँच साल तक का मेडिकल लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है । दादी की मौत की ख़बर सुनकर वापिस घर आता है और अपने पिता से सुधरने का वादा करता है । और अंत में एक दिन उदास और गर्भवती प्रीति को पार्क में देख भावुक हो जाता है और फिर प्रीति से मिलने चल पड़ता है।
शाहिद कपूर एक मझे हुए कलाकार है यह उन्होंने कबीर सिंह फ़िल्म में साबित किया है । उनको देखकर ऐसा लगता है कि शायद वो प्यार के लिए वास्तविक ज़िंदगी में भी गंभीर रहते हैं । तभी तो इस क़िरदार के साथ न्याय कर पाए हैं । कियारा अडवाणी भी बहुत प्यारी लगी है । अनुराग अरोड़ा का यह रूप हिट फ़िल्म "जब वी मेट" की याद दिलाता है । एक कामयाब सर्जन का रिश्ता ठुकराना गले नहीं उतरता है। दादी कामिनी कौशल अपने किरदार में जची है। अपनी ही तमिल फिल्म अर्जुन रेड्डी का रीमेक कबीर सिंह का निर्देशन संदीप वंगा ने अच्छा किया है। पूरी फिल्म कहीं भी गति छोड़ती नहीं दिखती । दर्शक अंत तक सोचते रहते है कि इसका अंत कैसा होगा पूरी फिल्म कहीं भी गति छोड़ती नहीं दिखती दोस्त शिवा (सोहम मजूमदार) ने बुरे वक़्त में साथ देकर सही मायने में फ्रेंडशिप डे सेलिब्रेट करवाया है । लड़कियों को वो लड़के ज़्यादा अच्छे लगते है जिनकी तानाशाही में परवाह और प्यार दोनों हो । यह बात निर्देशक ने समझ ली है और इसका सही चित्रण किया है। लड़की छोड़कर चली गई तो शराब और ड्रग्स की लत से स्वयं को बर्बाद कर देने में कोई समझदारी नहीं है। एक मॉडर्न देवदास का चित्रण है जो काम भी कर रहा है और नशा करके अपना ग़म भी भुला रहा है। एक कुत्ते को अपनी गर्लफ्रेंड का नाम, मछलियों को अलग़ करना, नौकरानी के पीछे भागना जैसे कुछ दृश्यों को देखकर हमें हसी आती है और थोड़ा कबीर सिंह के ऊपर तरस भी आता है । किसी और के साथ समय बिताकर अपने प्यार को भुलाना भी एक सुझाव की तरह दिखाया है। अदाकारा निकिता दत्ता (जिया शर्मा) ने अपना क़िरदार बखूबी निभाया है । एक बात हजम नहीं होती कि अंत में प्रीति का कबीर को कहना कि "मैं तुम्हारे पास आना चाहती थी पर आ नहीं पायी कि किस मुँह से आती ।" शादी के बाद अपने पति का घर छोड़कर अपने प्रेमी के पास न जाना जो पागलों की हद तक प्रेम करता है और उसके लिए जान देने को भी तैयार है अज़ीब लग रहा है । खैर प्रेम में पीर तो होनी ही चाहिए वरना प्रेम की परकाष्ठा कैसी होगी । अमीर खुसरो के दोहे ने यह बात शुरुवात में ही बता दी है । फ़िल्म का गीत-संगीत अच्छा है। अरजीत सिंह की आवाज़ में गाया गीत "बेख्याली " लोगों को बहुत पसंद आ रहा है । सभी कलाकारों ने बेहतरीन काम किया है । मसूरी के दृश्य कम है पर कहानी के हिसाब से सही लगते है । पिछले दिनों कोई और ख़ास फिल्म न रिलीज़ होने का फ़ायदा भी कबीर सिंह को मिला। कुल मिलाकर जून की गर्मी में यह एक बारिश की फुहार जैसी है ।
दे दे प्यार दे
लव रंजन द्वारा निर्देशित "दे दे प्यार दे " को देख हसी भी आएंगी तो हैरानी भी होगी पर कहीं न कहीं दर्शक इस बात को नकार नहीं सकते कि जो पहले के समय में अज़ीब या जो कभी ग़लत लगता था वही अब हैरान भी करता है और मन में एक गुदगुदी भी पैदा करता है । आजकल कम-ज़्यादा आयु वाले लोग विवाह कर रहे है तो ऐसे में दे दे प्यार जैसी फ़िल्म का आना पचता भी है और एक जिज्ञासा सी पैदा करता है कि फ़िल्म में है क्या।
पचास साल का आशीष मेहरा (अजय देवगन ) जो कि लंदन का सफल बिज़नेस मेन है । छबीस साल की आइशा खुराना (रकुल प्रीत सिंह ) से एक दोस्त की बैचलर पार्टी में स्ट्रिपर के रूप में मिलता है । दोनों के बीच प्यारी नौक़-झोंक होती रहती है । फिर उसी दोस्त की शादी में दोनों दोबारा मिलते है और वह आशीष को यह संकेत तो देती है कि वह उसे बुरा नहीं लगता । असल में आयशा लंदन में पढ़ती और फिर वही नौकरी करती है । वह अपने बॉयफ्रेंड समीर (आकाश) से पीछा छुड़ाने और जगह बदलने के लिए आशीष के संग रहने को तैयार हो जाती है । दोनों लिव-इन में रहते हैं । और ऐसे ही हसते खेलते दोनों में प्यार हो जाता है । जब आशीष का दोस्त जो पेशे से दिमाग का डॉक्टर भी है शादी के लिए पूछता है तो वह जवाब टाल देता है । और आयशा के शादी के बारे में पूछने पर मना कर देता है । दोनों अलग हो जाते है । पर बाद में उन्हें पता चलता हैं कि वो एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते । शादी करने से पहले अपने माता-पिता और परिवार से मिलाने इंडिया में अपने मनाली के घर लेकर जाता है । इंडिया में आशीष की बेटी इशिका (इनायत सूद ) को देखने लड़के वाले आने वाले है। बीवी मंजू {तब्बू} आशीष को वहाँ उनके फार्महाउस के किरायेदार वी.के.(ज़िम्मी शेरगिल ) से मिलवाती है जो मंजू मे के पीछे पड़ा हैं । लड़के वालो से आशीष को मंजू का भाई कहलवाकर मिलवाया जाता है क्योंकि इशिका अपने पिता को पसंद नहीं करती और अपने बॉयफ्रेंड अतुल (कुमुद मिश्रा ) से कह चुकी है कि उसके पिता मर चुके है। और आयशा को आशीष की सेक्रेटरी बना दिया जाता है। आयशा को मंजू की आशीष के साथ नज़दीकिया अच्छी नहीं लगती । इस बात से ख़फ़ा आयशा को मनाते हुए आशीष उसे किस कर रहा होता है जिसे इशिका देख लेती है और हंगामा खड़ा करती है। लड़के वालो को पता चल जाता है कि आशीष भाई नहीं मंजू का पति है रिश्ता टूट जाता है वही इशिका को भी पता चल जाता है कि मंजू और आशीष का तलाक नहीं हुआ है, नाराज़ होकर वापिस लंदन चली जाती है । वही उदास बेटी की ख़ुशी के लिए आशीष अतुल को मना लाता है । वही तब्बू भी आशीष की उदासी को समझ आयशा को मनाने लंदन पहुंच जाती है ।
फिल्म शानदार है यह तो पूरी तऱह नहीं कहा जा सकता पर फिल्म अच्छी कमाई कर चुकी है यह सत्य है । लव रंजन के सितारे बुलंदी पर है । उनकी फिल्मे अच्छी कमाई भी कर रही है और दर्शको को पसंद भी आ रही है । अजय देवगन का काम अच्छा है । ५० साल का आदमी कैसे प्यार में पड़ता है। और अंत तक यही फ़ैसला नहीं कर पाता कि जिस लड़की से शादी करनी है उससे शादी करनी भी है या नहीं । रकुल प्रीत भी दिग्जज़ों के सामने सही टिकी है । तब्बू और अजय देवगन की रियल लाइफ की दोस्ती की झलक रील लाइफ में भी देखने को मिलती हैं । जोकि सटीक लगता है। एक दोस्ती ऐसा रिश्ता है जो सभी रिश्तो की नींव है । फिल्म इंटरवल के बाद गति पकड़ती है। मंजू और आयशा का दूसरे को नीचा दिखाना मनोरंजन से भरपूर है। वही आशीष के बेटे ईशान (भविन भानुशाली )का आयशा की तरफ आकर्षण हॅसी भी दिलाता है और स्वाभाविक भी लगता है । मंजू का अपने पति को राखी बाँधना अटपटा लगा । शायद निर्देशक यह दिखाना चाहते है कि अलग होने पर भावनाएं ऐसे मर जाती है कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाला आपका पति रह चुका हो । पूरे परिवार के सामने आशीष का साथ देना और तब्बू का यह कहना "पहले भी तो लड़किया शादी करती थी फर्क सिर्फ इतना है कि मजबूरी प्यार में बदल चुकी है ।" सोचने पर विवश करता है ।
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